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ज्वालामुखी के चमत्कारी ज्योति रूप का प्रकटोत्सव आज, यहां साक्षात दर्शन देती हैं मां ज्वाला !

मां ज्वाला आषाढ़ मास की अष्टमी के दिन ही इस स्थान पर ज्योति के रूप में प्रकट हुई थीं. विश्वशांति व जनकल्याण के लिए मां की पूजा अराधना हर वर्ष पुजारी वर्ग व मंदिर न्यास द्वारा सामूहिक रूप से की जाती है. हालांकि, कोरोना संक्रमण के कारण पिछले 101 दिन से मां के कपाट दर्शनों के लिए पूरी तरह बंद पड़े हैं लेकिन मां के प्रकट उत्सव पर विशेष पूजा अर्चना करके हर साल की तरह ही माता का साज श्रृंगार करके, सुगंधित फूलों से सजाकर, सुंदर नई चुनरी व वस्त्र अर्पित करके पूजन किया जाएगा.

Mata Jwalaji Prakatutsav, Jwalamukhi Temple
ज्वालामुखी के चमत्कारी ज्योति रूप का प्रकटोत्सव

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Published : Jun 28, 2020, 4:57 PM IST

ज्वालामुखी: विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ ज्वालामुखी में आज मां ज्वालाजी के ज्योति रूपों का प्रकटोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा. याद रहे कि पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार मां ज्वालामुखी का जन्मदिन साल में दो बार मनाया जाता है.

ज्वालामुखी के चमत्कारी ज्योति रूप का प्रकटोत्सव

मान्यता है कि मां ज्वाला आषाढ़ मास की अष्टमी के दिन ही इस स्थान पर ज्योति के रूप में प्रकट हुई थीं. विश्व शांति व जनकल्याण के लिए मां की पूजा अराधना हर वर्ष पुजारी वर्ग व मंदिर न्यास द्वारा सामूहिक रूप से की जाती है. हालांकि, कोरोना संक्रमण के कारण पिछले 101 दिन से मां के कपाट दर्शनों के लिए पूरी तरह बंद पड़े हैं, लेकिन मां के प्रकट उत्सव पर विशेष पूजा अर्चना करके हर साल की तरह ही माता का साज श्रृंगार करके, सुगंधित फूलों से सजाकर, सुंदर नई चुनरी व वस्त्र अर्पित करके पूजन किया जाएगा.

मां के जन्मदिन पर क्या रहेगा विशेष

माता के जन्मदिन के अवसर पर हर साल पूरे देश से श्रद्धालु ज्वालामुखी पहुंचते थे लेकिन इस बार कोई भी स्थानीय या बाहरी राज्य के भक्त मां के जन्मदिन में भाग नहीं ले पाएंगे. पीढ़ी दर पीढ़ी मां की पूजा अर्चना करने वाले लगभग 159 परिवारों के पुजारी पारंपरिक तरीके से सरकार के जारी दिशानिर्देशों की पालना करते हुए सोशल डिस्टेंसिग के तहत बारी-बारी पूजा अर्चना में सम्मिलित होकर अपनी आराध्य देवी की पूजा करेंगे.

कब खुलेगा मंदिर

गर्मियों की समय सारिणी के अनुसार मंदिर के कपाट सुबह 6 बजे दर्शनों को खुलते रहे हैं. आज मां के प्रकटोउत्सव पर सुबह 5 बजे पुजारियों ने कपाट खोले. शुभ शंख ध्वनि और घंटी वादन के साथ मंत्रोच्चार के साथ नियमित पूजा की जाएगी.

मंदिर में पूजा का समय

देशभर के मंदिरों में सुबह और शाम में दो समय की आरतियां होती हैं, लेकिन ज्वालामुखी मंदिर में सैकड़ों साल की प्रथा के अनुसार दिन में पांच आरती होंगी. पहली आरती मंगल आरती होगी जो सुबह 5 से 6 बजे तक की गई. पहली आरती में सबसे पहले माता जी को सुप्त अवस्था से उठाकर स्नान करवाया जाता है.

