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औषधीय व जैविक खेती से ही किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाई जा सकती है: डॉ. अतुल गुप्ता

जयपुर में शनिवार को 'मेडिसिनल प्लांट कल्टीवेशन फॉर इकनोमिक ग्रोथ ऑफ रूरल फॉर्मर' विषय पर सेमिनार आयोजित हुआ. जिसमें खेती को लाभदायक बनाने के उपाय बताए गए. इसके साथ ही किसानों को खेती में गोमूत्र और जैविक खाद का अधिक उपयोग करने के फायदे भी बताए गए.

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Published : Dec 7, 2019, 11:16 PM IST

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जयपुर. श्री पिंजरापोल गौशाला में शनिवार को 'मेडिसिनल प्लांट कल्टीवेशन फॉर इकनोमिक ग्रोथ ऑफ रूरल फॉर्मर' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ. सेमिनार में जैविक कृषि में पदमश्री अवार्ड विजेता हुकम चंद पाटीदार ने कहा कि खेती को लाभदायक बनाने के लिए दो ही उपाय है जिसमें पहला उत्पादन को बढ़ाएं और दूसरा लागत खर्च को कम करें.

खेती के आधुनिक तरीकों की जानकारी देने सेमिनार का आयोजन

पाटीदार ने अपने संबोधन में आगे बोलते हुए कहा कि इसके लिए किसानों को अत्याधुनिक तरीके से जैविक खेती को अपनाना होगा. इसका सर्वोत्तम विकल्प गाय है. गोमूत्र में गोबर से निर्मित जैविक कीटनाशक व जैविक खाद से ही कृषि की लागत में कमी लाई जा सकती है. ऐसा करने से न केवल कृषि लाभकारी व्यवसाय बन सकता है बल्कि देश के किसानों को आर्थिक आजादी की मिलेगी.

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राष्ट्रीय उन्नति कृषि कौशल विकास संस्थान की ओर से आयोजित संगोष्ठी में राजस्थान मेडिसिनल प्लांट बोर्ड के सदस्य डॉ. अतुल गुप्ता ने कहा कि प्रदेश में तुलसी, स्टीविया, एलोवेरा जीरा, सौंफ, अश्वगंधा की मेडिसिनल खेती की अपार संभावनाएं हैं. वर्तमान में करीब 10 हजार एकड़ में मेडिसिनल खेती हो रही है. इस रकबे को बढ़ाया जा सकता है. मेडिसिनल खेती को अपनाने वाले किसानों को केंद्र व राज्य सरकार की ओर से ना केवल 90 फ़ीसदी सब्सिडी दी जा रही है, बल्कि उनकी फसल को भी वापस गारंटी के साथ खरीदा जा रहा है. परंपरागत खेती से हटकर यदि किसान जैविक खेती को अपना लेगा तो उसे आर्थिक लाभ मिलेगा.

उन्होंने कहा कि मेडिसिनल उत्पाद बनाकर मार्केट में बेचने से किसान को कई गुना लाभ प्राप्त होगा, जिससे उसे आर्थिक आजादी भी मिलेगी. सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ मेडिसिनल एंड अरोमैटिक प्लांटस बायोटेक्नोलॉजी डिवीजन की प्रिंसिपल डॉ. सुनीता सिंह ने कहा कि रासायनिक खेती से कैंसर, मधुमेह जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही है. भूमि व इंसान को सेहतमंद रखना है, तो जैविक खेती को अपनाना ही होगा.

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उन्होंने कहा कि भी एक बार खरीदकर पांच से सात साल तक अगली फसल के लिए किसान स्वयं अपने खेत पर बीज तैयार कर सकते हैं. इस तरह इन पर खर्च होने वाली राशि में 40 से 60% तक कमी की जा सकती है. अपने खेत पर उगाई जाने वाली फसल को पर्याप्त खाद सिंचाई व पौध संरक्षण देकर न सिर्फ अपनी जरूरत का बीज तैयार हो जाता है, बल्कि बीज फसल की अधिक उपज से कुछ आय बीज बेचने से भी मिल जाती है.

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