जयपुर. नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है. देवी का रंग गौर होने के कारण इनका नाम महागौरी पड़ा. महागौरी की पूजा-अर्चना से पाप नष्ट होते हैं. इसके साथ ही इस जन्म के दुख, दरिद्रता और कष्ट भी मिट जाते हैं. महागौरी को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं. जिनमे से एक यह भी है कि भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी. जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें स्वीकार करते हैं और उनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं. ऐसा करने से देवी अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं. तभी से उनका नाम गौरी पड़ गया.
मां की अराधना करने से मन और शरीर हर तरह से शुद्ध हो जाता है. देवी महागौरी भक्तों को सदमार्ग की ओर ले जाती है. इनकी पूजा से अपवित्र और अनैतिक विचार भी नष्ट हो जाते हैं. देवी दुर्गा के इस सौम्य रूप की पूजा करने से मन की पवित्रता बढ़ती है. जिससे सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ने लगती है. देवी महागौरी की पूजा करने से मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है. इनकी उपासना से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
पढ़ेंः नवरात्र का 7वां दिनः शिला माता के दर्शन करने दूरदराज से आए श्रद्धालु...
महागौरी की चार भुजाएं हैं. इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है. मां ने ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण किया हुआ है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा है. मां का वाहन वृषभ है इसीलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. मां सिंह की सवारी भी करती हैं.
महागौरी की पूजन विधि:
- सबसे पहले अष्टमी के दिन स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें.
- अब लकड़ी की चौकी या घर के मंदिर में महागौरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर मां का ध्यान करें.
- अब मां की प्रतिमा के आगे दीपक जलाएं.
- मां को फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें.
- माता रानी की आरती उतारें.
- अष्टमी के दिन कन्या पूजन श्रेष्ठ माना जाता है.
- नौ कन्याओं और एक बालक को घर पर आमंत्रित करें. उन्हें भोजन कराएं.
- कन्याओं और बालक को यथाशक्ति भेंट और उपहार दें.
- अब उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और उन्हें विदा करें.
कन्याभोज का है विशेष महत्व: