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Special : ERCP पर जारी है सियासत, रामगढ़ पर आंखें मूंदकर बैठे नेता...

राजस्थान में ईआरसीपी पर सियासत (Politics on ERCP) जारी है, लेकिन रामगढ़ पर नेताओं ने आंखें मूंद ली हैं. जयपुर समेत आसपास के इलाके के लिए किसी दौर में 'लाइफलाइन' रहे इस बांध का गला आज सूखा हुआ है. पानी को लेकर स्थानीय बाशिंदे भी परेशान हैं, लेकिन सियासत नए प्रोजेक्ट को लेकर जारी है और पुराना हाशिए पर चला गया है. देखिए जयपुर से ये खास रिपोर्ट...

ERCP vs Ramgarh Bandh
रामगढ़ पर आंखें मूंदकर बैठे नेता...

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Published : Aug 9, 2022, 9:59 AM IST

जयपुर. ईस्टर्न राजस्थान कैनल प्रोजेक्ट को लेकर पूरे प्रदेश में सियासत परवान पर है. रविवार को दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस प्रोजेक्ट के लिए फंड जारी करने की मांग की थी. आदिवासी दिवस के मौके पर राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता किरोड़ी लाल मीणा (Kirodi Lal Jal Kranti Yatra) अपने बैनर तले एक यात्रा के जरिए की ERCP का मसला उठाने वाले हैं. इन सबके बीच किसान भी लगातार इसी मसले को लेकर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहा है. सबको पानी चाहिए और इस पानी के लिए सरकारों को बजट की जरूरत है.

ईटीवी भारत राजधानी जयपुर समेत आसपास के इलाके के लिए किसी दौर में वाटर लाइफलाइन रहे रामगढ़ बांध की आज की हालत आपको दिखाने जा रहा है. 100 साल से भी ज्यादा पुराने इस बांध का गला आज सूखा हुआ है. साल 2005 के बाद ही इस बांध में पानी नहीं आया. वह भी एक दौर था जब साल 1981 में आयोजित एशियाड खेल प्रतियोगिता में नौकायन के मुकाबले (Condition of Jaipur Ramgarh Dam) जयपुर में रामगढ़ बांध पर आयोजित किए गए थे. इस ऐतिहासिक विरासत और प्रमुख पेयजल स्रोत रहे बांध की स्थिति को लेकर आज स्थानीय बाशिंदे भी परेशान है, लेकिन सियासत नए प्रोजेक्ट को लेकर जारी है और पुराना हाशिए पर चला गया है.

रामगढ़ बांध को लेकर क्या कहते हैं लोग...

स्थानीय लोगों की उम्मीदों का बांध : जयपुर के रामगढ़ बांध के आसपास मजदूरी और चरावे का काम करने वाले सीताराम और कजोड़ कहते हैं कि सरकारी अगर चाहे तो क्या नहीं मुमकिन है, बरसात भी कम है और सरकार की मंशा भी कमजोर है, वरना रामगढ़ बांध कभी सूखा नहीं होता. कजोड़ 1981 में आई बाढ़ का जिक्र करते हुए बताते हैं कि 65 फीट स्तर के इस बारे में जब चादर चली तो 4 फीट ऊपर तक रपट से पानी निकल कर गया था. इस दौरान बांध के सामने का गड्ढा बताते हुए कहते हैं कि वे सब प्रत्यक्षदर्शी थे और बाढ़ के कारण ही बांध के नजदीक बड़ा गड्ढा बन गया था. खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने आकर बांध के दरवाजे खुलवाए थे.

