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Owaisi In Jaipur: जमीन तलाशने के बाद पैर जमाने की तैयारी में ओवैसी, करेंगे टीम राजस्थान का एलान

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Published : May 31, 2022, 2:26 PM IST

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन(AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी आज मंगलवार शाम को अपनी प्रदेश कार्यकारिणी का एलान करेंगे. इससे पहले ओवैसी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस से भी मुखातिब होंगे और राजस्थान में अपने सियासी ख्वाब को पूरा करने का रोड मैप साझा (AIMIM Chief Eyes Muslim Vote Bank) करेंगे.

Owaisi In Jaipur
टीम राजस्थान का एलान करेंगे ओवैसी

जयपुर: राजस्थान में ओवैसी का दौरा बेवजह नहीं. जाहिर है कि ओवैसी बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश के बाद अब राजस्थान के चुनाव में दिलचस्पी ( Owaisi In Jaipur) ले रहे हैं. एमआईएमआईएम (AIMIM Chief In Jaipur) साल 2023 में राजस्थान से ताल ठोकेगी इसका एलान पहले ही कर चुकी है. AIMIM की राजस्थान में एंट्री अन्य राज्यों की तरह यहां भी कांग्रेस के लिए चुनौती साबित हो सकती है, ऐसा जानकार मानते हैं. आंकड़े और प्रदेश का समीकरण कुछ इसी ओर इशारा करता है. एक तरफ कांग्रेस ओवैसी के प्रवेश से परेशान है तो दूसरी ओर भाजपा खुश. वजह स्पष्ट है- क्योंकि अल्पसंख्यक कांग्रेस के परंपरागत मतदाता समझे जाते हैं. ऐसे में राज्य में करीब 40 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस की जड़ें हिलने के साथ कई दिग्गज नेताओं के वजूद को भी खतरा पैदा हो सकता है.

आबादी का सवाल है: राजस्थान में मुस्लिम आबादी करीब 10 प्रतिशत है, लेकिन मतदाताओं के तौर पर यह समुदाय राज्य की कई सीटों को प्रभावित करता (AIMIM Chief Eyes Muslim Vote Bank) है. इनमें 15 सीटें मुस्लिम मतदाताओं के वर्चस्व वाली हैं, तो 20 से 25 सीटें ऐसी हैं, जहां बड़ा मुस्लिम वोट बैंक है और चुनाव के नतीजे वही तय भी करता है.

10 फीसदी का गणित अहम है: राजस्थान में करीब 10 फीसदी मुस्लिम आबादी है ,जो लगभग 40 सीटों पर प्रभावित करती है. राजस्थान के कई ऐसे जिले हैं मसलन सीकर, झुंझुनूं, चूरू, जयपुर, अलवर, भरतपुर, नागौर, जैसलमेर और बाड़मेर, जिनके के कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम विधायक निर्वाचित होते रहे हैं. इसके अलावा ऐसे कई इलाके ऐसे हैं, जहां मुसलमान हार-जीत को तय करता है. इनमें से 16 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी जीतते रहे हैं और 24 में उनके फैसले ने नतीजे की शक्ल अख्तियार की है.

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नजर में ये जिले: माना जा रहा है कि ओवैसी की नजर जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, धौलपुर, अलवर, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, अजमेर चूरू, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर और करौली जिलों पर है. ओवैसी की टीम राजस्थन के राजनीतिक हालात पर बारीकी से निगाह रखे हुए है. प्रदेश में मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों की बात करें, तो आदर्श नगर, किशनपोल, हवामहल, टोंक, सवाई माधोपुर, धौलपुर, पुष्कर, मसूदा, अजमेर शहर, तिजारा, लक्ष्मणगढ़, रामगढ़, कामां, नगर, बीकानेर पूर्व, सरदार शहर, सूरसागर, शिव, पोकरण, मकराना, चूरू, फतेहपुर, धौलपुर, नागौर, मकराना, डीडवाना, मंडावा, नवलगढ़, नागौर, झंझुनू, सीकर और दातारामगढ़ जैसे विधानसभा क्षेत्र में ओवैसी अपने प्रत्याशी उतार सकते हैं.

