जयपुर. 12 जुलाई का दिन खास तौर पर राजस्थान कांग्रेस के लिए इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है. दरअसल, 12 जुलाई के दिन ही बीते साल 2020 में राजस्थान कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने आधिकारिक तौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व पर सवाल खड़े करते हुए ऐलान कर दिया था कि कांग्रेस और निर्दलीय 30 विधायक उनके साथ हैं और अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि 13 जुलाई 2020 को होने वाली विधायक दल की बैठक में वो शामिल नहीं होंगे.
12 जुलाई को सचिन पायलट के आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप पर आए इस मैसेज के बाद ही राजस्थान में कांग्रेस और अशोक गहलोत सरकार में जो हलचल हुई, उसके बाद एकबारगी लगा कि मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार भी गिर जाएगी. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 12 जुलाई को कांग्रेस और अपने समर्थक विधायकों की फेयरमाउंट होटल में बाड़ाबंदी की. होटेल में शिफ्ट होने के बाद 33 दिनों तक विधायकों को बाड़ाबंदी में ही रखा गया. वहीं, सचिन पायलट ने 12 जुलाई 2020 को ही अपने समर्थक विधायकों को मानेसर बुला लिया था, जहां पायलट कैंप के विधायक 10 अगस्त तक रहे. आखिर में प्रियंका गांधी से समझौता होने के बाद सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक वापस लौट आए और कांग्रेस को समर्थन दिया.
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सचिन पायलट के बयान के बाद राजस्थान कांग्रेस की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई. 12 जुलाई की दोपहर तक कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी अविनाश पांडे और कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला 13 जुलाई को होने वाली विधायक दल की बैठक में सचिन पायलट को आने को लेकर आश्वस्त थे, लेकिन 12 जुलाई की शाम को जैसे ही सचिन का मैसेज आया, उसके बाद राजस्थान की राजनीति बदल गई. हर कोई सोच रहा था कि सचिन पायलट की बगावत के बाद अब राजस्थान में अशोक गहलोत की कुर्सी खतरे में है. लेकिन, इस बगावत का नुकसान तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को भी उठाना पड़ा. 14 जुलाई को राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाले सचिन पायलट को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया.