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Special: इस गांव के पुजारियों का पूजा से इनकार, अब मंदिरों में राम भरोसे 'भगवान' - Jaipur Hindi News

कभी इंसान पर जब बुरा वक्त आता है तो लोग कहते हैं कि भगवान ने साथ छोड़ दिया. लेकिन जयपुर जिले के आसलपुर गांव में कहानी ही उल्टी हो गई. यहां इंसान ने बुरे वक्त में भगवान का साथ छोड़ दिया. पुजारी परिवार ने भगवान की सेवा-पूजा करने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि कोरोना काल में उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई है, इसलिए वे भगवान की सेवा पूजा के भरोसे नहीं रह सकते. उधर, ग्रामीण अब भगवान के लिए पुजारी का बंदोबस्त करने में जुटे हैं. देखिये ये खास रिपोर्ट

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इस गांव के पुजारियों का पूजा से इनकार

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Published : Nov 30, 2020, 7:01 AM IST

जयपुर. राजधानी जयपुर से 50 किलोमीटर दूर गांव आसलपुर, जहां प्राचीन मंदिर में अब भगवान की पूजा का संकट गहरा गया है. यहां बरसों से पूजा पाठ कर रहे पुजारियों ने अचानक भगवान की सेवा-पूजा से मुंह मोड़ लिया है. जिसके चलते मंदिर में अब ना आरती हो रही है और ना ही घण्टे-घड़ियाल की गूंज सुनाई दे रही है. बल्कि प्राचीन मंदिर के कपाट बंद पड़े हैं, जिससे भक्त काफी निराश हैं.

इस गांव के पुजारियों का पूजा से इनकार

दरअसल इस गांव के लोगों का कहना है कि उनके पुरखे 400 साल से इन प्राचीन मंदिरों में भगवान की आराधना करते आए हैं. इन मंदिरों में भगवान की सेवा पूजा का जिम्मा सारस्वत ब्राह्मण परिवार के पुजारियों का है. बरसों से पुजारी यहां सेवा-पूजा कर रहे थे. लेकिन पिछले सप्ताह भगवान के अन्नकूट का भोग लगाने के बाद पुजारियों ने मंदिरों में पूजा अर्चना करने से मना कर दिया.

पुजारियों की इस हठधर्मिता ने गांव वालों को भी चिंता में डाल दिया. सवाल यही कि भगवान किसके भरोसे रहेंगे. मंदिरों में सारस्वत समाज के सदस्य हर साल अपने औसरे के मुताबिक सेवा पूजा किया करते थे. लेकिन अचानक ऐसा क्या हो गया जो पुजारियों ने सामूहिक निर्णय लेकर मंदिरों में आरती तक करने से इनकार कर दिया. ग्रामीणों ने पुजारियों से मिन्नतें कीं लेकिन वे टस से मस नहीं हुए. इसके बाद गांव के बड़े बुजुर्गों ने एक जाजम पर बैठकर सारस्वत परिवार को यजमानी में मिलने वाली सभी सुविधाओं से वंचित कर दिया. अब भगवान की सेवा पूजा के लिए दूसरे गांव से पुजारी की तलाश की जा रही है.

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उधर, जानकारी मिली है कि सारस्वत ब्राह्मण परिवार के पुजारियों की आर्थिक स्थिति कोरोना काल में इतनी दयनीय हो चली कि मंदिर के सहारे गुजर-बसर करना मुश्किल हो गया. रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा तो उन्होंने तय किया कि कोई दूसरा काम कर जीवनयापन की कोशिश करेंगे. लिहाजा उन्होंने मंदिरों में पूजा-पाठ से किया इनकार कर दिया.

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