जयपुर. राजस्थान में बीते साल 20 नई नगर पालिकाओं (20 New Municipality Of Rajasthan) का गठन किया गया. इन नगर पालिकाओं में नवीन पद सृजित करते हुए अधिशासी अधिकारी से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को लगाया गया है. लेकिन अभी भी नगरों जैसी सुविधाओं और संसाधनों से ये नगर पालिकाए महरूम हैं. ऐसे में ना तो यहां प्रशासन शहरों के संग अभियान को गति मिल पाई है, और ना ही स्वच्छता सर्वेक्षण के तहत किसी तरह की तैयारी है.
स्वायत्त शासन विभाग (Self Governance Unit) ने जनसंख्या, प्रति व्यक्ति आय, आजीविका और दूसरे मानकों के आधार पर विभिन्न ग्राम पंचायतों को जोड़ते हुए 20 नई नगर पालिकाओं का गठन कर दिया है. लेकिन सरकार अब तक इन नवगठित नगर पालिकाओं में सुविधाओं का विस्तार नहीं कर पाई. आलम ये है कि गांव से शहर बने इन निकायों में संसाधनों के अभाव के चलते ना तो प्रशासन शहरों के संग अभियान को गति दी जा रही है और ना ही स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर कोई पहल की गई है.
नई नगर पालिकाओं में संसाधनों का अभाव हालांकि डीएलबी (DLB) डायरेक्टर हृदेश कुमार शर्मा की माने तो पंचायत से नगर पालिका बनने के बाद अब तक राजस्व के स्रोत विकसित नहीं हो पाए हैं. राजस्व में बढ़ोतरी कैसे की जाए इसे लेकर राज्य सरकार के स्तर पर कमेटी भी बनाई गई और मेन पावर भी उपलब्ध करवाई जा रही है. उन्होंने बताया कि इन नगर पालिकाओं को स्टेट फाइनेंस ग्रांट भी दी जाती है. इसके अलावा विकास के दूसरे प्रोजेक्ट को लेकर अलग फंडिंग भी की जा रही है.
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दूसरी तरफ नई नगर पालिकाओं के गठन के बाद से स्थानीय लोगों की नगरीय विकास कर के नाम पर जेब कटना भी शुरू हो गई है. नगरीय सीमा में शामिल होते ही ग्रामीण इलाका नगरीय विकास के दायरे में आ गया. ऐसे में 300 वर्ग गज से अधिक क्षेत्रफल का व्यक्तिगत मकान, 1500 वर्ग फीट से ज्यादा का फ्लैट, 100 वर्ग गज से बड़ी कमर्शियल और औद्योगिक संपत्ति के नाम पर यूडी टैक्स वसूलने का रास्ता खुल गया. वहीं नगरीय सीमा में शामिल होने के बाद 1000 वर्ग गज की कृषि भूमि की रजिस्ट्री पर डीएलसी की गणना 3 गुणा हो रही है. लेकिन विकास के नाम पर सब ठप पड़ा है.