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एक घंटे के स्तूति गान के बाद मां को भोग प्रसाद लगाकर कपाट दर्शन के लिए खोले जाते है लेकिन कल नियमित पूजा के बाद भी कपाट दर्शनों को नहीं खुलेंगे. सुबह 11:30 बजे से 12:30 बजे तक मां की विशेष आरती होने से पहले षोडशोपचार पूजन के बाद भोग लगाया जाता है.

संध्या कालीन आरती शाम 6 बजे से 7 बजे तक होगी और मां को चना पूरी का सबसे पसंदीदा भोग लगाया जाएगा. मां की रात को 9:30 बजे से 10 बजे तक श्रृंगार आरती करके विभिन्न तरह के फलों का भोग लगाया जाएगा. इसके बाद मां के पलंग को मां के सोने के लिए फूलों से सजाया जाएगा.

रात को अपने पलंग पर सोने आती हैं मां ज्वाला

मान्यता है कि मां ज्वालामुखी हर रात मंदिर के शयन कक्ष में सोने आती हैं. रात को माता के बिस्तर की सजावट के बाद पुजारी शयन आरती करके माता को सुलाते हैं. पुजारियों की माने तो सुबह बिस्तर पर सिलवटें देखी जा सकती है. सैकड़ों सालों से पुजारी इस चमत्कार को मां के शयन कक्ष में देखते आ रहे हैं.

शहनाईयों से गूंजेगा मंदिर परिसर

मां ज्वाला के प्रकटोत्सव पर पूरा मंदिर परिसर शहनाई वादन की शुभ ध्वनियों से गूंज उठेगा. सालों से मां की आरतियों के समय शहनाई बजाकर अपनी श्रद्धा अर्पित करने वाले शहनाई वादक कल भी पवित्र शहनाई बजाकर मां के जन्मदिन पर उनको बधाई देंगे.

तहसीलदार और मंदिर अधिकारी ज्वालामुखी जगदीश शर्मा ने बताया कि मां के प्रकटोत्सव की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. मां का जन्मदिन सादे तरीके से पारंपरिक तरीके से मनाया जाएगा. श्रद्धालुओं के लिए दर्शनों की सुविधा नहीं होगी. नियमित पांच आरतियां की जायेंगी. माता का विशेष साज श्रृंगार किया जाएगा. मां को विभिन्न प्रकार के भोग अर्पित होंगे.

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अष्टमी के अवसर पर पुजारियों के जारी अनुष्ठान का विधिवत ढंग से समापन होगा. कोरोना के कारण इस बार किसी तरह के भंडारे या जागरण का आयोजन नहीं होगा. पूरी सावधानी व श्रद्धा के साथ जन्मदिन मनाया जाएगा.

मंदिर के पुजारी ऋषि शर्मा ने बताया कि यह चमत्कारिक है कि भारत में आषाढ़ मास की अष्टमी को दो पर्व होते हैं. यहां ज्वालामुखी में मां के ज्योति रूप का प्रकटउत्सव मनाया जाएगा तो माता कामाख्या देवी में इस पर्व को आम्बाची उत्सव के रूप में मनाया जाता है. कामाख्या मंदिर में माता का योनि रूप पूजा जाता है और इसी दिन वर्ष में एक बार माता का मासिक स्त्राव होता है.

ऋषि शर्मा ने बताया कि इस दिन को आम्बाची पर्व के नाम से भी जाना जाता है. यह समय प्रकृति की पुनरसरंचना का समय माना जाता है. इसलिए इस दिन प्रकृति भी स्वयं को पुनर्जीवित करती है. यह दोनों पर्व एक ही समय में पड़ने के कारण इस दिन का महत्व लाखों करोड़ों गुणा बढ़ जाता है. यह नवरात्र गुप्त नवरात्र के नाम से जाने जाते हैं.

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