जयपुर. राज्य सरकार की ओर से संविदाकर्मियों के लिए बनाए गए संविदा नियम-2022 के जारी होने के बाद प्रदेश के हजारों संविदाकर्मियों के नियमितीकरण (contract employees regularization demand) की उम्मीद पर पानी फिर गया है. प्रदेश के अलग-अलग संगठन से जुड़े हुए पदाधिकारियों ने संविदा नियमों का विरोध जताया है. संगठनों ने सड़क पर आंदोलन करने की चेतावनी दी है.
महासंघ (एकीकृत) ने इन नियमों का विरोध करते हुए इसे संविदा कर्मचारियों के साथ वादाखिलाफी बताया है. राजस्थान विद्यार्थी मित्र पंचायत सहायक संघ ने सड़क पर उतरने की चेतावनी देते हुए कहा है कि 3 साल गुजरने के बाद सरकार ने संविदाकर्मियों को संविदा सेवा नियमों का झुनझुना पकड़ा दिया है.
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अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ (एकीकृत) के प्रदेशाध्यक्ष गजेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि राजस्थान सरकार ने कांग्रेस के जन घोषणा पत्र-2018 में कर्मचारी कल्याण के तहत घोषणा की थी कि सरकार में संविदाकर्मियों, एनआरएचएम एवं एनयूएचएम कर्मियों, पैरा टीचर्स, उर्दू पैरा टीचर्स, लोक जुंबिशकर्मियों, आंगनबाड़ीकर्मियों, शिक्षाकर्मियों, विद्यार्थी मित्रों, पंचायत सहायकों आदि के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारियों की समस्याओं का यथोचित समाधान कर नियमित किया जाएगा. लेकिन सरकार ने संविदाकर्मियों को नियमित नहीं कर उनके लिए जो भर्ती नियम जारी किए हैं, वह घोषणापत्र के विपरीत हैं.
संविदा भर्ती नियमों का विरोध, पंचायत सहायकों ने दी सड़कों पर उतरने की चेतावनी राठौड़ ने कहा कि महासंघ (एकीकृत) सरकार की वादाखिलाफी और कर्मचारी विरोधी नीतियों की कड़ी शब्दों में निंदा करता है. राठौड़ ने सरकार से मांग की है कि वह समय रहते कांग्रेस के जन घोषणा पत्र के अनुरूप संविदाकर्मियों को नियमित करने की घोषणा करे, अन्यथा इसके गंभीर परिणाम होंगे.
राजस्थान विद्यार्थी मित्र पंचायत सहायक भी सरकार के निर्णय के विरोध में उतर आए हैं. उनका कहना है कि नियमितीकरण का नाम लेकर संविदा सेवा नियम के नाम पर सरकार ने पल्ला झाड़ लिया है. राजस्थान विद्यार्थी मित्र पंचायत सहायक संघ के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र चौधरी ने बताया कि सत्ता में आने से पूर्व और सत्ता में आने के बाद अपने चुनावी घोषणा पत्र में सरकार ने जोर-शोर से संविदाकर्मियों के नियमितीकरण का वादा किया था.
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नियमितीकरण के लिए कमेटी का गठन कर 3 साल गुजारने के बाद सरकार ने संविदाकर्मियों को संविदा सेवा नियमों का झुनझुना पकड़ा दिया. नियमितीकरण तो दूर की बात, संविदाकर्मियों की तात्कालिक समस्याओं और मानदेय संबंधी समस्याओं का समाधान भी नहीं किया गया है.
नरेंद्र चौधरी ने कहा कि सरकार ने 6000 वंचित विद्यार्थी मित्रों का समाधान भी नहीं किया है. और ना ही नगर पालिका से हटे हुए पंचायत सहायकों का समाधान किया गया है. वे न्यूनतम मजदूरी से भी कम 6600 रुपए पर काम करने के लिए मजबूर हैं. पंचायत सहायकों को यह मानदेय भी समय पर नहीं दिया जाता है. 3 से 6 महीने देरी से मानदेय दिया जा रहा है. चौधरी ने कहा कि पंचायत सहायकों को अपनी मर्जी के अनुसार 2 विभागों की कठपुतली बनाया हुआ है. निर्धारित कार्यों के अलावा अपनी मनमर्जी से स्कूलों और पंचायतों में काम कराया जा रहा है.
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जोधपुर संभाग अध्यक्ष सांवलसिंह राठौड़, कोटा संभाग अध्यक्ष सुरेंद्र रंधावा, जयपुर संभाग अध्यक्ष खेमंत गिठाला का कहना है कि सरकार ने नियमितीकरण का वादा किया था नियमित करके अपना वादा निभाए वरना मजबूर होकर हमें एक बार फिर सड़कों पर उतरना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि सरकार की इस वादाखिलाफी से तमाम संविदाकर्मियों में आक्रोश व्याप्त है. बजट सत्र में सरकार की ईंट से ईंट बधाई जाएगी.
आपको बता दें कि प्रदेश की गहलोत सरकार ने संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए नए नियम जारी कर दिए हैं. लेकिन संविदाकर्मियों की लंबे समय से नियमित करने की मांग को नहीं माना गया है. नए नियमों में संविदाकर्मियों को नियमित करने से पहले स्क्रीनिंग कमेटी की जांच से गुजरना होगा तथा यह नियम 5 साल से कार्य कर रहे संविदाकर्मियों पर ही लागू होगा. इसके अलावा नए नियमों में संविदाकर्मियों को नौकरी से हटाने का भी प्रावधान रखा गया है. सरकार के इस आदेश से प्रदेश के सभी संविदा कर्मचारियों में आक्रोश है.