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शहरी स्कूलों में कम हुई बच्चों की संख्या, 8 फीसदी की गिरावट दर्ज...ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ोतरी - Jaipur city schools reported 8% decline

कोरोना महामारी के चलते शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर गई है. स्कूल-कॉलेज 10 माह से बंद हैं. हालांकि कई स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेज चलाकर कुछ हद तक उसकी भरपाई करने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी पढ़ाई खासा प्रभावित हुई है. इसका असर है कि स्कूलों में बच्चों की संख्या में 8 फीसदी की गिरावट देखी जा रही है.

8% decline in enrollment in urban areas, जयपुर स्कूलों की खबर
शहरी स्कूलों में कम हुई बच्चों की संख्या

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Published : Jan 22, 2021, 11:09 PM IST

Updated : Jan 23, 2021, 12:51 AM IST

जयपुर.वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है. कोरोना का कहर यहां भी खूब बरपा है. रहन सहन के साथ शिक्षा पर भी इसका काफी बुरा प्रभाव पड़ा है. कोरोना के कारण स्कूल में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर काफी असर पड़ा है. बच्चों को महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए 10 महीने तक स्कूले बंद रहे, ताकि बच्चों को कोरोना से बचाया जा सके. हालांकि स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेज चलाकर कुछ हद तक उसकी भरपाई करने की कोशिश भी की, लेकिन फिर भी पढ़ाई प्रभावित हुई.

शहरी स्कूलों में कम हुई बच्चों की संख्या

प्रदेश में निजी स्कूलों की संख्या 50 हजार से ज्यादा है. इनमें 18 हजार स्कूल शहरी और 32000 स्कूल ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. शहरी क्षेत्रों में 60% और ग्रामीण क्षेत्रों में 20% स्कूलों ने ही कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेज चलाई हैं. निजी स्कूलों ने ऑनलाइन एप पर छात्र-छात्राओं के लिए पढ़ाई की व्यवस्था की थी और इसका चार्ज 2100 रुपये तय किया था. इस एप पर पढ़ाई से जुड़ा वीडियो अपलोड कर बच्चों की शिक्षा को सुचारू रखने का प्रयास किया गया.

गांवों में बढ़ा 13 फीसदी नामांकन

कोविड के समय स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की बात की जाए तो इनकी संख्या 8 फीसदी है. शहरी क्षेत्र में 8 प्रतिशत बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में नामांकन बढ़ गया. ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 13 फ़ीसदी नामांकन बढ़ा है. 5 फीसदी वे बच्चे हैं जो दूसरे राज्य से आए हैं. क्योंकि गांव में रहने वाले अधिकतर लोग मजदूर वर्ग में आते हैं और वह अन्य जिलों या राज्यों से काम-धंधा छोड़कर अपने गांव लौटे थे. एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में एक करोड़ 80 लाख स्कूली बच्चे हैं. इनमें से 60 लाख बच्चे अपनी पढ़ाई में पिछड़ गए हैं. इनमें सरकारी और निजी स्कूल के बच्चे शामिल हैं. 1 करोड़ 20 लाख बच्चे तो ऑनलाइन क्लासेज से जुड़े ही नहीं हैं.

मोबाइल से की पढ़ाई

80% स्कूलों ने दी ऑनलाइन शिक्षा

स्कूल शिक्षा परिवार के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने बताया कि हमारे यहां शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में स्कूलों की व्यवस्थाओं में अंतर होता है. शहरी क्षेत्र के स्कूलों में तमाम संसाधन होते हैं, उनका फीस स्ट्रक्चर भी अलग होता है और शिक्षण पद्धति में भी अंतर होता है. शहरी क्षेत्रों में 80% स्कूलों ने कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा अपने विद्यार्थियों को दी. इनमें लाइव क्लासेज भी शामिल हैं. इनमें 20% ऐसे स्कूल थे जिनके पास संसाधन नहीं थे और वे लाइव क्लासेज नहीं दे सकते थे लेकिन उन्होंने मोबाइल एप व अन्य साधनों से बच्चों को ऑनलाइन क्लासेज दीं. इन स्कूलों ने रिकॉर्डेड शिक्षा सामग्री भी बच्चों को दी जिससे कि वह पढ़ाई कर सकें.

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ग्रामीण क्षेत्रों में स्थितियां थोड़ी मुश्किल थीं. वहीं 20% स्कूल ऐसे थे जिन्होंने बच्चों को कोरोना काल में शिक्षा दी. उन्होंने रिकार्डेड सामग्री बच्चों को उपलब्ध कराई जिससे बच्चे शार्ट में पढ़ाई कर सकें. अनिल शर्मा ने कहा कि राजस्थान सरकार ने ऐसी व्यवस्था की है कि यदि कोई बच्चा माइग्रेट होकर आया हो लेकिन टीसी लेकर नहीं आया तो उसे भी प्रवेश दिया गया है. यह भी कहा है कि कोरोना नई बीमारी थी और शुरुआत में आंकड़े भी डराने वाले थे. डॉक्टर के पास भी कोई इलाज नहीं था और ना ही इसकी कोई वैक्सीन थी. कोरोना काल में अभिभावक रोजगार से परेशान रहे. उसके कारण संसाधनों की कमी के चलते बच्चे शिक्षा से वंचित रहे.

