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Special: सरकारी कंपनियों के निजीकरण से आरक्षण नीति पर पड़ेगा असर, कांग्रेस कर रही विरोध...भाजपा कह रही लाभदायक

केंद्र की मोदी सरकार बड़ी संख्या में सरकारी कंपनियों में विनिवेश करने की तैयारी कर चुकी है. इस साल 23 कंपनियों में विनिवेश की मंजूरी भी मिल चुकी है. जानकर बताते हैं कि विनिवेश के जरिए सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में देकर केंद्र सरकार आरक्षित वर्ग के लिए परेशानी खड़ी कर रही है. निजीकरण से आरक्षण की पॉलिसी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. क्योंकि इससे आरक्षित वर्ग के लाखों बेरोजगारों के लिए नौकरियों के अवसर पर असर पड़ेगा. कांग्रेस जहां सरकार के इस फैसले के विरोध में खड़ी है तो वहीं भाजपा का कहना है कि यह फैसला भविष्य में सबके लिए फायदेमंद होगा. पढ़िए खास रिपोर्ट.

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Published : Feb 25, 2021, 8:23 PM IST

Reservation policy will be affected after privatization of companies, कंपनियों के निजीकरण से आरक्षण नीति होगी प्रभावित
सरकारी कंपनियों के निजीकरण से नुकसान

जयपुर. केंद्र की मोदी सरकार बड़ी संख्या में सरकारी कंपनियों का विनिवेश करने जा रही है. दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र सरकार सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंप रही है. बताया जा रहा है कि इस साल 23 कंपनियों के निजीकरण को मंजूरी इस साल सरकार दे चुकी है. इसके साथ ही नीति आयोग भी लगातार ऐसी कंपनियों की सूची बना रहा है जिन्हें बेचने की कवायद आगामी समय में की जानी है.

सरकारी कंपनियों के निजीकरण से नुकसान

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एक सर्वे के मुताबिक भारत में 384 सरकारी कंपनियां हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि जिस तेजी से सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है, आने वाले दिनों में सरकारी कंपनियों की संख्या घटकर महज 25 से 30 के बीच रह जाएगी. ऐसे में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को सरकारी कंपनियों की नौकरी में मिलने वाले आरक्षण का क्या होगा यह बड़ा सवाल है. एससी, एसटी और ओबीसी को सरकारी कंपनियों में नौकरी में कुल 49.5 फीसदी आरक्षण मिलता है. जानकारों का कहना है कि निजी क्षेत्रों में आरक्षण का फिलहाल कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में इन वर्गों के युवाओं के लिए नौकरी हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा.

अखिल भारतीय आदिवासी विकास संस्थान के प्रदेशाध्यक्ष केसी घुमरिया का कहना है कि सरकार बड़े पैमाने पर सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंप रही है. ऐसे में आदिवासी समाज को आरक्षण देना का प्रावधान भी उन कंपनियों पर लागू नहीं होगा. इसमें एसटी, एससी, ओबीसी के आरक्षण के अंतर्गत आने वालों को काफी नुकसान भी होगा. इस निजीकरण का खामियाजा सर्व समाज को उठाना पड़ेगा. उनका यह भी कहना है कि आरक्षण के कारण गरीब तबके के लोगों को नौकरी मिलती है लेकिन सरकारी कंपनियों के निजीकरण के बाद यह आरक्षण नहीं मिलेगा.

आंकड़ों पर नजर

निजी कंपनियां करेंगी मनमानी

निजी कंपनियां अपने हिसाब से कर्मचारियों की भर्ती करेंगी और तनख्वाह देंगी. अपने हिसाब से ही काम का समय तय करेंगी और कोई सुविधा भी नहीं देंगी. उनका यह भी कहना है कि जब शक्ल या काम पसंद नहीं आएगा तो कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. इसलिए ये बहुत बड़ा मुद्दा है. जो न केवल आरक्षित वर्ग बल्कि सर्व समाज को प्रभावित करेगा. इसके विरोध में उन्होंने संवैधानिक तरीके से आंदोलन करने की भी चेतावनी दी है. उनका यह भी कहना है कि जहां ज्यादा जरूरी हो, उन्हीं कंपनियों का निजीकरण होना चाहिए.घुमरिया की यह भी मांग है कि जहां निजीकरण किया जाता है, उन कंपनियों में आरक्षण का भी प्रावधान लागू किया जाना चाहिए.

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आरक्षण नीति पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभाव

कांग्रेस केंद्र की मोदी सरकार की ओर से सरकारी कंपनियों के निजीकरण करने के फैसले के खिलाफ खड़ी है. प्रदेश कांग्रेस की प्रवक्ता अर्चना शर्मा का कहना है कि जब निजीकरण बढ़ेगा तो स्वतः ही सरकारी सेवा में नौकरियां खत्म हो जाएंगी. और चूंकि आरक्षण का प्रावधान सिर्फ सरकारी सेवा में होता है, निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान नहीं है तो आरक्षण की नीति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. उनका यह भी कहना है कि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग जिसे नौकरियों की सबसे ज्यादा दरकार है ताकि वे मुख्य धारा से जुड़ सकें. उन पर निजीकरण का प्रतिकूल असर पड़ेगा. ऐसे में सरकार का यह कदम आरक्षित वर्ग को मुख्य धारा में लाने के प्रयासों पर भी असर डालेगा.

दूरगामी परिणाम का कर रहे दावा

हालांकि, भाजपा निजीकरण को भी देश और समाज के हित में बता रही है. भाजपा एससी मोर्चा के प्रदेश महामंत्री मुकेश गर्ग का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार की सोच बहुत दूर की है. दूरगामी परिणामों को लेकर सरकार काम कर रही है. केंद्र की मोदी सरकार जो भी कर रही है. वह कहीं न कहीं देश और समाज के लिए आगे जाकर अच्छा परिणाम देगा. पीएम मोदी यदि सरकारी कंपनियों का निजीकरण भी कर रहे हैं, तो देश के हित के लिए सोचकर करेंगे. उसमें भविष्य के लिए चीजों का न्यायसंगत निर्धारण किया जाएगा. उनका यह भी कहना है कि इन सब चीजों में नियम-कायदों का भी ध्यान रखा जाएगा और सब फैसले संविधान के प्रावधानों के अनुसार लिए जाएंगे. इस प्रक्रिया में किसी का भी हक नहीं मारा जाएगा.

उत्तर पश्चिम रेलवे मजदूर संघ के जनरल सैक्रेटरी विनोद मेहता का कहना है कि अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 15 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. विनिवेश के बाद सरकारी कंपनियां निजी हाथों में जाएगी तो आरक्षण की कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि निजी क्षेत्रों में आरक्षण का कोई प्रावधान अभी तक नहीं है. ऐसे में आरक्षित वर्ग के युवाओं का अहित होना निश्चित है. एक अनुमान के मुताबिक सरकारी कंपनियों के निजी क्षेत्र में जाने से अलग-अलग वर्ग के लिए आरक्षित करीब 7 लाख पदों पर असर पड़ेगा.

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