जयपुर.प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में है लेकिन पार्टी प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राजस्थान के कुछ प्रमुख नेता असमंजस की स्थिति में भी हैं. असमंजस प्रदेश भाजपा नेतृत्व को लेकर है. सतीश पूनिया का बतौर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष 3 साल का कार्यकाल इस साल पूरा हो जाएगा. पूनिया यथावत रहेंगे या उनका स्थान कोई दूसरा नेता लेगा इसे लेकर सुगबुगाहट हो रही है.
नड्डा के बाद पूनिया ने दी हवा:दरअसल पिछले दिनों माउंट आबू में प्रदेश भाजपा के प्रशिक्षण वर्ग के समापन सत्र को संबोधित करते हुए पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अध्यक्षीय कार्यकाल और पार्टी की तैयारी को लेकर कहा था कि अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है तो तैयारी 6 वर्ष की क्यों की जाती है? नड्डा ने यह बयान किस संदर्भ में दिया वो अलग बात थी लेकिन प्रदेश भाजपा नेताओं ने इसे पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के कार्यकाल से जोड़कर देखा और इसके कई सियासी अर्थ भी निकाले. नड्डा के बयान से शुरू हुई चर्चा को हाल ही में टॉक जर्नलिज्म के मंच पर आए सतीश पूनिया के बयान ने और हवा दे दी. उन्होंने कहा कि मेरा सपना है कि मेरे संगठनात्मक नेतृत्व में भाजपा 2023 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएं. मतलब वे चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान उन्हें बतौर अध्यक्ष विधानसभा चुनाव तक यथावत रखे.
क्या बदलाव के हैं संकेत!:पहले नड्डा और फिर पूनिया का मौजूदा बयान इस बात के संकेत दे रहा है कि प्रदेश भाजपा में बहुत कुछ नया होने वाला है. कहते हैं न धुंआ वहीं दिखता है जहां चिंगारी होती है और यह चिंगारी कब आग का रूप लेगी इस पर सियासतदारों की नजरें जमी हैं. चर्चा इस बात को लेकर है की साल 2023 की शुरुआत में ही प्रदेश भाजपा में कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं. हो सकता है कि पूनिया को इस पद पर अगले चुनाव तक यथावत रखें या कुछ और बदलाव कर दें. क्या कुछ नया होगा यह अगले वर्ष की शुरुआत में ही साफ हो पाएगा?
टिकट वितरण में रहती है अहम भूमिका:भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का पद चुनावी वर्ष में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. गांव में टिकट वितरण के दौरान पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की अहम भूमिका भी रहती है. यही कारण है की चुनावी वर्ष में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर सबकी निगाहें रहती है. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर राजस्थान में काफी घमासान मचा था. माना जा रहा था कि पार्टी आलाकमान सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे लेकिन वसुंधरा राजे व अन्य समर्थक नेता इसके पक्ष में नहीं थे. इसके चलते लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली रहा था. तब तक मदनलाल सैनी को सहमति से इस पद पर बैठाया गया था.