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National Youth Day 2022 : सीएम गहलोत ने स्वामी विवेकानंद को किया नमन, 'राष्ट्रीय युवा दिवस' की दी शुभकामनाएं

स्वामी विवेकानंद की जयंती पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें नमन किया है. मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर सभी प्रदेशवासियों को 'राष्ट्रीय युवा दिवस' की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं (CM Gehlot Wishes National Youth Day) दी है. गहलोत ने लोगों से उनके विचारों एवं आदर्शों का प्रसार करने की अपील की है.

cm ashok gehlot wishes on swami vivekananda jayanti
सीएम गहलोत ने स्वामी विवेकानंद को किया नमन

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Published : Jan 12, 2022, 10:42 AM IST

जयपुर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट कर कहा कि महान आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक और समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद को नमन. गहलोत ने कहा कि विवेकानंद ने दृढ़ संकल्प और उद्देश्य की ताकत के साथ उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में उनके आदर्श और शिक्षाएं हमेशा प्रेरणा बनी रहेंगी. सभी युवाओं को राष्ट्रीय युवा दिवस की शुभकामनाएं.

गहलोत ने आगे लिखा, स्वमी विवेकानंद समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए युवाओं की अपार क्षमता में विश्वास करते थे. गहलोत ने कहा कि युवा समाज में अधिक से अधिक (Ashok Gehlot Appeal to Indian Youth) अच्छा योगदान कर सकते हैं और समाज में परिवर्तन ला सकते हैं. विवेकानंद के आदर्शो को अपने जीवन में उतारते हुए युवाओं को आगे बढ़ना चाहिए.

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कौन थे स्वामी विवेकानंद ?

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को तत्कालीन कलकत्ता यानी आज के कोलकाता में हुआ था. उनका पहला नाम नरेंद्र दत्त था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे. पिता की इच्छा थी कि बेटा अंग्रेजी पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने. नरेंद्र दत्त पढ़ने में मेधावी थे, 25 साल की उम्र तक उन्होंने दुनिया भर की तमाम विचारधारा, दर्शन और धार्मिक पुस्तकें पढ़ डालीं. संगीत, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, वेद पुराण से लेकर कुरान-बाइबिल तक कुछ भी नहीं छोड़ा.

सीएम गहलोत का ट्वीट...

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बताया जाता है कि अपने अध्ययन के दौरान वह इतने तर्क किए कि किसी भी विचार पर उनका भरोसा नहीं रहा. 1881 में विवेकानंद (swami vivekananda) की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई. उन्होंने ठाकुर रामकृष्ण से उनकी साधना और विश्वास को लेकर तर्क किए. मान्यताओं के अनुसार, रामकृष्ण परमहंस को पता था कि नरेंद्र दत्त उनका शिष्य बनेगा, इसलिए वह हमेशा उनकी बातों को सुनते थे और उनकी जिज्ञासा को शांत करते थे. एक दिन रामकृष्ण ने उन्हें तर्क छोड़कर विवेक जगाने को कहा. उन्हें सेवा के जरिये साधना का मार्ग बताया. फिर तो नरेंद्र दत्त ने सांसारिक मोह माया त्याग दी और सन्यासी बन गए.

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