जयपुर.आरक्षण विशेषज्ञ और समता आंदोलन के अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा (Parashar Narayan Sharma)ने कहा कि इस बिल को जातिवादी राजनेताओं (casteist leaders) के दबाव में लाया जा रहा है. इससे प्रभावशाली जातियों का दबाव बढ़ेगा और आरक्षण की लूट मचेगी. इससे मूल रूप से जरूरतमंद गरीब, पिछड़े को लाभ नहीं मिलेगा. राज्य सरकारें प्रभावशाली जातियों के दबाव में आ जाएंगी.
पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि 15 अगस्त 2018 को 102वां संविधान संशोधन कर पूरे देश में ओबीसी में जातियों को जोड़ने और हटाने की शक्तियां जो राज्य सरकार से पास थीं वो उनसे हटाकर संसद (Parliament) के पास चली गई थी. इस बिल के बाद उसमें तय कर दिया गया था कि संविधान संशोधन (constitutional amendment) के द्वारा ही ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) में छेड़छाड़ हो सकती है.
राज्य सरकार सिर्फ और सिर्फ रिकमेंड करेगी. उस रिकमेंड पर एनसीबी (NCB) को एग्जामिन करना होता था. एनसीबी इसका अध्ययन करने के बाद में उसको अप्रूव करती और उसके बाद सदन में इसे पेश किया जाता है. इसके बाद ही उस पर कोई निर्णय होता था. राष्ट्रपति (President) उसका अनुमोदन करते थे.
हालांकि 2018 के बाद से लेकर अब तक एक भी जाति को न ओबीसी में जोड़ा गया और न हटाया गया. लेकिन पिछले दिनों मराठा आंदोलन (Maratha Movement) के वक्त महाराष्ट्र में इसको लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में भी याचिका लगी. जिसमें कोर्ट ने साफ़ किया था कि 2018 के विधेयक के बाद राज्य सरकार को किसी जाति को ओबीसी में जोड़ने और हटाने का अधिकार नहीं है.
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इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया था कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण भी नहीं दिया जा सकता. पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट के फैसला आया उसके बाद जातिवादी राजनीति करने वालों का दबाव लगातार बढने लगा और उसी दबाव के बीच केंद्र सरकार ने अब नया 127वां संशोधन बिल सदन में रखा है. उसमें राज्य सरकारों को यह अधिकार दिए जा रहे हैं कि वह ओबीसी वर्ग में किसी भी जाति को जोड़ सकती है या हटा सकती है. इससे मूल रूप से जो जरूरतमंद, गरीब, पिछड़ी जातियां हैं उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा.
जातिवादी राजनेताओं का दबाव बढ़ेगा
पाराशर नारायण शर्मा ने कहा कि सरकार एक बार फिर प्रभावशाली जातियों के दबाव में आई. जहां एक जाति का प्रभाव होगा वह जाति सरकार के ऊपर दबाव बनाने में कामयाब होगी. 102वें विधेयक में यही प्रावधान किए गए थे. संसद ही सब कुछ तय करेगी. ऐसे में राजनीतिक पार्टियां जातिगत आधार पर दबाव में आकर राज्य सरकार के जरिए अनुशंसा करवा लेती थीं. लेकिन संसद यह दबाव काम में नहीं ले सकती थी.
अब जब यह अधिकार राज्य सरकार के पास चले जाएंगे तो एक बार फिर दबंग और प्रभावशाली जातियां सरकार को अपने प्रभाव में ले लेंगी. इससे जो जरूरतमंद जातियां हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा. यह बिल जातिवादी राजनीति को बढ़ावा देने वाला बिल है. यह केंद्र सरकार का जातिवादी राजनीति करने वालों के सामने समर्पण है.