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फीस जमा करने को लेकर भी अभिभावकों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. शर्मा ने कहा कि 10 महीने बीतने के बावजूद कुछ ऐसे अभिभावक हैं जिनका आज भी लॉकडाउन चल रहा है. कोरोना में जिन लोगों का रोजगार चला गया आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उनका घर चलाना भी मुश्किल हो गया. उनके लिए पहले घर चलाना जरूरी था, स्कूल की फीस देना बाद की बात थी. कुछ स्कूलों ने सहानुभूति दिखाते हुए फीस 50% तक कम कर दी थी. इन स्कूलों में अभिभावकों ने भी बिना किसी परेशानी के फीस भी जमा करा दी थी.

ऑनलाइन क्लासेज में भी ठीक से नहीं पढ़ सके बच्चे

अनिल शर्मा ने कहा कि सीबीएसई स्कूलों में फीस को लेकर समस्या ज्यादा सामने आई इन स्कूलों ने अपनी फीस में कमी नहीं की. राजस्थान बोर्ड से संबद्ध स्कूलों छोटी मध्यम दर्जे वाली स्कूलों ने फीस माफ कर दी और उन्होंने मान लिया कि जब स्टूडेंट स्कूल में आएगा तभी वह स्कूल फीस देगा. ग्रामीण क्षेत्र को लेकर स्कूल संचालकों का कहना है कि कोविड-19 में स्कूल प्रबंधन ने न तो बच्चों को बुलाया और न ही स्टाफ ने स्कूल वालों से संपर्क किया. स्कूल संचालकों ने स्माइल प्रोजेक्ट व अन्य शिक्षा सामग्री फोन पर ही बच्चों को उपलब्ध कराई जिसके कारण बच्चे ठीक तरह से ऑनलाइन क्लासेज में नहीं पढ़ पाए.

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कोविड-19 न केवल बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया बल्कि अभिभावकों पर भी असर डाला कई अभिभावकों की कोविड-19 में नौकरियां चली गई उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा जिससे वे स्कूल फीस भी जमा नहीं करा सके. आर्थिक परिस्थितियों के चलते कई अभिभावकों ने अपने बच्चों की टीसी तक कटवा ली और कई अभिभावक ऑनलाइन क्लासेज भी नहीं पढ़ा पाए. निजी स्कूलों ने अभिभावकों और बच्चों पर फीस के लिए लिए मानसिक दबाव भी बनाया. खास तौर पर सीबीएसई स्कूलों ने बोर्ड परीक्षा में रजिस्ट्रेशन के नाम पर अभिभावकों पर दबाव बनाया कि वे फीस दें नहीं तो बच्चे का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा.

स्कूल प्रशासन ने नहीं दी छूट

अभिभावक रितु ने बताया कि कोरोना काल में उन्हें आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा और वे स्कूल की फीस भी नहीं दे पाए और स्कूल संचालकों ने फीस भी कम नहीं की। रितु ने बताया कि स्कूल संचालकों ने बोर्ड परीक्षा में रजिस्ट्रेशन करने के लिए फीस की डिमांड की हमने जब केवल रजिस्ट्रेशन फीस के लिए कहा तो निजी स्कूल संचालकों ने कहा कि फीस पूरी देनी पड़ेगी। उसके बाद ही बच्चे का बोर्ड में रजिस्ट्रेशन होगा उन्होंने कहा कि उनकी बेटी जब 11 वीं कक्षा में थी तो स्कूल की तरफ से फीस में डिस्काउंट मिलता था लेकिन 12वीं में उसे कोई डिस्काउंट फीस में नहीं मिला है.

ज्ञान आश्रम स्कूल में पढ़ने वाली 10वीं की छात्रा की तो अभिभावकों ने टीसी ही कटवा ली. अभिभावक अमृता सक्सेना ने बताया कि उनकी बेटी ज्ञान आश्रम स्कूल में दसवीं क्लास में पढ़ती थी. कोरोना काल के कारण आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर अभिभावकों ने फीस कम करने को लेकर स्कूल प्रबंधन से बात की लेकिन उन्होंने मना कर दिया.

कोरोना काल में उनकी सास की तबीयत भी खराब हो गई. इस कारण उनके सामने असमंजस की स्थिति बन गई. ऐसे में सास का इलाज कराना जरूरी था जिस कारण वह स्कूल की फीस नहीं दे पाईं. स्कूल प्रबंधन इतना निष्ठुर हो गया कि यहां तक कह दिया कि अपनी सास के इलाज में ढाई लाख खर्च कर सकतीं हैं लेकिन 10 हजार फीस नहीं दे सकते. अंत में उन्होंने स्कूल से बेटी की टीसी ही कटवा ली. टीसी कटवाने के लिए भी स्कूल वालों ने फीस की एक इंस्टॉलेमेंट ली और उसके बाद टीसी दी. वहीं अभिभावकों कहना है कि स्कूल सचालक पूरी फीस मांग रहे हैं, जबकि स्कूलों ने पूरी पढ़ाई नहीं कराई और न ही ऑनलाइन क्लासेज में पढ़ाई पूरी हो पाई.

Last Updated : Jan 23, 2021, 12:51 AM IST

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