जयपुर. कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन का असर हर वर्ग पर पड़ा है. आम से लेकर खास तक इससे प्रभावित हुए. लोगों के काम धंधे चौपट हो गए और हजारों लोगों को नौकरियां चली गई. आर्थिक रूप से देश और प्रदेश की जनता को संकट का सामना करना पड़ा. इस संकट की घड़ी में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से उलट-पुलट हो गई. जो अब तक पटरी पर नहीं आ पाई है. इसके अलावा महामारी और लॉकडाउन का असर जिस वर्ग पर पड़ा है वह स्कूली बच्चियां. कोरोना के कारण स्कूली बालिकाओं की पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है. स्कूलों में पढ़ने वाली बालिकाओं के ड्रॉपआउट का खतरा मंडरा रहा है.
ग्रामीण इलाकों में ड्रॉपआउट का ज्यादा खतरा
घर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अधिकतर बालिकाओं का ड्रॉपआउट हो सकता है. प्रदेश में पहली से आठवीं तक की पढ़ाई सभी बच्चों के लिए निशुल्क है. 9वीं से 12वीं तक की कक्षाओं की जरूर फीस ली जा रही है. हालांकि सरकारी स्कूलों में 9वीं से 12वीं तक की फीस मामूली है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले अभिभावक लॉकडाउन के कारण यह फीस देने में भी सक्षम नहीं हैं. ऐसे में यह माना जा रहा है कि इस साल बड़ी संख्या में बालिकाओं का स्कूलों से ड्रॉपआउट हो सकता है. इसका ज्यादा असर गांव और ढाणियों में देखने को मिलेगा.
आर्थिक स्थिति बन रही रोड़ा
राजधानी में लोडिंग ऑटो चलाने वाले रिजवान अली मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं. उनके घर में ही एक ही फोन है, वो भी की-पैड वाला. उनकी 2 बेटियां सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं, जो क्लास ट्वेल्थ में हैं. लेकिन टच स्क्रीन फोन नहीं होने के कारण पढ़ाई ही नहीं हो पा रही है. उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है कि दूसरा फोन खरीद सके. ऐेसे में दोनों बेटियां घर पर ही बैठी हुई हैं, क्योंकि जब फोन ही नहीं, तो ऑनलाइन पढ़ाई कैसे होगी?
रिजवान बताते हैं कि सरकार की तरफ से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल रही है. गरीबों को सुविधाएं देने का दावा तो सरकारें करती हैं, लेकिन धरातल स्तर पर उन तक सरकारी मदद पहुंचती ही नहीं है. सरकार जब बेटी पढ़ाने की बात करती है, तो बेटियों की मदद भी करनी चाहिए.
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सरकारी स्कूल की 12वीं कक्षा में साइंस पढ़ने वाली बालिका पूनम वाल्मीकि कहती हैं कि उनके घर में मोबाइल फोन नहीं है. जिसके कारण वह ऑनलाइन क्लासेज के जरिए पढ़ाई नहीं कर पा रही हैं. पापा का लॉकडाउन काम छूट गया है. घर पर पैसे भी नहीं हैं.
ऑनलाइन एजुकेशन टेढ़ी खीर