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जयपुर वासियों ने एक स्वर में कहा अब 'INDIA' नहीं देश का एक ही नाम हो 'BHARAT'

सुप्रीम कोर्ट में देश का नाम 'इंडिया' की जगह 'भारत' करने की याचिका दायर हुई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि हमारे देश का नाम इंडिया की जगह भारत ही होना चाहिए. साथ ही यह भी दलील दी गई है कि इंडिया शब्द गुलामी की निशानी है. जिसकी जगह भारत या हिंदुस्तान का इस्तेमाल किया जाए.

Change Country Name, देश का नाम बदले
'इंडिया' की जगह 'भारत' करने की याचिका दायर हुई है

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Published : Jun 2, 2020, 6:52 PM IST

जयपुर. सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर 'इंडिया' शब्द हटाने को लेकर याचिका दायर हुई है. जिस पर मंगलवार को सुनवाई होगी. अनुच्छेद कहता है कि भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इसकी जगह संशोधन करके इंडिया शब्द हटाकर, भारत या हिंदुस्तान कर दिया जाए. हालांकि अभी याचिका पर फैसला आना बाकी है. इससे पहले जयपुर वासियों का देश के नाम को लेकर क्या मत है, ये जाना ईटीवी भारत ने.

'INDIA' नहीं देश का एक ही नाम हो 'BHARAT'

संविधान के पहले अनुच्छेद में ही लिखा है कि इंडिया यानी भारत. अब ऐसे में सवाल उठता है कि जब देश एक है तो नाम एक क्यों नहीं. यह मामला एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दर्ज कराया. जिस पर मंगलवार को सुनवाई होगी. दलील है कि इंडिया शब्द गुलामी की निशानी है. ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर इंडिया शब्द हटा दिया जाए. जिसकी जगह जगह भारत या हिंदुस्तान का इस्तेमाल किया जाए.

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इसे लेकर ईटीवी भारत ने शहर के युवाओं और बुजुर्गों से उनकी राय जानी. यहां लोगों ने एक स्वर में कहा कि इंडिया गुलामी की निशानी है, ये नाम अंग्रेजों से मिला है. जबकि भारत नाम महाराजा भरत ने जब देश का संपूर्ण विस्तार किया था, उस वक्त उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम पड़ा था. यही नहीं सनातन धर्म और पुराणों में भी देश को भारत नाम से ही संबोधित किया गया है.

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लोगों ने तर्क दिया कि जब देश एक है, राष्ट्रीय ध्वज एक है, संविधान एक है, तो नाम भी एक ही होना चाहिए, वो भी भारत. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान शहरवासियों ने भारत माता के नारे भी लगाए. हालांकि खेल के मैदानों में आज भी इंडिया इंडिया के नारे ही सुनाई देते हैं. वहीं वर्ल्ड वाइड भी देश को इंडिया के नाम से ही पुकारा जाता है. ऐसे में अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रहेंगी.

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