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Special: कोरोना की चपेट में रावण, कारीगरों की कमाई पर कोरोना राक्षस का संकट

जयपुर में विजयादशमी पर बड़े स्तर पर रावण का दहन किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना के चपेट में रावण भी आ गया है. जिससे इस बार रावण का दहन नहीं हो पाएगा. इस कारण पुतला बनाने वाले कारीगरों पर आर्थिक संकट के बादल छा रहे हैं. पहले से कर्ज में डूबे इन कारीगरों को फिर नुकसान का डर सता रहा है. पढ़िए ये खबर..

राजस्थान में कोविड-19, Ravan effigy
जयपुर पुतला कारीगरों पर संकट

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Published : Oct 23, 2020, 3:06 PM IST

जयपुर. कोरोना वायरस का असर दशहरे पर भी साफ देखने को मिल रहा है, जहां अब विशालकाय लंकापति रावण भी कोरोना की चपेट में आ गए हैं. यही वजह है की इस बार विजयदशमी पर रावण की साइज भी छोटी हो गई है. रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों से कोई पुतले खरीदने को नहीं आ रहे हैं.

पुतला कारीगरों पर गहराया संकट

इस बार कोरोना ने एक तरह से रावण को ही जकड़ लिया है. इस बार ना रावण की लंका जलेगी और ना ही विशालकाय रावण के पुतलों का दहन होगा. राजस्थान में कोविड-19 गाइडलाइंस के चलते बड़े आयोजनों पर पाबंदी है. ऐसे में विशालकाय रावण का कद भी छोटा हो गया है लेकिन अफसोस उसको खरीदने वालों का भी इंतजार है.

रावण कुंभकरण और मेघनाद के पुतले

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रावण के पुतले बनाने वालों करीगरों पर अनलॉक के बाद भी आर्थिक संकट मंडरा रहा है. पहले इस उम्मीद से काम शुरू किया कि लॉकडाउन खुल चुका है लेकिन धारा 144 ने सब कुछ फीका कर दिया. हालांकि, गुजर-बसर करने के लिए ब्याज पर रुपये लेकर इस उम्मीद से छोटे-छोटे रावण के पुतले तो बनाएं की कोई राम भक्त आएगा और रावण की लंका दहन कर उनकी भूख मिटाएगा लेकिन अब वो उम्मीद भी मास्क लगाकर एक कोने में रूठ कर बैठ चुकी है. जिसके चलते उनके परिवार एक तरह से क्वॉरेंटाइन हो गए हैं.

पुतला निर्माण करता कारीगर

रावण के पुतलों के ग्राहक ही नहीं

पिछले करीब 10 सालों से जयपुर एयरपोर्ट के पास फुटपाथ पर परिवार के साथ आसमान की ओढ़ में तिरपाल के नीचे जीवन बिताने वाले कारीगर प्रधान नाथ बताते है कि, पिछले साल भी उनका बहुत नुकसान हुआ था और अबकी बार भी हालात काफी खस्ता है. क्योंकि रावण और बाकी के पुतले बना तो रहे हैं लेकिन ग्राहक नहीं हैं. कर्जा लेकर जैसे तैसे पुतले बना तो दिए लेकिन धंधा पहले की मुकाबले काफी मंदा है. जिसके चलते आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.

रावण के छोटे पुतले

कर्ज लेकर बनाया पुतला

वहीं कारीगर मांगीलाल अपना दर्द बयां करते हुए बताते हैं कि 5 रुपये सैकड़ा के हिसाब से ब्याज पर धनराशि लेकर आते हैं और फिर इन पुतलों को बनाने में वो खर्च करते हैं. कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है तो कई बार फायदा भी खूब होता है. लेकिन अगले की रकम तो वापस लौटानी ही पड़ती है.

कारीगरों को सता रहा नुकसान का डर

मांगीलाल कहते हैं कि अबकी बार कोरोना की मार के चलते माल भी कम बनाया है. लागत के अनुसार कुछ मिल भी सकता है लेकिन इसका भी कोई भरोसा नहीं है. हालांकि, हर साल के मुकाबले उतने रावण नहीं बनाएं गए लेकिन जो भी बने है उनको बेचना भी एक तरह से चुनौती है क्योंकि कोरोना की वजह से लोग डर के मारे घरों से निकल नहीं रहे हैं.

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ऐसे में यदि रावण का पुतला जलता है तो ही इन कारीगरों का घर चलेगा, नहीं तो दो वक्त की रोटी जुटाना और धनाढ्य सेठों को उनकी ब्याज की रकम लौटना उनके लिए गले की फांस बन जायेगा.

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