जयपुर.अपनी 11 सूत्रीय मांगों को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारियों ने गुरुवार से महापड़ाव शुरू कर दिया है. हालांकि इस महापड़ाव में हजारों की संख्या में मंत्रालयिक कर्मचारियों को शामिल होना था लेकिन यह संख्या उम्मीद से काफी कम रही है.
अपनी मांगों को लेकर राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ के बैनर तले प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारी 2 अक्टूबर से शहीद स्मारक पर आंदोलन कर रहे हैं. इस आंदोलन में 6 मंत्रालयिक कर्मचारियों ने आमरण अनशन शुरू किया था लेकिन उनकी तबीयत खराब होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. पिछले 13 दिन से महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष मनोज सक्सेना आमरण अमशन पर बैठे हैं.
पढ़ें.हम गुजरात में सरकार बनाएंगे और 25 साल की भाजपा की विफलताओं को लेकर सड़कों पर उतरेंगे : रघु शर्मा
अनशन करने और मंत्रालयिक कर्मचारियों की तबीयत बिगड़ने के बावजूद सरकार से अभी तक वार्ता के लिए महासंघ को नहीं बुलाया गया है. इससे मंत्रालयिक कर्मचारियों में सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है जिसके चलते ही गुरुवार से महापड़ाव की घोषणा की है.
इस महापड़ाव के लिए प्रदेशभर से हजारों मंत्रालय कर्मचारियों को बुलाया गया था लेकिन उम्मीद से काफी कम मंत्रालयिक कर्मचारी इस महापड़ाव में शामिल हुए. महासंघ को उम्मीद थी कि इस महापड़ाव में हजारों की संख्या में प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारी शामिल होंगे लेकिन यह संख्या 200 से 300 तक ही सिमट कर रह गई. जब इस संबंध में पदाधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आज पहला दिन था और अलग-अलग जिलों से आने में कर्मचारियों को समय लग रहा है.
पढ़ें.जोधपुर में राजे के बाद अब पूनिया के समर्थक करेंगे शक्ति प्रदर्शन!
महासंघ के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष अनिल शर्मा ने बताया कि सभी मंत्रालयिक कर्मचारियों को गुरुवार से सामूहिक अवकाश लेकर महापड़ाव में शामिल होने के लिए कहा गया था, लेकिन अन्य जिलों से आने के कारण उन्हें समय लग रहा है इसलिए महापड़ाव में संख्या बल थोड़ा कम है. आने वाले दिनों में यह संख्या हजारों में होगी.
2018 में भी भाजपा सरकार में मंत्रालयिक कर्मचारियों ने 18 दिन का एक बड़ा महापड़ाव डाला था जिसमें प्रदेश के हजारों मंत्रालयिक कर्मचारी शामिल हुए थे, लेकिन शहीद स्मारक पर आज से शुरू हुआ महापड़ाव पहले दिन फ्लॉप रहा. बताया जा रहा है कि महासंघ के दो टुकड़े होने के कारण गुरुवार को मंत्रालयिक कर्मचारियों की संख्या काफी कम थी. महासंघ के दोनों गुट एक-दूसरे के विरोधी हैं और सरकार से अपनी मांगों को पूरा करने लिए अलग-अलग मांग पत्र देते हैं.