जयपुर.कोरोना के चलते इस साल विश्व बाघ दिवस पर कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किए गए. हालांकि इस मौके पर जयपुर टाइगर फेस्टिवल की ओर से ऑनलाइन प्रदर्शनी और कॉन्टेस्ट आयोजित किए गए, जिसमें लोगों ने ऑनलाइन पार्टिसिपेट किया. बाघ दिवस के अवसर पर बाघ संरक्षण का भी संदेश दिया गया है. सोशल मीडिया के माध्यम से टाइगर डे पर वन्यजीव प्रेमियों और वन विभाग के अधिकारियों ने शुभकामनाएं दी है. लेकिन प्रदेश में बाघ कितने सुरक्षित हैं? उनके लिए पर्याप्त रहवास की उपलब्धता है या नहीं? और बाघ की शरण स्थली से गांवों के पुनर्वास की योजना कितनी सफल हुई? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिन पर गहन चिंतन कर ठोस फैसला लेने की जरूरत है.
वन्यजीव प्रेमियों ने दी शुभकामनाएं राजस्थान में मात्र दो टाइगर रिजर्व और घोषित होने की दरकार है, जिससे देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर बन जाएगा और यह सम्भवतः देश का भी सबसे बड़ा टाइगर कॉरिडोर साबित होगा. फिलहाल राजस्थान में तीन टाइगर रिजर्व हैं, अलवर का सरिस्का, सवाई माधोपुर-करौली का रणथंभौर और कोटा, झालावाड़, बूंदी और चित्तौड़गढ़ का मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व. यदि बूंदी के रामगढ़ को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलता है तो सवाई माधोपुर से चित्तौड़ तक टाइगर कनेक्टिविटी हो जाएगी.
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वहीं, अगर कुंभलगढ़ टाइगर रिजर्व बनता है तो उदयपुर से राजसमंद से पाली और रावली टॉडगढ़ होते हुए अजमेर और उदयपुर के रणकपुर से सिरोही की माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी से फिर उदयपुर के फुलवारी की नाल तक टाइगर कॉरिडोर बनने की संभावना है. राजस्थान क्षेत्रफल में जरूर बड़ा है, पर ज्यादातर मरु भूमि होने से यहां जंगल कम है. वहीं मध्यप्रदेश में 6 टाइगर रिजर्व हैं, राजस्थान में जो जंगल टाइगर रिजर्व बनाए जा सकते हैं, उसमें अप्रत्याशित देरी हो रही है.
MP है देश का टाइगर स्टेट
मध्यप्रदेश भारत का टाइगर स्टेट है, यहां राजस्थान की तरह कोई होटल लॉबी नहीं है. जो किसी भी टाइगर रिजर्व को प्रभावित करती हो. जबकि राजस्थान में एक ऐसी होटल लॉबी है, जो नहीं चाहती कि राजस्थान में एक जगह विशेष की जगह कहीं और टाइगर रिजर्व बने और अपने पैसे और राजनैतिक अप्रोच के बलबूते पर राजस्थान में नए टाइगर रिजर्व की हर पहल को प्रभावित करती रहती है. क्या कारण है सरिस्का अभी तक टाइगर टूरिस्म में अपने आप को स्थापित नहीं कर पाया. वहीं एक समय में सरिस्का से लगभग सारे बाघ खत्म हो गए थे. मुकुन्दरा तो शुरू से ही विवादों में रहा और अब यहां भी एक टाइगर की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है. यहां के अन्य बाघों का भी भविष्य संकट में है.
टाइगर रिजर्व से 28 बाघ गायब
बता दें एक तरफ हम 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे मनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ रणथंभौर जैसे ख्यातनाम टाइगर रिजर्व से 28 बाघ गायब हैं. सरिस्का में खनन माफिया के हौंसले इतने बुलंद हैं कि बॉर्डर होमगार्ड को ट्रैक्टर से कुचलकर मौत की नींद सुला देते हैं. मुकुन्दरा में एक युवा बाघ संदिग्ध परिस्थितियों में मौत की नींद सो जाता है, पर मुकुन्दरा प्रशासन की नींद नहीं उड़ती है. कुछ समय पहले रणथंभौर, सरिस्का और मुकुन्दरा तीनों जगह शिकारी कैमरा ट्रैप में कैद हुए, जिसमें मुकुन्दरा में हल्का केस बनाने की वजह से शिकारियों की जमानत भी हो गई.
