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रेयर डिजीजेस के इलाज के अभाव में अब भी दम तोड़ रहे बच्चे, नाकाफी साबित हो रही नेशनल पॉलिसी

जयपुर के जेके लोन अस्पताल में रेयर डिजीजेस का इलाज पिछले 7 साल से किया जा रहा है. रेयर डिजीज को लेकर एक नेशनल पॉलिसी भी सरकार की ओर से बनाई गई है, लेकिन फिलहाल ये नाकाफी साबित हो रही है. ऐसे में जयपुर के जेके लोन अस्पताल के पूर्व अधीक्षक और रेयर डिजीज सेंटर के इंचार्ज डॉ. अशोक गुप्ता का कहना है कि राज्य सरकारों को रेयर डिजीज सेंटर से जुड़ा एक फैसिलिटेशन सेंटर बनाना चाहिए, जिससे जरूरतमंद लोगों को ये पता लग सके कि किस तरह से महंगे इलाज के लिए क्राउड फंडिंग या दानदाताओं से पैसा मिल सकता है.

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जयपुर के जेके लोन अस्पताल में होता है रेयर डिजीजेस का इलाज

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Published : Jul 12, 2021, 7:38 AM IST

Updated : Jul 12, 2021, 7:44 AM IST

जयपुर.राजधानी के जेके लोन अस्पताल में रेयर डिजीजेस का इलाज किया जा रहा है. अब तक अस्पताल में 800 से अधिक ऐसे बच्चों का इलाज किया जा चुका है, जो रेयर डिजीज से पीड़ित थे और जेके लोन उत्तर भारत का पहला ऐसा अस्पताल जहां रेयर डिजीज को लेकर अलग से सेंटर भी चलाया जा रहा है. वहीं, केंद्र सरकार की ओर से रेयर डिजीज को लेकर नीति भी बनाई गई है, जिसके तहत बच्चों का इलाज किया जा रहा है. लेकिन, सरकार की ओर से तैयार की गई ये नीति फिलहाल नाकाफी साबित हो रही है.

रेयर डिजीजेस के इलाज के लिए नाकाफी साबित हो रही नेशनल पॉलिसी

जयपुर के जेके लोन अस्पताल के पूर्व अधीक्षक और रेयर डिजीज सेंटर के इंचार्ज डॉ. अशोक गुप्ता का कहना है कि राष्ट्रीय नीति के अनुसार ऐसी बीमारी, जो 2000 लोगों में से किसी एक में पाई जाती है. उसे रेयर डिजीज में शामिल किया गया है. ऐसी बीमारियों का पता लगाना और उनका इलाज करना काफी मुश्किल होता है. रेयर डिजीज से जुड़ी बीमारियों की दवाइयां भी काफी मुश्किल से उपलब्ध हो पाती हैं, क्योंकि हर फार्मा कंपनी रेयर डिजीज से जुड़ी बीमारियों की दवाइयां नहीं बना पाती.

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डॉ. अशोक गुप्ता का कहना है कि इस तरह की बीमारियों को लेकर जयपुर का जेके लोन अस्पताल पिछले 7 साल से काम कर रहा है. इस तरह की बीमारियों को लेकर एक नेशनल पॉलिसी भी सरकार की ओर से बनाई गई है, लेकिन फिलहाल ये नाकाफी साबित हो रही है. पहली पॉलिसी साल 2017 में तैयार की गई थी. इस पॉलिसी में तीन कैटेगरी तैयार की गई थी. हालांकि बीते साल एक बार फिर इस पॉलिसी में थोड़ा सा बदलाव किया गया है. पहली कैटेगरी के अनुसार उन बीमारियों को शामिल किया गया है, जिनका इलाज सिर्फ एक बार होता है. दूसरी कैटेगरी में उन बीमारियों को रखा गया है, जिन का इलाज कई महीनों तक चलता है. वहीं, तीसरी कैटेगरी में ऐसे बीमारियों को रखा गया है, जिन का इलाज कई महीनों तक चलता है और महंगा भी है.

डॉ. अशोक गुप्ता का कहना है कि करीब 7 हजार बीमारियों को रेयर डिजीज के अंदर रखा गया है. कैटेगरी वन में राष्ट्रीय आरोग्य नीति के तहत करीब 20 लाख रुपये की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन अन्य दोनों कैटेगरी में किसी तरह की कोई आर्थिक सहायता केंद्र सरकार की ओर से उपलब्ध नहीं है. ऐसे में सिर्फ क्राउड फंडिंग के जरिए ही इलाज के लिए पैसा जुटाया जाता है. वहीं, राज्य सरकारों के पास इतना बजट नहीं होता कि रेयर डिजीज से जुड़ी बीमारियों का इलाज करवा सके, लेकिन केंद्र सरकार इसमें पहल कर सकती हैं.

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डॉ. अशोक गुप्ता के मुताबिक राज्य सरकारों को रेयर डिजीज सेंटर से जुड़ा एक फैसिलिटेशन सेंटर बनाना चाहिए, जिससे जरूरतमंद लोगों को ये पता लग सके कि किस तरह से महंगे इलाज के लिए क्राउड फंडिंग या दानदाताओं से पैसा मिल सकता है. हाल ही में राजस्थान के बीकानेर जिले से एक ऐसा ही मामला देखने को मिला था, जहां एक बच्ची रेयर डिजीज से पीड़ित थी और उसे 16 करोड़ रुपये के एक इंजेक्शन की जरूरत थी, लेकिन पैसा नहीं होने के चलते परिजन इलाज नहीं करा पाए और अंत में बच्ची की मौत हो गई.

Last Updated : Jul 12, 2021, 7:44 AM IST

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