जयपुर: संतोषी माता (Santoshi Mata) यानी संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता. इसी रूप में मां को पूजा भी जाता है. मान्यता अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. संतोष (Maa Santoshi) हमारे जीवन में बहुत जरूरी है. संतोष ना हो तो इंसान मानसिक (Mentally) और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है. संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का संचार करती हैं.
माता संतोषी की पूजा से लाभ (Mata Santoshi Pujan Labh)
मान्यता है कि मां के 16 शुक्रवार व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है.
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पूजन विधि (Maa Santoshi Pujan Vidhi)
सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें. स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें. माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं.
माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें. माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगायें, संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें.
कैसे सुनें कथा (Santoshi Maa Katha)
इस व्रत को करने वाला कथा कहते और सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे. कथा श्रवण करने वाला ‘संतोषी माता की जय’ का जयकारा लगाता है. कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ और चना गाय को खिला दे. कलश के ऊपर रखा गुड़ और चना सभी को प्रसाद के रूप में बांट दें. कथा से पहले कलश को जल से भरें और उसके ऊपर गुड़ और चने से भरा कटोरा रखे. कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल देना चाहिए.
संतोष बड़ी चीज है सो अगर बाज़ार से गुड़ न खरीद सकें तो चिंतित न हों. घर में मौजूद गुड़ से ही काम लिया जा सकता है. व्रत करने वाले को श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए.
इस बात का रखें खास ख्याल:इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए और ना ही खानी चाहिए.