जयपुर.सामाजिक संगठनों ने पत्र के जरिए बताया कि 100 से अधिक संगठन प्रदेश में बढ़ती भुखमरी से परेशान हैं. संगठनों ने सरकार का ध्यान ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के 10 मई के परिपत्र की ओर दिलाया. उन्होंने कहा, परिपत्र में गरीब, निराश्रित, असहाय और दिहाड़ी मजदूरों के COVID- 19 के संबंध में खाद्य सुरक्षा के लिए आवंटित राशि का उल्लेख है, जो अपर्याप्त है. उन्होंने मांग किया कि जितने भी लोग खाद्य सुरक्षा कानून (NFSA) के अंतर्गत नहीं आते हैं. उन्हें लाभ देने के लिए परिपत्र में स्वीकृत राशि ऊंट के मुह में जीरे के सामान है.
परिपत्र में हर विधायक कोष से 25 लाख रुपए राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में हस्तांतरित होने हैं, जो की 200 विधायक के हिसाब से 50 करोड़ राशि पूरे राजस्थान के लिए बनती है. यदि 500 रुपए राशि प्रति परिवार को राशन उपलब्ध कराया जाए (10 kg आटा, 1 किलो तेल, एक किलो दाल, नमक और मसाले) 10 लाख परिवार को एक हफ्ते का ही खाद्यान्न मिल पाएगा. पत्र में बताया गया, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (2013) कानून के तहत प्रदेश की 65 फीसदी जनसंख्या ही लाभार्थी हो सकती है. साल 2011 के अनुसार राजस्थान की 4.47 करोड़ जनसंख्या ही पात्र है. साल 2020 के अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से प्रदेश की 65 प्रतिशत जनसंख्या 5.25 करोड़ हो गई है. यानी करीब 16 लाख परिवारों के 79 लाख लोग खाद्य सुरक्षा सूची से बाहर हैं. ऐसे भी परिवार हैं, जो 15 महीनों के लॉकडाउन और आय के कारण गरीब हो गए हैं.
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मध्यम वर्ग के लोग और गरीब हुए हैं, जिसका आंकड़ा बहुत अधिक है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के तहत देश के 97 प्रतिशत लोगों की आय, पिछले 15 महीनो में घटी है और कम से कम 1 करोड़ लोग की नौकरी गई है. राजस्थान में वैसे ही बेरोजगारी दर 27.6 प्रतिशत है और हर तीन में से एक व्यक्ति बेरोजगार है. इसका मतलब सस्ता राशन से वंचित परिवारों का आंकड़ा 79 लाख लोगों से भी अधिक होगा. पत्र के जरिेए सामाजिक संगठनों ने बताया, जब 10 करोड़ मीट्रिक टन अनाज एफसीआई के भंडारों में हैं, तब लोगों को भुखमरी क्यों सहनी पड़ रही है? अर्थशास्त्रियों का कहना है, बफर स्टॉक अलग करने के बाद, जितना भण्डारण अनाज का अभी एफसीआई गोदामों में है, उससे 9 महीने तक 90 करोड़ लाभार्थियों को पर्याप्त अनाज मिल सकता है.