जयपुर.प्रदेश में सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए गहलोत सरकर की सारी कवायद के बाद भी कोई हालात में कोई खास सुधार नहीं हो सका है. ऐसे में अब सरकार स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की सेहत को सुधारने के लिए बजट घोषणाओं को आधार बनाते हुए डिब्बा बंद दूध देने शुरू करने जा रहा है. अब सरकार स्कूली बच्चों को मिड डे मील के साथ डिब्बा बंद दूध दिए जाने के निर्णय पर तमाम सामाजिक संगठनों ने सवाल उठाए हैं. सामाजिक संगठनों का कहना है कि सरकार बच्चों पर आदेश न थोपे बल्कि उनसे और परिजनों से च्वॉइस ले.
70 लाख बच्चों को डिब्बे वाला दूध
सरकारी स्कूलों में ज्यादातर आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के स्टूडेंट्स पढ़ते हैं. इनमें से कई घरों में भोजन तक का खर्च मुश्किल से निकलता है. ऐसे में बजट घोषणा के तहत अब बच्चों को गहलोत सरकार मिड डे मील देने जा रही है लेकिन डिब्बा बंद दूध बच्चों के लिए कितना लाभकारी होगा ये कहा नहीं जा सकता. सीएम गहलोत की बजट घोषणा को वित्त विभाग की मंजूरी के बाद करीब 70 लाख स्कूली बच्चों को 1 जुलाई से सप्ताह में दो दिन डिब्बे वाला दूध मिला करेगा. हालांकि बच्चों को डिब्बे वाला दूध पसंद भी है या नहीं सरकार ने ये जानने का प्रयास एक बार भी नहीं किया.
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2022-23 की बजट घोषणा
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2022-23 की बजट घोषणा में मिड डे मील योजना के तहत कक्षा एक से आठ तक के विद्यार्थियों को सप्ताह में दो दिन डिब्बे का दूध उपलब्ध कराने के लिए 476.44 करोड़ रुपए का अतिरिक्त वित्तीय प्रावधान किया था. इसे पिछले दोनों सीएम गहलोत ने वित्तीय मंजूरी दे दी है. जानकारी के अनुसार राजकीय विद्यालयों में मिड डे मील की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए इसी वित्तीय वर्ष में आगामी एक जुलाई से सप्ताह में दो दिन पीने के लिए पाउडर वाला दूध उपलब्ध कराया जाएगा. राजस्थान को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन के जरिए विद्यालय स्तर पर दूध पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी.
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आदेश थोपे नहीं, विकल्प दें
बच्चों के स्वस्थ्य को लेकर सक्रिय रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता छाया पचौरी कहती है कि यह सही है कि दूध प्रोटीन और विटामिन का प्राकृतिक स्रोत है. इसलिए बच्चों को रोजाना की डाइट में मिड डे मील के साथ दूध देने की योजना के बारे जानकारी मिली है. इससे बच्चों की मांसपेशियां मजबूत होंगी. दांतों और हड्डियों को कैल्शियम की जरूरत होती है. दूध पीने से बच्चों के दांत और हड्डियां मजबूत बनेंगी. दूध में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन होता है लेकिन आपत्ति इस बात पर है कि आखिर सरकार सिर्फ दूध ही क्यों पिला रही है. बच्चों के लिए सरकार को दूसरे विकल्प भी देने चाहिए. किसी बच्चे को अगर अंडा या फल पसंद है तो उनकी पसंद की डाइट उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि वह से खा सके.
पिछली सरकार में योजना हुई फेल
छाया पचौरी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है. इससे पहले पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के वक्त भी बच्चों को स्कूलों में दूध उपलब्ध कराने की योजना आई, लेकिन कारगर नहीं हुई. ऐसा इसलिए क्योंकि तब बच्चों को न तो दूध का स्वाद पसंद आया था और न उसकी गुणवत्ता अच्छी थी. ऐसे में मौजूदा सरकार को डिब्बे और पाउडर वाला दूध बच्चों को पिलाने की इस योजना को धरातल पर उतारने से पहले विशेष अध्ययन करने की जरूरत है. पूरे राजस्थान में लागू करने से पहले इसे कुछ स्कूलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू करना चाहिए ताकि यह पता लग सके कि बच्चों को पाउडर का दूध पसंद आ भी रहा है या नहीं. छाया ने कहा कि प्रदेश के कई स्कूलों में साफ पेयजल की भी व्यवस्था तक नहीं. ऐसे में उसी पानी में दूध पाउडर मिलाकर दिया जा सकता है.
प्रदेश में कुपोषण का स्तर.
छाया कहती है कि प्रदेश में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों को देखें तो मौजूदा वक्त में 31.8 प्रतिशत बच्चे ऐसे ही जिनकी उम्र के हिसाब से लंबाई नहीं बढ़ रही है. इसके साथ ही 16.8% वह बच्चे जिनका लंबाई के लिहाज से वजन कम है. 27.6 प्रतिशत उम्र के लिहाज से अंडर वेट हैं और 71.5 फीसदी बच्चों में खून की कमी है .