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उपज के मूल्य निर्धारण के लिए ऑनलाइन मीटिंग, किसानों ने रखी एमएसपी पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने की मांग

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Published : Jun 23, 2021, 10:39 PM IST

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की ओर से बुधवार को ऑनलाइन मीटिंग संपन्न हुई. बैठक में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का आग्रह किया.

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उपज के मूल्य निर्धारण के लिए ऑनलाइन मीटिंग

जयपुर. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की ओर से आगामी विपणन वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं, जौ, चना, सरसों, मसूर के मूल्य निर्धारण के संबंध में बुधवार को ऑनलाइन मीटिंग संपन्न हुई. आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. नवीन प्रकाश सिंह ने बैठक की अध्यक्षता की. जिसमें देश के किसान संगठनों ने अपने विचार रखे. इस बैठक में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का आग्रह किया.

बैठक में देश के किसानों की ओर से किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का आग्रह किया, जिसका अधिकांश किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने समर्थन किया है. वर्ष 2018 से प्रारंभ हुई प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण (पीएम-आशा) योजना में दलहन एवं तिलहन की कुल उत्पादन में से 75% उपजों की खरीद को परिधि से बाहर रखने के प्रावधान को समाप्त कर फसल विविधकरण की दिशा में आगे बढ़ाने का सुझाव दिया.

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भेदभाव को मिटाने के लिए गन्ना की उपज की भांति सभी उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के स्थान पर उचित लाभकारी मूल्य निर्धारण करने तथा देश के कुल उत्पादन में से जिस राज्य में 40% से अधिक उत्पादन होता हो, उस उपज की खरीद के लिए उस राज्य की खरीद की विशेष नीति बनाए जाए। इन उपजों की शत प्रतिशत खरीद के लिए योजना बनाने का सुझाव दिया यथा राजस्थान में जौ, मूंग, सरसों, बाजरा तथा मध्य प्रदेश में सोयाबीन, कर्णाटक में कुसुम, सूरजमुखी, रागी की खरीद को प्राथमिकता दी जाए.

रामपाल जाट के अलावा किसान महापंचायत के राजस्थान संयोजक सत्यनारायण सिंह, किसान संघ-परिसंघ, आंध्र प्रदेश के पी चंगुल रेड्डी, अखिल भारतीय किसान सभा के बीजू कृष्णन, भारतीय किसान संघ के प्रमोद चौधरी, किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए. बैठक में सुझाव दिया गया कि मनरेगा को कृषि कार्यों से जोड़कर सरकार की ओऱ से निर्धारित मजदूरी के अतिरिक्त उसका 50 फीसदी अंश किसानों से दिलाने का प्रावधान किया जाए. इससे मजदूरों की आय बढ़ेगी, खेती का खर्च घटेगा तथा देश का उत्पादन बढ़ेगा.

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