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आमागढ़ में लेपर्ड सफारी के आगाज की तैयारी, ईटीवी भारत पर जंगल की पहली तस्वीर - Leopard Safari in Amagarh

गलता की पहाड़ियों के बीच आमागढ़ में भी बघेरों के करीब से दीदार की तैयारियां (Preparations for start of Leopard Safari in Amagarh) पूरी की जा चुकी है. ईटीवी भारत घने जंगल में जाकर ट्रैक का जायजा लिया और तैयारियों को करीब से देखा. ईटीवी भारत (Amagarh Leopard Safari with ETV Bharat) पर देखिए जंगल की पहली तस्वीर...

Amagarh Leopard Safari with ETV Bharat
Amagarh Leopard Safari with ETV Bharat

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Published : Apr 20, 2022, 1:36 PM IST

जयपुर. शहर में झालाना की जंगलों में लेपर्ड सफारी की शुरूआत के बाद अब गलता की पहाड़ियों के बीच आमागढ़ में भी बघेरों के करीब से दीदार की तैयारियां (Preparations for start of Leopard Safari in Amagarh) पूरी की जा चुकी है. ईटीवी भारत घने जंगल में जाकर ट्रैक का जायजा लिया और तैयारियों को करीब से देखा कि आखिर किस तरह से जंगल से मानवीय दखल को दूर कर जीव जंतुओं के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं. बता दें, झालाना का जंगल करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जहां पर फिलहाल 40 से ज्यादा लेपर्ड अपना आशियाना बना चुके हैं.

16 किमी का है आमागढ़ लेपर्ड रिजर्व: गलता का आमागढ़ लेपर्ड रिजर्व (Amagarh Leopard Reserve) करीब 16 किलोमीटर का है, जिसमें फिलहाल 15 के करीब पैंथर रहते हैं. इसी तरह से नाहरगढ़ का जंगल करीब 55 वर्ग किलोमीटर का है, जहां पर जंगलात महकमे के मुताबिक 20 के करीब पैंथर अपना घर बनाकर रह रहे हैं. ऐसे में झालाना से गलता होते हुए नाहरगढ़ को अगर जोड़ा जाए तो फिर यह कॉरिडोर सरिस्का तक जुड़ सकता है. फिलहाल, आमागढ़ को विकसित करने के पीछे माना जा रहा है कि यही कवायद है.

ईटीवी भारत पर आमागढ़ लेपर्ड सफारी की पहली तस्वीर

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गलता के जंगल में क्या है खास : जब भी आमागढ़ की लेपर्ड सफारी (Leopard Safari in Amagarh) की बात होगी, तो इसकी तुलना झालाना के बघेरों के आशियाने से होना लाजमी है. इस लिहाज से अगर जंगल की तुलना की जाए तो फिर झालाना की अपेक्षा में आमागढ़ यानी गलता के जंगल कुछ घने हैं. लेकिन यहां पर वन्यजीवों के भोजन के रूप में अन्य जीवों को लगातार बनाए रखना चुनौतीपूर्ण भी है. लिहाजा वन विभाग ग्रास लैंड डेवलपमेंट के कंसेप्ट पर काम कर रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा जंगली जीवों को यहां से बाहर का रुख नहीं करना पड़े.

12 किमी लंबा ट्रैक:गलता क्षेत्र में 12 किलोमीटर लंबे ट्रैक बनाए गए हैं. इसके अलावा वन्यजीवों के लिए 6-7 वाटर पॉइंट बना दिए गए हैं. दिल्ली रोड होते हुए नाहरगढ़ को जोड़ने वाली पहाड़ी पर भी एक ऊंचा ट्रैक जल्द ही पूरा होने वाला है, जो इस सफर को और रोमांचक बना देगा. इसके अलावा जंगलों में बने मंदिर भी यहां आने वाले लोगों के लिए रोमांच और आस्था को जीवंत बना देंगे.

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झालाना के बघेरों को भी आमागढ़ आया रास:आमागढ़ यानी गलता जी के जंगलों में वन्यजीव प्रेमियों के मुताबिक 8 बघेरे पहचाने गए हैं, जो कभी झालाना का हिस्सा हुआ करते थे. इनमें करण, तारा सिंह, अर्जुन और प्रिंस जैसे नाम भी शामिल हैं. वहीं, तीन शावक वाली पारो और क्लीयोपैट्रा फीमेल लेपर्ड भी इनमें शामिल है. माना जाता है कि किसी वक्त झालाना में आपसी संघर्ष से बचने के लिए और पानी और खाने की तलाश में यह लेपर्ड बाहर का रुख करते हुए इस इलाके में आए और फिर यहीं के होकर रह गए. झालाना के लेपर्ड चूल गिरी का पहाड़ लांघकर आगरा रोड पर बनी टनल के ऊपर के प्राकृतिक रास्ते से होकर चूलगिरी और विद्याधर का बाग पार करते हुए यहां तक आते हैं.

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क्या-क्या दिखा जंगल में : ईटीवी भारत की टीम जब आमागढ़ के जंगलों (Amagarh Leopard Safari with ETV Bharat) में पहुंची तो वहां बने पहले ट्रैक से होते हुए करीब 2 किलोमीटर आगे वाटर पॉइंट में लेपर्ड के शिकार को देखा. यहां फॉरेस्टर बताते हैं कि नजदीक में बघेरे का पगमार्क भी है और शिकार करीब एक हफ्ता पुराना है. उन्होंनेz बताया कि तेज गर्मी के दौर में दिन के वक्त में यहां के जंगली जीव ऊंचे पहाड़ पर बने पेड़ों के बीच अपना आसरा ले लेते हैं और शाम को सूरज ढलने के बाद पानी पीने के साथ ही वे अपने खाने की तलाश में जुट जाते हैं. इस दौरान जंगल में लोमड़ी का एक परिवार भी ईटीवी ने देखा तो नीलगाय बड़ी संख्या में विचरण करती हुई नजर आई. ट्रैक पर एक मर्तबा जंगली खरगोश को भी दौड़ते हुए देखा गया. विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों ने इस दौरान इलाके में अपने घरौंदे तैयार कर दिए थे.

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आबादी के दखल की रही चुनौती : किसी भी जंगल को जब आबाद करना होता है, तब वहां से मानवीय दखल को भी कम किया जाना जरूरी होता है. गलता जी के जंगलों के साथ भी कुछ ऐसा ही है जो तीन तरफ से मानवीय बस्तियों के द्वारा घिरा हुआ है. ऐसे में खास तौर पर आमेर इलाके की खोर क्षेत्र की आबादी को और वहां के मवेशियों का जंगल में प्रवेश रोकना चुनौतीपूर्ण था. इस वजह से न सिर्फ बस्तियों में जाकर लोगों को समझाया गया बल्कि जंगल में अलग-अलग जगह पर पोस्ट तैयार कर बार-बार अंदर दाखिल होने वाले लोगों को रोकना और समझाइश करने का काम भी पुरजोर तरीके से किया गया.

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