जयपुर.राजस्थान में राजनीतिक घमासान कोई नई बात नहीं है. यहां प्रजातंत्र में सत्ता संग्राम हो या आजादी से पहले राजतंत्र में राजगद्दी को लेकर संग्राम होता रहा है. इन दिनों कांग्रेस सरकार में सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट एक ही पार्टी के होने के बावजूद शह-मात का खेल खेल रहे हैं.
राजतंत्र के दौरान रियासत की गद्दी पर काबिज होने के लिए सवाई जयसिंह द्वितीय के बाद से लगातार राजवंश में भी टकराव की स्थिति बनी रही थी. फिर चाहे ईश्वरी सिंह और माधो सिंह की पीढ़ी का मसला हो, या फिर पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह का. राजस्थान की दूसरी रियासत जोधपुर और उदयपुर में भी यही हालात रहे हैं. लोकतंत्र की भावना हमारे देश की मूल संस्कृति का हिस्सा है.
राजा भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम है, उन्होंने अपने बेटों में से किसी को राजा ना बनाकर, जनता में से भूमन्यु नामक एक व्यक्ति को राजा बनाया. जिसका विद्रोह उस जमाने में राजा भरत की माता, पत्नी और मंत्रियों ने भी किया, लेकिन उनका मानना था कि जनता का राजा बनने का मतलब ये है कि जनता के प्रति हमारी सकारात्मक सोच हो. उन्हें लगता था कि उनके पुत्रों में ये सोच नहीं है. इसलिए उन्होंने जनता में से एक व्यक्ति को चुना. लोकतंत्र की पहली आधारशिला वहीं से है. इसका सीधा सा आशय ये है कि राजतंत्र के दौरान भी देश में लोकतंत्र हुआ करता था. प्रजा को ही सर्वोपरि माना जाता था.
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वर्तमान में यही विषय प्रदेश की राजनीति का केंद्र बना हुआ है. जहां जनता ने कांग्रेस सरकार को चुना, लेकिन कांग्रेस के बीच राजा की गद्दी को लेकर आपसी खींचतान चल रही है. हालांकि राजस्थान के लिए ये कोई नई बात नहीं है. राजतंत्र के दौरान यानी कि स्टेट पीरियड में भी प्रदेश में यही हालात बने हुए थे. इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर रियासत में राजगद्दी के लिए कई तरह के षड्यंत्र हुए हैं.
सवाई जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच भी राजगद्दी को लेकर इस तरह का विवाद चला. इस विवाद में ईश्वरी सिंह को अपने प्राण खोने पड़े और माधो सिंह जयपुर के राजा बने. दरअसल, ईश्वरी सिंह सवाई जय सिंह के बड़े पुत्र थे. जबकि उदयपुर की राजकुमारी उनकी दूसरी पत्नी थी, जिनके बेटे को राजा बनाने का सवाई जयसिंह ने वचन दिया था.
ऐसे में उदयपुर रियासत ने माधो सिंह को राजा बनाने के लिए कई बार युद्ध किया, आखिर में ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली. जिसके बाद माधो सिंह राजगद्दी पर बैठे. माधो सिंह के बाद भी इसी तरह का विवाद उनके पुत्रों पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह के बीच रहा. चूंकि पृथ्वी सिंह छोटी रानी के बेटे थे, लेकिन बड़े होने के चलते उन्हें राजगद्दी पर बिठाया गया, लेकिन उस वक्त रानियों में मेरा बेटा राजा बने, उसके हाथ में सत्ता हो, राजनीति शक्तियां रहे, जिससे वो राजतंत्र चला सके इस तरह की भावना राज परिवार के सदस्यों में पाई जाती थी. बताया जाता है कि प्रताप सिंह को राजगद्दी दिलाने के लिए पृथ्वी सिंह को भी मरवा दिया गया था.