जयपुर.देश आज 8वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मना रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है (National Handloom Day 2022). कई बेहतरीन बुनकरों को जयपुर में सम्मानित किया जा रहा है, लेकिन क्या सिर्फ एक दिन या एक सप्ताह कार्यक्रम आयोजित कर हैंडलूम को प्रमोट किया जा सकता है? हथकरघा उद्योग शहरों में नहीं बल्कि गांवों में पलता है. हथकरघा उद्यमियों की सबसे बड़ी परेशानी उत्पादों के विपणन की रही है (Rajasthani Weavers). बेहतरीन डिजाइन और उच्च गुणवत्ता के उत्पादों के बावजूद इन्हें बाजार नहीं मिल पाता है .
हथकरघा पर्यावरण के अनुकूल है और जीवनयापन करने का एक व्यवहार्य तरीका है. 8 वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर राजस्थान राज्य हथकरघा विकास निगम की और से डिजाइन रेसोर्स सेंटर, बुनकर सेवा केंद्र के सहयोग से "हथकरघा उत्सव" मनाया जा रहा है. जिसमें इस कला के प्रसार और इससे जु़ड़े लोगों के जीवन को कैसे बदला जाए, उनकी आमदनी को कैसे बढ़ाया जाए और जीवन स्तर में कैसे सुधार लाया जाए इसे लेकर बात हो रही है.
हथकरघा उत्सव में क्या?: बुनकर सेवा केंद्र के उपनिदेशक तपन शर्मा बताते हैं कि Exhibition Cum Fair का मकसद हथकरघा उत्पादों को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना है. सोच ये भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बंद पड़े हथकरघा उद्योग को फिर से जिंदा किया जाए. अपनी सोच के प्रचार प्रसार के लिए प्रदेश के 16 जगहों को चुना गया है. यहां अलग अलग सेंटर्स के जरिये ट्रेनिंग दी जा रही है. कहते हैं कोशिश है कि ट्रेडिशन को फैशन से ब्लैंड किया जाए. नए मार्किट के हिसाब से नए प्रोडेक्ट जोड़े जाएं. खास बात ये है कि अब हैंडलूम उत्पादों पर विभिन्न स्मारकों को उकेरा है. अपनी इस सोच को आर्किटेक्चर्स का टच दिया है. बकायदा आर्किटेक्ट्स की सेवाएं ली हैं.
गागरोनी तोता भी बढाएगा मान: राजस्थान अब गागरोनी तोते को भी साड़ियों में समेटेगा. तोता जो झालावाड़ से वाबस्ता है और इंसान की तरह हूबहू बोलने में माहिर माना जाता है. अब विलुप्त प्राय है लेकिन मरुभूमि की Identity से जुड़ा रहा है. शर्मा बताते हैं कि वो भी हमारे कल्चर का अभिन्न अंग रहा है. उस तोते को भी स्लिक में ढाला गया. कुल मिलाकर ट्रेडिशन के साथ फैशन के तड़के की पूरी तैयारी है. बुनकरों को ट्रेन किया जा रहा है ताकि वो वही न परोसें जो सालों से परोसते आ रहे हैं बल्कि उसमें कुछ बदलाव लाएं.
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हथकरघा को ब्रांड बनाने की जरूरत:टोंक जिले के आंवा कस्बे में आंवा साड़ियों के जरिये हथकरघा उद्योग को बढ़ा रहे राहुल कुमार जैन बताते हैं कि प्रदेश में हथकरघा बुनकरों की कमी नहीं है लेकिन इन्हें प्रोत्साहन नहीं मिलता. सरकार ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध करने की बात करती है लेकिन बैंक में लेने जाओ तो बैंक वाले चक्कर कटवाते हैं कई तो लोन देने से भी मना कर देते हैं. इसके साथ बाजार उपलब्ध होना भी एक बड़ी समस्या है. जरूरत इसे ब्रांड की तरह पेश करने की है.
बुनकरों की हालत अच्छी नहीं: 40 साल से हथकरघा का काम कर रहे मोड़ा राम बताते हैं कि जो बुनकरों को मजदूरी मिलती है वो कम पड़ती है. हम 40 साल से यही काम कर रहे हैं इसके आलावा कोई दूसरा काम नहीं कर सकते लेकिन युवाओं के पास दूसरे और भी रास्ते हैं. मजदूरी भी करने जाएगा तो इससे ज्यादा कमा लेगा. जब तक बुनकर को उसकी मेहनत की मजदूरी नहीं मिलेगी नए बुनकर तैयार नहीं होंगे.
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यूथ के बीच पॉपुलर बनाने से बनेगी बात:देश के हैंडलूम सेक्टर को ग्लोबल पहचान दिलाने में यूथ का महत्वपूर्ण योगदान है. महिलाएं पहले ही हैंडलूम की सबसे प्रमुख खरीदार हैं, महिलाएं वैवाहिक और अन्य विशेष कार्यक्रमों में हैंडलूम प्रोडक्ट पहनना पसंद करती हैं. परम्परा से जुड़ाव का एहसास दिलाता है ये. अब जरूरी है कि यूथ के बीच हैंडलूम प्रॉडक्ट को पॉपुलर बनाया जाए. इसके लिए हैंडलूम सेक्टर यूथ की पसंद को ध्यान में रखते हुए डिजाइनिंग पर फोकस करना होगा. इसी सोच को अमली जामा पहनाने की जुगत में है राजस्थान फोर्टी वीमेन विंग. जिसने हैंडलूम को प्रमोट करने के लिए विशेष सीरीज शुरू करने की योजना बनाई है. यही वजह रही कि फोर्टी वीमेन विंग की टीम ने हथकरघा उत्सव में हाथ से बनी साड़ियों को पहन कर प्रमोशन किया. फोर्टी वीमेन विंग की महासचिव ललिता कुच्छल ने कहती हैं कि जिस तरह से खादी इंटरनेशनल लेवल पर अपनी पहचान बना चुकी है , उसी तरह से राजस्थान के बुनकर हैं. इन्हें लेकर हमने एक फैसला किया है. वो ये कि फोर्टी वीमेन विंग हैंडलूम डेवलपमेंट कारपोरेशन के साथ मिल कर साल भर अलग अलग तरह की एक्टिविटी करेगी.
7 अगस्त का महत्व: 2014 में केंद्र में जब मोदी सरकार आई तो बुनकरों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया गया और राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय किया गया . हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि इस दिन का भारत के इतिहास में विशेष महत्व है. घरेलू उत्पादों और उत्पादन इकाइयों को नया जीवन प्रदान करने के लिए 7 अगस्त 1905 को देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था. स्वदेशी आंदोलन की याद में ही 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया.