जयपुर.राजधानी जयपुर को छोटी काशी कहा जाता है और ये उपाधि यहां भगवान भोलेनाथ के स्थापित मंदिरों से मिली है. जयपुर में महादेव के कई पुराने मंदिर है, लेकिन यहां ताड़केश्वर मंदिर, जयपुर की स्थापना से पहले का है. छोटी काशी जयपुर के चौड़ा रास्ता स्थिति जयपुर स्थापना से पहले का ऐतिहासिक स्वयंभू बाबा ताड़केश्वर नाथ मंदिर तांत्रिक विधि से वास्तुकला पर आधारित है. यह मंदिर सिटी पैलेस और जयपुर के दीवान व मंदिर के निर्माता विद्याधर चक्रवर्ती की हवेली से गोपनीय सुरंगों के जरिए जुड़ा हुआ है.
राजतंत्र के समय जयपुर राजपरिवार के सदस्य सुरंग से ही मंदिर में दर्शन के लिए आया करते थे. करीब 5 बीघा में स्थापित इस मंदिर की स्थापना से अभिभूत महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने दीवान को 12 गांव जागीर में दिए थे, बाद में दीवान विद्याधर ने मंदिर पूजा के लिए आमेर से बुलाए पुजारी व्यास परिवार को मंदिर की सेवा पूजा व जीवन यापन के लिए उस वक्त के पुजारी सोमेश्वर व्यास और गिरधारी व्यास को मंदिर की जिम्मेदारी सुपुर्द कर दी थी. इस मंदिर में आजादी के बाद तक राजपरिवार के सदस्य अशोक कार्य यही संपन्न करते थे.
श्मशान भूमि पर बकरी से हारा शेर
मंदिर में आठवीं पीढ़ी के महंत दिनेश व्यास ने बताया कि आमेर राज्य के समय इस स्थान पर ढूंढाड़ गांव बसा हुआ था. जिसके तहत वर्तमान मंदिर के स्थान पर ताड़ वृक्षों के साथ बियाबान जंगल था. उस वक्त मंदिर पुजारी के पूर्वज आमेर से सांगानेर जाते वक्त इस स्थान पर विश्राम किया करते थे. एक बार उन्होंने देखा कि एक बकरी अपने दो बच्चों को बचाने के लिए हिंसक शेर से मुकाबला कर रही थी. कुछ समय बाद अजयभूमि माने जाने वाली इस भूमि पर शेर बकरी से हार गया और वहां से भाग गया.