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नाबालिग का अपहरण कर दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त को आजीवन कारावास - जयपुर जिला अदालत न्यूज

जयपुर की पॉक्सो मामलों की विशेष अदालत ने नाबालिग का अपहरण कर उसके साथ 10 दिन तक दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त गणेश बैरवा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. साथ ही अदालत ने अभियुक्त पर तीन लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

Minor rapes in Jaipur, जयपुर जिला अदालत न्यूज
नाबालिग का अपहरण कर दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त को आजीवन कारावास

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Published : Jan 28, 2020, 9:59 PM IST

जयपुर. जिले की पॉक्सो मामलों की विशेष अदालत ने नाबालिग का अपहरण कर उसके साथ दस दिन तक दुष्कर्म करने वाले अभियुक्त गणेश बैरवा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. इसके साथ ही अदालत ने अभियुक्त पर तीन लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है. अदालत ने कहा कि अभियुक्त को शेष जीवन जेल में रखा जाए.

अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक विजया पारीक ने अदालत को बताया कि फागी थाना इलाका निवासी पीड़िता 5 मई 2018 की रात लघुशंका के लिए घर से बाहर आई थी. यहां अभियुक्त ने उसके भाई को जान से मारने की धमकी दी और उसे अपने साथ ले गया. अभियुक्त ने पीड़िता को भांकरोटा इलाके में किराए के कमरे में रखा और उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया. वहीं पीड़िता के पिता की रिपोर्ट पर 15 मई को पुलिस ने पीड़िता को बरामद कर अभियुक्त को गिरफ्तार किया.

आरपीएस के खिलाफ लिया गया प्रसंज्ञान रद्द

अतिरिक्त सत्र न्यायालय क्रम-15 ने जबरन धरने से उठाकर मारपीट करने को लेकर तत्कालीन एसीपी गांधीनगर के खिलाफ निचली अदालत की ओर से लिए गए प्रसंज्ञान आदेश को रद्द कर दिया है. अदालत ने यह आदेश आरपीएस तेजपाल सिंह की निगरानी अर्जी पर दिए.

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अर्जी में अधिवक्ता बीएस चौहान ने अदालत को बताया कि वर्ष 2012 में रफीक खान खंडेलवी महिला आयोग परिसर में बिना अनुमति धरने पर बैठा था. पुलिस ने आमरण अनशन कर रहे रफीक को वहां से उठाकर अस्पताल पहुंचाया. इस पर उसने निगरानीकर्ता सहित अन्य के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज करा दिया. जबकि परिवादी स्वयं मुकदमेबाजी करने का अभ्यस्त है. उसने पुलिस पर दवाब डालने के लिए यह मामला दर्ज कराया था.

इसके अलावा निगरानीकर्ता ने अपने पदीय कर्तव्य के चलते उसे आयोग के कार्यालय से उठाया. इसके अलावा मामले में निगरानीकर्ता के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति भी नहीं ली गई. ऐसे में निचली अदालत की ओर से निगरानीकर्ता के खिलाफ 28 फरवरी 2015 को लिया गया प्रसंज्ञान आदेश रद्द किया जाए.

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