जयपुर. शहर का मोती डूंगरी इलाका इन दिनों एक पैंथर का घर बना हुआ है. पिछले 10 दिन से पैंथर मोती डूंगरी इलाके में छुपा हुआ है. वन विभाग की टीमें लगातार पैंथर को सर्च कर रही है. पैंथर को पकड़ने के लिए दो पिंजरे भी लगाए गए हैं. इसके अलावा 5 कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं. कैमरा ट्रैप में पैंथर की तस्वीरें कैद हुई हैं. लेकिन अभी तक पैंथर को रेस्क्यू करने में सफलता हासिल नहीं हो पाई है. आबादी क्षेत्र में पैंथर का मूवमेंट होने से लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है.
पैंथर पिंजरे के आसपास मूवमेंट करके चला जाता है, लेकिन पिंजरे के अंदर नहीं आया. सर्च ऑपरेशन के दौरान वन विभाग की टीम को भी पैंथर नजर नहीं आ रहा है. आखिर पैंथर कहां से आया है और कैसे मोती डूंगरी तक पहुंचा और यह कौन सा पैंथर है ? पैंथर की पहचान और इन तमाम बातों को लेकर झालाना लेपर्ड रिजर्व के रेंजर जनेश्वर चौधरी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. चौधरी ने बताया कि वन विभाग की टीमें लगातार पैंथर को सर्च कर रही हैं. अधिकारी भी मॉनिटरिंग कर रहे हैं.
मोती डूंगरी इलाका बना हुआ है पैंथर का घर वन्यजीव पशु चिकित्सक के नेतृत्व में टीम पैंथर को ट्रेंकुलाइज करने का प्रयास कर रही है. पैंथर को पकड़ने के लिए दो पिंजरे भी लगाए हुए हैं. 5 कैमरा ट्रैप लगा रखे हैं. कैमरा ट्रैप में पैंथर की तस्वीरें कैद हुई है, हालांकि पैंथर पिंजरे के अंदर नहीं आया. मोती डूंगरी इलाका झालाना जंगल से जुड़ा हुआ है और राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर में काफी पेड़ पौधे हैं. ऐसे में झालाना जंगल से वन्यजीव राजस्थान यूनिवर्सिटी होते हुए मोती डूंगरी तक पहुंच जाते हैं.
मोती डूंगरी इलाके में कौन सा लेपर्ड छुपा है
चौधरी ने बताया कि मोती डूंगरी इलाके में जो पैंथर छुपा हुआ है, वह करीब डेढ़ से दो वर्ष की फीमेल है. इस पैंथर की आईडी पहले से मौजूद नहीं थी. ऐसा प्रतीत होता है कि झालाना जंगल की पेरीफेरी पर जो मादाएं हैं, वह झालाना जंगल के अंदर मूवमेंट नहीं करती है, उनमें से किसी एक का शावक है. कुछ लेपर्ड्स जंगल के बाहरी तरफ अपनी टेरिटरी बनाकर रहते हैं. उनमें से ही एक लेपर्ड का यह शावक है, जो मोती डूंगरी इलाके में छुपा हुआ है.
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आबादी क्षेत्रों में क्यों आते हैं लेपर्ड?
चौधरी ने बताया कि लेपर्ड को डेढ़ वर्ष का होते ही उसकी मां अपने से अलग कर देती है. मां से अलग होने के बाद लेपर्ड अपना अलग एरिया बना लेते हैं. एरिया की तलाश करते हुए लेपर्ड जंगल से बाहर आ जाते हैं. इसी तरह पिछले दिनों यह लेपर्ड भी झालाना जंगल से अपने एरिया की तलाश में निकल कर आबादी क्षेत्र में आ गया था.
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गलता जंगल को विकसित करने से वन्यजीवों को होगा फायदा
चौधरी ने बताया कि गलता जंगल को डवलप करने का मूल उद्देश्य यह है कि झालाना लेपर्ड संरक्षण के जो कार्य हुए हैं, उनके नतीजे बहुत जल्दी आने लगे हैं. झालाना में 3 वर्ष पहले 20 से 22 लेपर्ड थे. वहां अब यह संख्या दोगुनी हो गई और यहां 43 लेपर्ड हो चुके हैं. झालाना में जो लेपर्ड्स पैदा हो रहे हैं, वे बड़े होते ही अपना एरिया बनाने के लिए गलता जंगल में पहुंच जाते हैं. पिछले 3 महीने में तीन लेपर्ड झालाना से गलता जंगल में जा चुके हैं. झालाना में लेपर्ड्स की संख्या बढ़ती रहेगी, तो उन्हें दूसरे जंगल की भी जरूरत पड़ेगी. मानव और वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए भी गलता जंगल का विकास करना जरूरी है.
गलता जंगल डवलप हो जाएगा, तो वहां पर भी वन्यजीवों के अनुसार अनुकूल वातावरण बन जाएगा. वहां वाटर पॉइंट्स भी बनाए जा रहे हैं. गलता जंगल में न तो कोई पेट्रोलिंग ट्रैक था, न ही कोई वाटर पॉइंट था, ऐसे में लेपर्ड पानी की तलाश के लिए भी आबादी क्षेत्रों में पहुंच जाता था. अब वन विभाग की ओर से ट्रैक और वाटर पॉइंट विकसित किए जा रहे हैं. जंगल में शाकाहारी वन्यजीवों की आबादी बढ़ेगी, तो लेपर्ड के लिए प्रेबेस भी बढ़ेगा. इससे दोहरा फायदा होगा. शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों के लिए एरिया डवलप होगा.
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जंगल विकसित होने से आबादी क्षेत्रों में वन्यजीवों के आने की घटनाएं होंगी कम
उन्होंने बताया कि झालाना और नाहरगढ़ सेंचुरी के बीच में गलता जंगल आता है. यह विकसित होने पर एक कोरिडोर का काम करेगा. नाहरगढ़ सेंचुरी का एरिया झालाना से काफी बड़ा है. झालाना से एक गलता और आमागढ़ होते हुए नाहरगढ़ सेंचुरी तक कोरिडोर बनेगा. नाहरगढ़ सेंचुरी अचरोल जंगल से जुड़ी हुई है. अचरोल जंगल, जमवारामगढ़ सेंचुरी से जुड़ा हुआ है और जमवारामगढ़ जंगल एरिया सरिस्का टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ है. इस तरह जयपुर से सरिस्का तक एक बड़ा कोरिडोर विकसित हो जाएगा. जंगल विकसित होने और कॉरिडोर बनने से आबादी क्षेत्रों में वन्यजीवों के आने की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा.