जयपुर/ जोधपुर. शिशुओं की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा. जोधपुर के सरकारी अस्पताल में भी 146 शिशुओं की मौत का मामला सामने आ चुका है. मुख्यमंत्री का गृहजिला होने के चलते इस यह मुद्दा और भी गंभीर बन जाता है. बच्चों की मौत के पीछे जहां व्यवस्थाओं पर सवाल उठ रहे हैं वहीं चिकित्सकों पर भी लापरवाही के आरोप लग रहे हैं. जोधपुर में सरकारी सेवावरत चिकित्सकों की अनियमितताओं से जुड़ा एक मामला ऐसा भी है जिस पर जांच रिपोर्ट भी आई लेकिन आजतक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
चिकित्सक निजी अस्पतालों में दे रहे सेवाएं, जांच के आदेश भी हुए लेकिन कार्रवाई के नाम पर ढाक के तीन पात दरअसल, मामला साल 2019 जनवरी का है जहां चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा को शिकायत दर्ज की गई थी कि जोधपुर के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में सेवारत चिकित्सकों द्वारा राजकीय सेवा के अतिरिक्त यानी प्राइवेट अस्पतालों में भी सेवाएं दी जा रही है. इस शिकायत के बाद चिकित्सा मंत्री ने जांच कमेटी गठित करने के निर्देश दिए थे. जिसमें जोधपुर के अपर जिला मजिस्ट्रेट, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, अतिरिक्त प्राचार्य डॉ संपूर्णानंद मेडिकल कॉलेज जोधपुर, संयुक्त निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य और मथुरा दास माथुर चिकित्सालय के उप अधीक्षक को शामिल किया गया.
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जांच के बाद करीब 11 चिकित्सकों के नाम सामने भी आए जिनमें डॉक्टर प्रदीप शर्मा यूरोलॉजिस्ट, डॉक्टर जेपी सोनी शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ प्रदीप गौड़ ऑंकोलॉजिस्ट, डॉक्टर सुनील दाधीच गैस्ट्रोलॉजिस्ट, डॉक्टर आरके सहारन यूरोलॉजिस्ट, डॉ किरण मिर्धा गायनिक शामिल हैं. खास बात यह है कि जिनके खिलाफ जांच की गई उनमें तीन डॉक्टर तो जोधपुर के शिशु रोग विभाग में कार्यरत थे. इसके बाद जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें पाया गया कि राजस्थान मेडिकल ऑफिसर एंड नर्सिंग स्टाफ फीस रूल्स 2011 का उल्लंघन इन चिकित्सकों ने किया है. कमेटी ने दोषी पाए गए चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी सरकार से कहा.
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यह सारी जांच तत्कालीन संभागीय आयुक्त जोधपुर के निर्देश पर गठित की गई जांच कमेटी ने की. हालांकि सभी चिकित्सकों पर आरोप तय हो गए लेकिन इस जांच को एक साल बीत जाने के बाद भी इन चिकित्सकों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई है. जो रिपोर्ट जांच कमेटी ने प्रस्तुत की उससे ये सवाल उठना लाजिमी है कि ऐसे चिकित्सकों के खिलाफ सरकार ने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया. जबकि इस पूरे मामले की जांच के आदेश खुद प्रदेश के चिकित्सा मंत्री ने ही दिए थे.