जोधपुर.शहरों में स्थित महलों और सांस्कृतिक धरोहरों को तो म्यूजियम में तब्दील होते सुना होगा. लेकिन क्या कभी आपने किसी के घर को म्यूजियम में तब्दील होते सुना है, नहीं ना. लेकिन ये बात शत-प्रतिशत बिल्कुल सच है. जी हां, हम बात कर रहे है जोधपुर शहर के भदवासिया क्षेत्र की संकरी गली में स्थित एक आवासीय मकान की. जिसे पूरी तरीके से क्वॉइन म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया है.
इस मकान का निर्माण भी बाकायदा एक संग्रहालय के तर्ज पर ही किया गया है. जिसके चलते यह देखने में भी म्यूजियम की तरह ही लगता है. इस म्यूजियम के बनने के पीछे भी एक छोटी सी कहानी है. दरअसल, इस म्यूजियम के मालिक सुभाष सिंगारिया को 15 साल पहले मेहरानगढ़ पर एक विदेशी पर्यटक ने एक सिक्का दिया था. उस सिक्के को देखने के बाद उन्हें लगा कि क्यों ना ऐसे सिक्कों का कलेक्शन किया जाए.
इसके बाद सिक्कों को जुटाने का दृढ़ निश्चय कर सुभाष ने पर्यटकों से जैसे-तैसे कर अंग्रेजी में बातकर कई विदेश सिक्के हासिल किए. पिछले डेढ़ दशक में अपने शौक को संग्रहालय तक पहुंचाने के लिए सुभाष ने कई जतन किए. इस बीच उन्होंने जिन-जिन जगहों पर पर्यटक जाते थे, उन-उन जगहों पर उन्होंने काम किया. इस दौरान जब दुकान मालिक ने अपनी दुकान बंद करने का फैसला लिया तो इसके बाद सुभाष ने खुद ही क्वॉइन कलेक्शन के लिए दुकान चलानी शुरू कर दी.
सुभाष का अनूठा Coin Museum पढ़ें-Special: शहीदों की कलाइयों पर सजती हैं राखियां...बहनें 'अमर' भाइयों के लिए मांगती हैं दुआ
इस दौरान उन्होंने सैकड़ों की संख्या में विदेशी सिक्के एकत्र किए. कुछ पर्यटक विदेश जाकर भी उन्हें वहां से ऐतिहासिक सिक्के भेजे. जिनकी बदौलत आज सुभाष का सपना पूरा हुआ और उन्होंने एक म्यूजियम खड़ा कर दिया. कई विदेशी सिक्कों को तो राशि देकर भी खरीदी. वर्तमान समय में 180 से अधिक देशों के 10 हजार से ज्यादा सिक्कों का संग्रह इस म्यूजियम में किया गया है.
घर को ही बना डाला Coin Museum इनमें मुगल-ब्रिटिश काल से लेकर प्राचीन भारत, सिंधु सभ्यता सहित 500 साल से ज्यादा पुराने राजा-रजवाड़ों तक के पुराने सिक्के भी मौजूद हैं. इसके साथ ही रोमानिया, जांबिया और कंबोडिया जैसे देशों की क्वॉइन भी कलेक्शन में शामिल हैं. इसके अलावा दुनिया में सिक्के के निर्माण की शुरुआत से लेकर वर्तमान तक टकसालों की जानकारी इस म्यूजियम में प्रदर्शित की गई है. सुभाष के सपने को पूरा करने में सेना से सेवानिवृत्त पिता ने बड़ा योगदान दिया है. उनके पिता ने अपनी पूरी संपति इस पर खर्च कर दी, तब कहीं जाकर करीब एक करोड़ रुपए की लागत से यह म्यूजियम खड़ा हुआ था.
सरकारी विद्यालयों के लिए नि:शुल्क
सुभाष सिंगारिया का कहना है कि यह यह म्यूजियम पूरी तरह से आजिविका का हिस्सा नहीं हो सकता. सेना से सेवानिवृत्त हुए पिता के सहयोग से वह इस काम को कर रहे हैं. सरकारी स्कूलों में जाकर सुभाष पहले बच्चों को सिक्कों और न्यूमेटिक के बारे में बताते हैं. इसके बाद इन स्कूलों से आने वाले विद्यार्थियों के लिए इसमें प्रवेश नि:शुल्क दिया जाता है. इसके अलावा अन्य के लिए दस रुपए प्रवेश शुल्क रखा गया है. हालांकि, लॉकडाउन के चलते अभी म्यूजियम बंद चल रहा है.