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स्पेशल : मदरसों को आधुनिक बनाने के लिए बजट घोषणा तो हुई लेकिन धरातल पर नहीं हुआ काम

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Published : Feb 12, 2020, 3:20 PM IST

मुख्यमंत्री गहलोत के बजट से हर कोई उम्मीद लगा रहा है. ऐसे में फिर से उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार के बजट में मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए बजट मिलेगा. देखें ये स्पेशल रिपोर्ट...

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मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए बजट से आस

जयपुर. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसी महीने में बजट पेश करने वाले हैं. इस बजट को लेकर अलग-अलग तबकों के लोग काफी उम्मीद जता रहे हैं. ऐसी ही उम्मीद मदरसों को लेकर जताई जा रही है. आज भी प्रदेश के अधिकतर मदरसे इन्फ्राट्रक्चर, कंप्यूटर, उर्दू की किताबें आदि के लिए जूझ रहे हैं.

मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए बजट से आस

पिछली बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 5 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी लेकिन जयपुर शहर में ही काफी संख्या में ऐसे मदरसे हैं, जिन्हें आधुनिकीरण के नाम पर एक भी पैसा नहीं मिला. आज भी अल्पसंख्यक इलाकों के मदरसे इंफ्रास्ट्रक्चर, कंप्यूटर किताबों आदि के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. राजस्थान उर्दू शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमीन कायमखानी ने बताया कि पिछली बार जो 5 करोड़ रुपए की घोषणा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की थी, वह ऊंट के मुंह में जीरे जैसा था. उर्दू तालीम को तवज्जो नहीं दी गई.

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आज मदरसों में मदरसा पैरा टीचर, मदरसा कंप्यूटर पैरा टीचर आदि के लिए काम करने की आवश्यकता है. मदरसा पैराटीचर को आज भी 9 हजार 500 रुपए से ज्यादा का मानदेय नहीं मिलता है. ऐसी स्थिति में क्वालिटी एजुकेशन की बात बेमानी साबित होती है. अमीन कायमखानी ने कहा कि सरकार को मदरसों के आधुनिकरण के साथ ही पैराटीचर के मानदेय और उनके नियमितीकरण के बारे में भी सोचना चाहिए. अमीन कायमखानी ने कहा कि मदरसा आधुनिकीकरण के जो मापदंड है, वह बहुत कठिन है. कुछ मदरसे ही उनको पूरा कर पाते हैं. इसलिए उन्होंने इन मापदंडों में छूट की मांग की.

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पिछले बजट के अनुसार सरकार को 500 मदरसे इस तरह के चिन्हित करने थे, जहां आधुनिकीकरण का काम करना था, लेकिन वहां काम नहीं हो सका. साथ ही अमीन कायमखानी ने कहा कि यदि मदरसों में गुणवत्ता की शिक्षा का प्रबंध करना है तो जिस तरह से सामान्य शिक्षा को सहायता दी जाती है, उसी तरह से मदरसों की भी मदद करनी होगी.

मदरसा पैराटीचरों का कहना है कि सरकार की सहायता केवल उन मदरसों तक पहुंचती है, जो स्कूलों में चलते हैं. वह अपने रसूखात का फायदा उठाकर सरकार से मदद ले लेते हैं लेकिन जो मदरसे समाज और मस्जिद के नाम से चलते हैं, वह सरकार की मदद से महरूम रह जाते हैं. पैराटीचरों ने मांग की कि बच्चों को आगे बढ़ने के लिए सरकार को पूरी सुविधाएं देनी चाहिए.

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