जयपुर. देश में कोरोना संक्रमण के चलते अचानक लगाया गया लॉकडाउन प्रवासी मजदूरों के लिए महंगा साबित हुआ. प्रधानमंत्री मोदी के लॉकडाउन की घोषणा के बाद श्रमिकों के लिए अचानक से रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया. ऐसे में अब प्रवासी मजदूरों के पास अपने घर लौटने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा.
लॉकडाउन की घोषणा के बाद सभी प्रवासी मजदूर अपने परिवार के साथ घर जाने के लिए चल पड़े. लेकिन लॉकडाउन के चलते परिवहन का कोई भी साधन उन्हें उपलब्ध नहीं हुआ. ऐसे में अब मजदूरों ने अपने परिवार के साथ घर के लिए सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करने की ठान ली.
श्रमिकों के पूरे परिवार ने अपना सामान और बच्चों को सिर पर उठाया और घर की ओर कूच कर दी. कुछ मजदूरों के परिवारों को सरकार ने लॉकडाउन के दौरान राज्यों की सीमा पर पकड़ कर आश्रय स्थल भेज दिया. लेकिन कई श्रमिक ऐसे रहे जिन्होंने लॉकडाउन को चुनौती मान कर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय किया और जब वो अपने मंजिल के नजदीक पहुंचने ही वाले थे, तभी जिंदगी की डोर उनके हाथ से छूट गई.
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आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान अब तक 40 से ज्यादा मजदूरों की जान जा चुकी है. इनमें कुछ को घर जाने की जिद ने खा लिया तो कुछ ने खुद ही मौत को गले लगा लिया. वहीं, कई श्रमिक ऐसे हैं जिन्होंने अपने हौसले के दम पर अपना रास्ता तय किया और अपने घर पहुंचे. सिर पे परिवार की जिम्मेदारी, खत्म होते पैसे और बच्चों की भूख के आगे मजबूर प्रवासी मजदूरों ने ये कदम उठाया जिसमें कुछ सफल रहे तो कुछ विफल.
100 किलोमीटर पहले थम गई सांसे
सवाई माधोपुर का रहने वाला मुकेश बैरवा परिवार के साथ जयपुर में मजदूरी करता था. कोरोना की दहशत और लॉक डाउन के चलते उसने परिवार के साथ जयपुर से अपने घर सवाई माधोपुर के जैतपुरा गांव जाने के लिए पैदल ही निकल पड़ा.