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रामपाल सिंह को एमडीएस विवि के कुलपति पद से हटाने का आदेश रद्द - Rajasthan High Court News

राजस्थान हाईकोर्ट ने रामपाल सिंह को एमडीएस विश्वविद्यालय के कुलपति पद से हटाने के चांसलर के आदेश को रद्द कर दिया है. अदालत ने राज्य सरकार को छूट दी है कि वह तय प्रक्रिया का पालन कर सिंह के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है.

MDS University,  Rajasthan High Court Order
राजस्थान हाईकोर्ट

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Published : Feb 19, 2021, 8:13 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने रामपाल सिंह को एमडीएस विश्वविद्यालय के कुलपति पद से हटाने के चांसलर के आदेश को रद्द कर दिया है. हालांकि अदालत ने राज्य सरकार को छूट दी है कि वह तय प्रक्रिया का पालन कर सिंह के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. न्यायाधीश एसपी शर्मा ने यह आदेश डॉ. रामपाल सिंह की याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिए.

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अदालत ने गत 28 जनवरी को याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता के 48 घंटे से ज्यादा न्यायिक अभिरक्षा में रहने के चलते उन्हें निलंबित करने का आदेश सही है, लेकिन उन्हें सुनवाई का मौका दिए बिना बर्खास्त करने को सही नहीं माना जा सकता.

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से चांसलर को त्रुटिपूर्ण सलाह दी गई कि प्रकरण में आरोप पत्र पेश हो चुका है. जबकि उस समय सिर्फ आरोप पत्र पेश करने का निर्णय ही हुआ था. अतिरिक्त महाधिवक्ता भी मान चुके हैं कि याचिकाकर्ता को पद से हटाने की सलाह देते समय आरोप पत्र पेश नहीं हुआ था. ऐसे में चांसलर की ओर से याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने के आदेश को कानून की नजर में सही नहीं कहा जा सकता.

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता पांच अक्टूबर 2018 को वीसी पद पर नियुक्त हुआ था. वहीं एसीबी ने गत सितंबर माह में याचिकाकर्ता के चालक को दो लाख बीस हजार रुपए के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार किया था. बाद में याचिकाकर्ता को भी गिरफ्तार किया गया. राज्य सरकार की ओर से 10 सितंबर को याचिकाकर्ता को निलंबित किया गया और बाद में 9 दिसंबर को सरकार की सलाह पर चांसलर ने याचिकाकर्ता को पद से हटा दिया.

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याचिका में कहा गया कि बर्खास्तगी से पूर्व याचिकाकर्ता का पक्ष नहीं सुना गया, जबकि एमडीएस विवि संशोधन अधिनियम के तहत उसे सुनवाई का पर्याप्त मौका दिया जाना था. इसके अलावा बर्खास्तगी आदेश में जांच ना कर सीधे ही पद से हटाने का कारण भी नहीं बताया गया. जब हटाने की प्रक्रिया कानून में है तो उस प्रक्रिया को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

इसके जवाब में राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के जेल में होने के चलते उन्हें नोटिस नहीं दिया गया. वहीं असहज स्थिति से बचने के लिए उन्हें हटाया गया था. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने के आदेश को रद्द करते हुए राज्य सरकार को तय प्रक्रिया का पालन करते हुए कार्रवाई की छूट दी है.

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