स्थानीय निवासी अंकुर माहेश्वरी बताते हैं कि बांध के सूख जाने के बाद आसपास के गांव के लोगों के रोजगार के साधन ही सीमित हो गए, लिहाजा ग्रामीणों ने शहर की तरफ पलायन तेज कर दिया. अंकुर बताते हैं कि बांध की सूखने के बाद भूमिगत जल पर किसान निर्भर हो चुके हैं, लिहाजा लगातार जल स्तर में भी गिरावट देखी जा रही है. बांध में पानी पहुंचाने वाली बाणगंगा और ताला जैसी मुख्य नदियां अतिक्रमण की चपेट में है और सरकारें इस पर मूकदर्शक बनकर देख रही है. स्थानीय निवासी और राजपूत समाज के नेता लक्ष्मण सिंह जी कहते हैं कि 81 का वह दौर आज की तुलना के हिसाब से सुनहरा युग था. जिस बांध ने 50 बरस तक जयपुर को पानी पिलाया है वह बाद आज सूखा पड़ा हुआ है. सरकार थोड़ी सी इच्छा शक्ति दिखाए तो कायापलट कर सकती है.

ईआरसीपी पर किरोड़ी लाल के बोल : 9 अगस्त को महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर अगस्त क्रांति का आगाज किया था. इस मौके पर विश्व आदिवासी दिवस भी मनाया जाता है. राज्यसभा सांसद और बीजेपी नेता किरोड़ी लाल मीणा इस दिन ERCP पर जल क्रांति यात्रा निकालेंगे. पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के जरिए चंबल का पानी प्रदेश के 13 जिलों में लाए जाने की योजना है. सांसद किरोडी लाल मीणा का कहना है कि अगस्त क्रांति की तर्ज पर जल क्रांति का नाम देख कर भेज चंबल के व्यर्थ बह रहे और कैद में पड़े पानी को आजाद करवा कर लाना चाहते हैं. किरोड़ी लाल मीणा वही नेता हैं, जिन्होंने एक दौर में रामगढ़ बांध के लिए भी आवाज उठाई थी और फिर उसका नतीजा क्या रहा आज रामगढ़ बांध की हालत के रूप में सबके सामने है. किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि 75 हजार लोगों के साथ जयपुर आकर मुख्यमंत्री आवास का घेराव करेंगे, लेकिन सवाल यह है कि रामगढ़ बांध का क्या ?

किसने क्या कहा, सुनिए...

जन समस्या निवारण मंच की मांग : जयपुर में सामाजिक कार्यकर्ता और जन समस्या निवारण मंच के अध्यक्ष सुरेश सोनी ने भी मांग की है कि रामगढ़ बांध पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. सूरज सोनी ने कहा कि अच्छी बारिश के दौर में प्रदेश की नदियों के जरिए ज्यादातर बांधो तक पानी पहुंचा है. उन्होंने कहा कि डेढ़ दशक से भी ज्यादा वक्त से रामगढ़ बांध जो कभी जयपुर की प्यास बुझाता था, आज खुद प्यासा दिख रहा है. सरकारें डीपीआर बनाती है, लेकिन उन्हें अमल में नहीं लाया जाता है. सूरज सोनी ने कहा कि सरकार अगर प्रयास करें तो जयपुर के साथ-साथ भरतपुर तक के हिस्से को रामगढ़ बांध से पानी मिल पाएगा. साथ ही पर्यावरण के लिहाज से भी यह खासा उपयोगी होगा. सरकार को रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने की तरफ ध्यान देना चाहिए.

यह हुआ बांध के साथ :रामगढ़ बांध में मुख्य रूप से पानी लाने वाली नदी बाणगंगा है, जिसका उद्गम स्थल विराटनगर है बाणगंगा विराट नगर से बहकर शाहपुरा और आमेर तहसील होकर जमवारामगढ़ में प्रवेश करती है. बाणगंगा और रामगढ़ बांध के पास ही रोड़ा नदी है जिस पर एक बांध बना दिया गया है. इस नदी पर रामगढ़ तक जोड़ने वाले मुख्य नाले पर सीमेंटेड सड़क के बाद एक नाला बना दिया गया है, जिसके कारण यह पानी रामगढ़ बांध तक नहीं पहुंच पाता है. रामगढ़ बांध का केचमेंट एरिया करीब 759 किलोमीटर का है इसके क्षेत्र में आमेर शाहपुरा और विराट नगर तहसील आती है. हालात यह है कि बांध के कैचमेंट में ही 431 एनीकट चेक डेम और अन्य जलाशय बन गए हैं. 2 मीटर से ऊंचे एनीकट को 2 मीटर तक के लेवल पर कर दिया गया, लेकिन उसके बावजूद भी पानी यहां तक नहीं पहुंच पा रहा है.

