जयपुर. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जिस चरखे से विदेशी हुकूमतों की चूलें हिला दी थी. वो चरखा आज ग्रामीण अंचल की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है. कभी स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक रही खादी अब नारी शक्ति के घर का खर्च भी चला रही है.
राजस्थान में चल रहा आत्मनिर्भरता का चरखा समय के साथ-साथ परिवर्तन के इस दौर में गांव की महिलाएं घर में रहते हुए भी कुछ समय निकालकर खादी की फैशनेबल ड्रेसेज बनाकर अलग से आमदनी कमा रही हैं. इससे प्रधानमंत्री के वोकल फ़ॉर लोकल के ध्येय को भी मजबूती मिल रही है.
जयपुर के चौमू गांव में अंबेडकर विकास समिति सैंकड़ों ग्रामीण महिलाओं को सशक्त कर रहा है. खादी उत्पाद बनाने वाली गुलाब देवी बताती है कि वे पिछले 10 साल से इस काम मे जुटी हुई हैं. जिसमें चरखे के अलावा हर तरह की मशीनों पर धागे से लेकर बुनाई तक पूरा काम कर लेती हैं. इस काम से 1 किलो माल निकलने पर उन्हें 400 रुपये मेहनताना मिलता है.
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खादी को फैशनेबल ड्रेसेज में बदलने वाली प्रोडेक्ट डिजाइनर डॉ संगीता वर्मा ने बताया कि उनकी संस्था की स्थापना 1982 में हुई. 2007 में खादी का सर्टिफिकेट मिला. तब से खादी का रोजगार शुरू किया. शुरुआत में बहुत कम कतिनें जुड़ीं. लेकिन आज 107 कतिनों और 24 बुनकर जुड़े हुए हैं. ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार को लेकर इस संस्था की स्थापना की गई थी. यहां महिलाएं जो कपड़ा बनाती हैं वो खादी भंडारों, एग्जीबिशन के माध्यम से बेचा जाता है. उनका ये प्रोडक्ट राजस्थान के अलावा देश-विदेश में भी जाता है.
अंबेडकर विकास समिति दे रही महिलाओं को संबल युवाओं को खादी से जोड़ने के लिए लेटेस्ट फैशनबल डिजाइन तैयार की जा रही है. जिसमें साड़ियां, पेंट-शर्ट, कोट, टॉपर, वन पीस तक तैयार हो रहे हैं. ताकि युवा वर्ग भी खादी को ज्यादा से ज्यादा पहन सके. संगीता कहती हैं कि खादी के कपड़े पहनने के बाद जो फीलिंग आती है वो अपने आप में एक अलग ही सुकून देता है.
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संस्था सचिव रामजीलाल ने बताया कि महिलाओं को यहां ट्रेडिशनल और नॉर्मल चरखे से सूत कताई का काम करवाते है. इसमें दरियां, रजाई, शीट कवर, बैड शीट जैसे करीब 70 आइटम तैयार किए जाते हैं. इसके लिए संस्था से 250 महिलाएं रजिस्टर्ड हैं, उसमें से 85 महिलाएं कार्यरत हैं. जिसमें करीब 30 महिलाएं रोजाना चरखे पर काम करती हैं. यहां 50 लाख की लागत तक का कपड़ा तैयार किया जाता है. जिनको राजस्थान सरकार और केंद्र सरकार की ओर से लगने वाली खादी प्रदर्शनियों में शो किया जाता है.
चरखा चलाकर घर पाल रही हैं महिलाएं संस्था से जुड़ी इन महिलाओं को देख लगता है कि बदलते वक्त के साथ अब महिलाओं की स्थिति भी बदल रही है. किसी जमाने में चूल्हा-चौका तक सीमित रहने वाली महिलाएं आधुनिक समाज में अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रही हैं. अब जरूरत है खादी ग्रामोद्योग और राज्य सरकार को इनकी सुध लेने की.