जयपुर. राजधानी में लॉकडाउन के बाद सब कुछ खुला, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट लो फ्लोर बस और मेट्रो ट्रेन के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा. इसकी वजह से स्टूडेंट, मध्यमवर्गीय नौकरी पेशा और कामगारों को आवागमन में काफी समस्या का सामना करना पड़ा. निजी वाहन से काम पर पहुंचने के लिए उन्हें अधिक पैसे खर्च करने पड़े. देर से दफ्तर पहुंचने पर कुछ फटकार झेलनी पड़ी तो कुछ को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ गया. संक्रमण काल में जिंदगी से दोहरी जंग लड़ते हुए कुछ ने खुद को संभाल लिया और कुछ हिम्मत हार बैठे.
आम जनता ने लॉकडाउन खुलने के बाद भी सफर किया. अनलॉक का शुरुआती दौर कुछ ऐसा था कि लोग अपने घरों को लौटने के लिए साधन के अभाव में पैदल ही घर के लिए निकल पड़े थे. पब्लिक ट्रांसपोर्ट बंद थे ऐसे में परिवार के साथ यूं ही मीलों का सफर तय करने लोग निकल पड़े थे. वहीं कामगार और नौकरी पेशा लोग रोजाना समय से घंटों पहले ड्यूटी जाने के लिए घरों से निकल लेते थे ताकि कोई निजी वाहन भी न मिलने पर पैदल ही घंटे भर में काम पर पहुंच जाएं.
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राज्य सरकार के निर्देश पर लॉकडाउन के बाद शहर तो अनलॉक हुआ लेकिन जेसीटीएसएल की लो फ्लोर बस, प्राइवेट मिनी बस, टेंपो-टैक्सी और मेट्रो ट्रेन काफी समय तक बंद ही रहीं. इसकी वजह से आम जनता को अपने गंतव्य तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी. लो फ्लोर बसों की बात की जाए तो शहर के डेढ़ लाख यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने का कार्य करती थीं.
करीब 50 हजार किलोमीटर का रोजाना का औसत संचालन रहता था. जिसमें मध्यमवर्गीय और फैक्ट्रियों में काम करने वाले कामगार बड़ी संख्या नियमित सफर किया करते थे. लेकिन सिटी ट्रांसपोर्ट बस सेवा बंद रहने की वजह से इन लोगों को अनलॉक होने के बाद भी जीविकोपार्जन के लिए खासी परेशानी का सामना करना पड़ा. कुछ को काम पर देरी से पहुंचने पर फटकार लगी तो कुछ की तो नौकरी पर ही बन आई.