बांध में पानी की सप्लाई रुकने के बाद इसकी केचमेंट एरिया में रिसोर्ट, फॉर्म हाउस और निजी कॉलोनी अभी काट दी गई है. राजस्थान हाई कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी ने भी बांध को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए और 4 तहसीलों में करीब 636 अतिक्रमण चिन्हित किए इन अतिक्रमण को हटाने के लिए प्रमाण पत्र भी बनाए गए परंतु प्रशासनिक मनसा में कमजोरी के कारण ही काम अंजाम तक नहीं पहुंच पाया. माधोवणी नदी में तो पानी आए अरसा हो चुका है, वरना सीकर जिले से सटे नायन, अमरसर, बिशनगढ़ जैसे गांव से भी इस नदी के जरिए पानी रामगढ़ बांध तक पहुंचता था.

वहीं, शाहपुरा में माधोवेणी आमेर से आने वाली नाली अतिक्रमण चेक डैम एनीकट कलाइयां जोहड़ पोखर में तालाब बनाने से बंद हो गए हैं और अब नदी तक पानी नहीं पहुंच रहा है. रामगढ़ बांध की पाल के पास अब पाल पर लगे बालू पत्थर उखड़ चुके हैं. बांध का भराव क्षेत्र पूरी तरह से विलायती बबूल की चपेट में है. राज्य सरकार ने इस बांध को पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना में शामिल किया है, लेकिन केंद्र सरकार ने से इनकार कर दिया है. 2018 से यह प्रोजेक्ट फिलहाल लंबित है और जयपुर जिले के कई कस्बों में ईआरसीपी से इस बांध को जोड़ने की मांग उठा रहे हैं.

पढ़ें :Gehlot on ERCP : 'ईस्टर्न कैनाल परियोजना को बंद नहीं किया जाएगा, सरकार ने किया बजट आवंटन'

यह है बांध का इतिहास : सन 1899 में भीषण छप्पनिया अकाल की पीड़ा को देखने के बाद तत्कालीन महाराजा सवाई माधव सिंह द्वितीय ने सबसे पहले इस बांध को तैयार करवाया था. बांध से जयपुर में पेयजल की सप्लाई के अलावा 120 मील तक के क्षेत्रफल में सिंचाई के लिए भी पानी पहुंचाया जाता था. रामगढ़ बांध 2005 से पहले कभी नहीं सूखा और 2005 के बाद यह मृतप्राय नजर आ रहा है.

ईआरसीपी के पहले भी बनी योजना : पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना से पहले भी मेज रामगढ़ लिफ्ट परियोजना साल 2012-13 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बनाई थी. इस योजना के तहत चंबल नदी की सहायक नदी मेज के सर प्लस पानी को रामगढ़ बांध में लिफ्ट प्रोजेक्ट के तहत पहुंचाने का फैसला किया गया था. इस प्रोजेक्ट में पेयजल और सिंचाई जल का इंटरनेशन ट्रांसफर किया जाना भी तय किया गया था. तब प्रोजेक्ट की लागत करीब 1909 करोड रुपए तय की गई थी.

प्रोजेक्ट में करीब 160 किलोमीटर लंबी कैनाल को रामगढ़ बांध और रास्ते में आने वाले छोटे-मोटे 29 जल स्रोतों को भरने के लिए बनाया गया था. इसके रास्ते में चार बड़े पंप स्टेशन भी प्लान की गए थे. बाद में प्रोजेक्ट में ईसरदा बांध को भी जोड़ा गया, लेकिन सरकार बदली तो यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई. इसके बाद 2018-19 के बजट में ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट का ऐलान कर दिया गया और तब करीब 37000 करोड़ रुपए इस के बजट को तय किया गया, जिसे तीन चरण में पूरा करना था और इसमें रामगढ़ बांध को भी सजीव किया जाना शामिल था.

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