वहीं कुछ अधिकारी अच्छा काम कर रहे हैं और लगातार शिकारियों और अवैध खनन कर्ताओं को पकड़ने का काम कर रहे हैं, लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते ऐसे ईमानदार अधिकारी भी अपना काम सही तरीके से नहीं कर पा रहे हैं. दूसरी तरफ रणथंभौर से निकलकर कई युवा बाघ टेरीटोरी की तलाश में असुरक्षित स्थानों में भटक रहे हैं. जानकार सूत्रों की माने तो यह बाघ शिकारियों की निगाहों में भी हैं. असुरक्षित स्थानों में भटकते बाघों के साथ कोई भी अप्रिय घटना हो सकती है. राजस्थान में नए टाइगर रिजर्व का काम अटका हुआ है. बाघों की लगातार मौतें हो रही हैं, कई बाघ लापता हैं. अवैध खनन माफियाओं के हौंसले बुलंद हैं, लेकिन वन महकमा अपनी गहरी नींद से उठने की जहमत नहीं उठा पा रहा है.
क्या कहना है वन्यजीव संरक्षणकर्ता का?
वन्यजीव संरक्षण कर्ता अनिल रोजर्स का कहना है कि राजस्थान में जल्द से जल्द नए टाइगर रिजर्व की घोषणा होनी चाहिए. वहीं वन्यजीव प्रेमियों नें भी बाघों की आकस्मिक मौत पर गहरी चिंता जताई है. वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि राजस्थान के सभी टाइगर रिजर्व की एडवाइजरी कमेटी को भंगकर एडवाइजरी कमेटियों का पुनर्गठन होना चाहिए और मानद वन्यजीव प्रतिपालकों की भी नियुक्तियां जल्द से जल्द होनी चाहिए. साथ ही साथ हर जिले में जो कलेक्टर के सानिध्य में पर्यावरण समिति होती है, उनमें वन्यजीव क्षेत्र में जिन लोगों नें निःस्वार्थ काम किया हो ऐसे लोगों की नियुक्ति होनी चाहिए.
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सरिस्का फाउंडेशन के सचिव दिनेश दुर्रानी ने इंटरनेशनल टाइगर डे की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जिस तरह से टाइगर दिन दोगुना और रात चौगुना हो रहा है, वैसा होता रहे. इसमें सभी टाइगर प्रेमियों का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने कहा कि सभी को बाघ संरक्षण के लिए सहायता करनी चाहिए. टाइगर को बचाने में आमजन काफी काफी सहयोग है. टाइगर बचेगा तो हमारी प्रकृति रहेगी.
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प्रदेश के टाइगर रिजर्व में लगातार बाघों का कुनबा बढ़ रहा है, लेकिन उनका घर सीमित है. रणथंबोर नेशनल पार्क में करीब 15 साल पहले 26 बाघ थे तो वहीं आज इनकी संख्या बढ़कर 95 हो गई है. इसी तरह प्रदेश भर में बाघों की संख्या में पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी भी हुई है. बाघों की संख्या लगातार बढ़ने से बाघ जंगलों से बाहर दूसरे इलाकों में निकल रहे हैं. साल 2013 में बाघ टी-56 रणथंबोर से करीब 250 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश तक पहुंच गया था. वहीं साल 2018 में टी- 91 भीलवाड़ा पहुंच गया था. इसी तरह कई बाग रणथंबोर से बाहर निकल चुके हैं तो कई बार लापता भी हुए है. बाघ संरक्षण को लेकर सरकार को भी ठोस योजना बनाने की जरूरत है.