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पॉलिटिकल टूरिज्म बन रहा राजस्थान, 1996 में शुरू हुआ था प्रदेश में विधायकों की बाड़ेबंदी का सिलसिला

राजस्थान एक बार फिर पॉलिटिकल पार्टियों के लिए संकट मोचन बन कर उभर रहा है. 19 जून को 7 राज्यों में राज्यसभा चुनाव होने हैं. इस कड़ी में गुजरात कांग्रेस में 8 विधायकों के इस्तीफा देने के बाद सभी विधायकों को बाड़ेबंदी के लिए राजस्थान भेज दिया गया है. जिन्हें आबू रोड स्थित एक निजी रिसॉर्ट में रखा गया है और इसी के साथ राजस्थान पॉलिटिकल टूरिज्म बनता दिख रहा है.

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Published : Jun 8, 2020, 2:51 PM IST

जयपुर.19 जून को 7 राज्यों की 18 सीटों पर राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान होना है. जिसको लेकर विधायकों के बाड़ेबंदी का सिलसिला शुरू हो चुका है. इस कड़ी में राजस्थान फिर एक बार पार्टियों के लिए पॉलिटिकल टूरिज्म बनता नजर आ रहा है. जिसके तहत गुजरात कांग्रेस के विधायकों को बाड़ेबंदी करते हुए आबू रोड स्थित एक निजी रिसॉर्ट में रखा गया है.

गौरतलब है कि इस बार राज्यसभा चुनाव में सबकी नजरें गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान पर है. गुजरात और मध्यप्रदेश पर इसलिए क्योंकि जहां मध्यप्रदेश में कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस को अपनी सरकार तक गंवानी पड़ी. वहीं अब राज्यसभा की एक सीट भी उसके हाथ से निकलती दिखाई दे रही है. बात करें गुजरात की तो वहां कांग्रेस की सरकार तो नहीं है, लेकिन जिस बहुमत के आधार पर वो 2 सीटों पर जीत सकती थी, उसमें पॉलिटिकल ड्रामे के तहत कांग्रेस के 8 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया हैं.

पॉलिटिकल टूरिज्म बन रहा राजस्थान

वहीं राजस्थान पर नजर होने का कारण इसका पॉलिटिकल टूरिज्म होना है. किसी भी राज्य में पार्टियों को दिक्कत आती है, तो उन्हें आसरा राजस्थान में ही मिलता है. चाहे पिछली भाजपा सरकार हो या फिर वर्तमान की कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार. पॉलिटिकल टूरिज्म के लिए सबसे बेहतर विकल्प के तौर पर राजस्थान उभरा है. साल 2005 से अब तक राजस्थान में झारखंड, उत्तराखंड, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश के विधायकों की बाड़ेबंदी हो चुकी है.

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जानकारों के अनुसार राजस्थान में बाड़ेबंदी की शुरुआत 1996 में भैरों सिंह शेखावत के दौर में हुई थी. जब जनता दल से बगावत करके आए विधायकों को भाजपा में शामिल कराकर भाजपा की सरकार बनवाई गई थी. उसके बाद ये चलन राजस्थान में बढ़ता गया. 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने झारखंड की अर्जुन मुंडा सरकार को बचाने के लिए, झारखंड के विधायकों की जयपुर में बाड़ेबंदी की थी. उन्हें अजमेर रोड के एक रिसॉर्ट में रखा गया था. यही वजह थी कि अर्जुन मुंडा की सरकार बच सकी थी.

वहीं 2016 में उत्तराखंड के तत्कालीन हरीश रावत सरकार पर सियासी संकट आया था, तो भाजपा ने अपने विधायकों को खरीद-फरोख्त के डर से जयपुर भिजवाया. यही कारण था कि उस साल होली भी भाजपा विधायकों ने जयपुर स्थित रिसॉर्ट पर ही मनाई थी. हालांकि उस समय फ्लोर टेस्ट पर हरीश रावत ने सरकार में बहुमत साबित कर दिया था. इसके बाद वर्तमान गहलोत सरकार में तो बीते डेढ़ साल में मानो राजस्थान और खासतौर पर राजधानी जयपुर दूसरे राज्य के कांग्रेस विधायकों के लिए बाड़ेबंदी और पॉलिटिकल टूरिज्म का केंद्र बन गया है. 2019 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने और जोड़तोड़ की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने अपने विधायकों को जयपुर शिफ्ट किया था.

वहीं 2019 नवंबर में कांग्रेस ने अपने 44 विधायकों को दिल्ली रोड स्थित एक रिसॉर्ट में करीब 2 सप्ताह रखा. इसके बाद मार्च 2020 की शुरुआत में मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को सियासी संकट से बचाने के लिए मध्यप्रदेश के विधायकों को जयपुर में शिफ्ट किया गया. इन्हें भी जयपुर के उसी रिसॉर्ट में रखा गया, जहां महाराष्ट्र के विधायकों ने अपने दो सप्ताह निकाले थे. हालांकि कमलनाथ सरकार अपनी सरकार नहीं बचा पाई. लेकिन जो भी विधायक जयपुर आए थे, उनमें से कोई भी कांग्रेस से नहीं टूटा. वहीं गुजरात में 4 सीटों पर हो रहे राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर भी कांग्रेस विधायकों को जयपुर शिफ्ट किया गया था और लॉकडाउन से ठीक पहले उन्हें वापस उनके राज्य गुजरात भेजा गया था.

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अब एक बार फिर राज्यसभा चुनाव की तारीख का एलान हो चुका है. उसके बाद राजनीतिक लॉकडाउन के खुलने की कड़ी भी गुजरात के विधायकों को राजस्थान भेजकर ही शुरू हुई है. फिलहाल आबूरोड में गुजरात के करीब 21 विधायकों को रोका गया है. जिन्हें राजधानी जयपुर भी लाया जा सकता है. हालांकि कांग्रेस की राजस्थान सरकार की ओर से इसे लेकर अभी इनकार किया जा रहा है. लेकिन राजस्थान के राज्यसभा चुनाव के नतीजों में भले ही कोई फेरबदल बदल ना हो, लेकिन दूसरे राज्यों कि कांग्रेस के लिए भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खेवनहार बने हुए हैं.

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