जयपुर.राजधानी के परकोटे में पहले गणगौर की सुबह ईसर गणगौर को थाली में बैठाकर ढोल के साथ भ्रमण कराती महिलाओं का समूह देखने को मिलता था, लेकिन शुक्रवार को ये गलियां सूनी देखने को मिल है. दरअसल, कोरोना संक्रमण काल के चलते सरकार की ओर से लॉक डाउन किया गया है और इसी का असर उन गरीब परिवारों पर भी पड़ रहा है, जो ईसर गणगौर की प्रतिमाओं का बेचान करने के लिए शहर के छोटी चौपड़ पर अपनी दुकानें सजाया करते थे.
लॉक डाउन के चलते गरीब तबकों का हुआ बुरा हाल इस क्रम में राजधानी के परकोटे में प्रतिमाओं की दुकान लगाने वाली शांति देवी इन दिनों खासा परेशान है, दरअसल, इसका मुख्य कारण है, कोरोना के चलते देश में हुई लॉक डाउन. इस दौरान उनकी आंखों में आंसू, माथे पर चिंता की गहरी लकीरें देखने को मिली. तकरीबन 1 महीने पहले शांति देवी ने 10 हजार रुपए जमा कर अजमेर से ईसर गणगौर की प्रतिमाएं खरीदकर जयपुर लेकर आई. चूंकि जयपुर में गणगौर का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, ऐसे में उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भी उनकी सभी प्रतिमाएं बिक जाएंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
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बता दें कि कोरोना संक्रमण के चलते प्रदेश भर में लॉक डाउन है, जिसके चलते राजधानी की मुख्य मार्गों पर सन्नाटा पसरा हुआ है और गलियां सूनी पड़ी है. छोटी चौपड़ पर शांति देवी और उन जैसे कई विक्रेता ईसर गणगौर की दुकानें सजाए सिर्फ ग्राहकों की राह ताक रहे हैं. इस पर शांति देवी का कहना है कि जिस ईसर गणगौर को खरीदने वालों का हुजूम लगा रहता था, इस बार उनकी एक प्रतिमा तक नहीं बिक पाई है और अब उनके पास सिर्फ आंसू बहाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है.
दरअसल, इन ईसर गणगौर की प्रतिमाओं के दाम भी बहुत ज्यादा नहीं है. किसी का दाम 50 रुपए जोड़ा रखा गया है तो कोई 80 रुपए में बिक रहा है. इसके बावजूद इसका कोई खरीददार नहीं है. इसी क्रम में विक्रेता गंगाराम ने भी अपनी पीड़ा बताई और कहा कि 3 दिन से ऐसे ही बैठे हैं और कोई खरीददार उन तक नहीं पहुंचा. साथ ही कहा कि जिस जमा पूंजी से ईसर गणगौर की प्रतिमाएं खरीद कर बेचने के लिए जयपुर तक लाए, वो माथे ही पड़ रहा है.
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इन दुकानदारों का कहना है कि ये तो सिर्फ 10 फीसदी माल ही है, बाकी का 90 प्रतिशत तो पैक ही है. इसे तो सिर्फ बेचने के लिए खोला गया था. लेकिन कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते हुए लॉक डाउन ने तो इनकी जीवन गाथा ही रोक कर रखी है, जिसकी वजह से ये प्रतिमाएं सिर्फ एक प्रकार की प्रदर्शनी ही बनकर रह गई हैं. इतना ही नहीं ये ऐसी प्रदर्शनी है, जिसे कोई देखने वाला तक नहीं है.