ये थे 2018 के समीकरण: साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 15, जबकि भाजपा ने विधानसभा चुनावों के लिए महज एक मुस्लिम उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा था. कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या 2013 के विधानसभा चुनाव जितनी ही थी. पिछली बार कांग्रेस के सभी मुस्लिम उम्मीदवारों की हार हुई थी जबकि भाजपा ने 2013 में चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिनमे से दो- डीडवाना से युनूस खान और नागौर सेे हबीबुर्र रहमान ने जीत हासिल की थी.

यूनुस खान को बीजेपी ने सचिन पायलट के मुकाबले मुस्लिम बाहुल्य सीट के समीकरण को देखते हुए टोंक से साल 2018 के चुनाव में मौका दिया था. वहीं कांग्रेस ने पिछले चुनाव में हारे आठ मुस्लिम प्रत्याशियों को दोबारा मौका दिया था. पार्टी ने 2013 में पराजित हुए दो मुस्लिम उम्मीदवारों की पत्नियों समेत तीन महिलाओं को 2018 के चुनाव में टिकट दिया. दूसरी तरफ भाजपा से टिकट नहीं मिलने के बाद नागौर विधायक हबीबुर्रहमान ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस ने उन्हें नागौर से ही उम्मीदवार बनाया था. रहमान अशोक गहलोत की सरकार में वक्फ मंत्री थे, मगर 2008 में कांग्रेस से टिकट न मिलने पर भाजपा में शामिल हो गए थे और 2018 के चुनाव में उन्हें और यूनुस खान को शिकस्त मिली थी. कांग्रेस के 15 मुस्लिम प्रत्याशियों में से करीब आधे यानी सात लोग विधायक बने. जिनमें किशनपोल से अमीन कागजी, आदर्शनगर से रफीक खान, कामां से जाहिदा खान, सवाई माधोपुर से दानिश अबरार, पोकरण से शाले मोहम्मद, शिव से अमीन खान और फतेहपुर से हाकम अली खान को जनता से मौका मिला.

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मौजूदा सांप्रदायिक तनाव पर नजर: राजस्थान में बीते 2 महीने सांप्रदायिक तनाव के लिहाज से बेहद संवेदनशील थे. पहले करौली में इसके बाद जोधपुर फिर भीलवाड़ा में भी संप्रदायिक तनाव की घटनाएं सामने आई थीं. इस दौरान ओवैसी ने अल्पसंख्यक समुदाय की परेशानी का हवाला देते हुए मौजूदा कांग्रेस सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने बार-बार अल्पसंख्यक समुदाय के हित में काम करने की नसीहत सरकार को दी. ओवैसी ने राजस्थान की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि वे गहलोत सरकार के कामकाज के तरीके से खुश नहीं हैं. माना जा रहा है कि ओवैसी अब तनाव के इन मामलों को ही चुनाव में गहलोत सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करेंगे.

ये हैं कांग्रेस के आरोप: कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक नेता भी सक्रिय हो गए हैं. राजस्थान कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के नेताओं ने कहा की ओवैसी का चेहरा अब जनता के सामने आ चुका है. कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता ने असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का एजेंट की संज्ञा देते हुए कहा था, उनकी चाल में राजस्थान का मुसलमान आने वाला नहीं है. हर कोई जानता है कि बिहार में एमआईएमआईएम की मौजूदगी ने धर्मनिरपेक्ष ताकतों को गहरा नुकसान पहुंचा है. जबकि पश्चिम बंगाल के लोगों ने इसकी चाल को समझा और वहां से खदेड़ दिया. ऐसे में राजस्थान के मुस्लिम समाज को भी इसी प्रकार का फैसला लेना होगा, नहीं तो भाजपा को मजबूती मिलने में देर नहीं लगेगी.

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