जयपुर.राजधानी में लॉकडाउन के बाद सब कुछ खुला, सिवाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट के. लो फ्लोर बस हो या मिनी बस, टैंपो-मैजिक गाड़ी हो या मेट्रो सबके पहिये थमे रहे. जिसकी वजह से शहर वासियों को हर दिन अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ी. स्टूडेंट, व्यापारी, मजदूर हर वर्ग को लॉकडाउन के बाद अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए या तो ऑटो और ई-रिक्शा में दोगुने दाम देने पड़े या फिर निजी वाहनों का इस्तेमाल कर हर दिन पेट्रोल के बढ़ते दामों के साथ सौदा करना पड़ा. सिटी ट्रांसपोर्ट नहीं चलने से अगर एक फायदा हुआ तो वो था शहर का ट्रैफिक, जो जाम नहीं हुआ.
लो फ्लोर बसों की अगर बात की जाए तो शहर में 4 महीने से बसों का संचालन नहीं हो रहा. हालांकि लॉकडाउन से पहले एसी बस सहित 200 बसें संचालित थीं जो शहर के डेढ़ लाख यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने का कार्य करती थीं. करीब 50 हजार किलोमीटर का औसत संचालन रहता था. नॉन एसी बस में न्यूनतम 7 रुपए, जबकि एसी बस का न्यूनतम किराया 10 रुपए था. ऐसे में आम जनता को कम दाम में बेहतर सुविधा मिल रही थी.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट के थमे पहिए...
वहीं, जयपुर मेट्रो में तकरीबन 20 से 22 हजार यात्री प्रतिदिन सवारी किया करते थे, लेकिन इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट के पहिए थमने से लोगों की रफ्तार पर भी ब्रेक सा लग गया. कारण साफ था कि लॉकडाउन के बाद ना सिर्फ लो फ्लोर बसें और मेट्रो पर ब्रेक लगा, बल्कि मिनी बस, टैंपो और मैजिक गाड़ियों का संचालन भी नहीं किया गया.
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शहर में तकरीबन 1250 मिनी बसें और 3500 टेंपो और मैजिक गाड़ियां संचालित रहती हैं. जिसमें तकरीबन 50 से 75 हजार यात्री हर दिन अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल किया करते थे. 32 रूटों पर चलने वाली इन गाड़ियों में न्यूनतम किराया 5 रुपए और अधिकतम 25 रुपए हुआ करता था.
इन यात्रियों में बड़ी संख्या में स्टूडेंट, व्यापारी और मजदूर वर्ग शामिल था. हालांकि अभी स्कूल-कॉलेज बंद होने की वजह से स्टूडेंट की भीड़ सड़कों पर नहीं है. लेकिन बाजार खुलने, कंपनी और फैक्ट्री शुरू होने से व्यापारियों और मजदूर वर्ग को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था.