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Special: कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना नगर निगम चुनाव, जानें जयपुर, जोधपुर और कोटा की ताजा स्थिति?

राजस्थान के तीन शहरों में दो शहरी सरकार बनाने को लेकर सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. भाजपा और कांग्रेस ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. दोनों दल अपनी-अपनी छाप छोड़ने के लिए एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही हैं. जयपुर, जोधपुर और कोटा के नगर निगम चुनाव दोनों बड़े राजनीतिक दलों की साख पर बने हुए हैं. आइए समझते हैं तीनों नगर निगमों के राजनीतिक और इतिहास का गणित....

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कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना नगर निगम चुनाव

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Published : Oct 24, 2020, 11:07 PM IST

जयपुर/जोधपुर/कोटा. राजस्थान के तीन शहरों में दो शहरी सरकार बनाने को लेकर सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. हालांकि पंचायत चुनाव कराने के बाद भी राज्य की कांग्रेस सरकार कोरोना संक्रमण का हवाला देकर नगर निगम चुनाव टालना चाहती थी. लेकिन न्यायालय के दखल के बाद चुनाव का रास्ता साफ हुआ.

कांग्रेस और भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना नगर निगम चुनाव

राजस्थान में जयपुर, जोधपुर और कोटा नगर निगम को शहरों की बढ़ती जनसंख्या जरूरतों और विस्तार को ध्यान में रखते हुए दो-दो भागों में बांट दिया गया है. अब जब चुनाव की सारी तैयारियां हो गई हैं, भाजपा और कांग्रेस ने इस चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. दोनों दल अपनी-अपनी छाप छोड़ने के लिए एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रही हैं. भाजपा ने जहां ब्लैक पेपर जारी किया है, जिसमें कांग्रेस की नाकामियां दर्शाई गई हैं, तो वहीं कांग्रेस ने अपना 41 बिंदुओं का घोषणा-पत्र जारी किया है.

सबसे बड़ा पेंच...

इन चुनावों में प्रदेश के दोनों बड़े राजनीतिक दलों के लिए प्रत्याशी तय करना टेढ़ी खीर साबित हुआ. वहीं जिन्हें टिकट नहीं मिला वे बागी होकर इस बार भी दोनों दलों की मुसीबत बढ़ा रहे हैं. ऐसे में फिलहाल जयपुर, जोधपुर और कोटा के नगर निगम चुनाव दोनों बड़े राजनीतिक दलों की साख पर बने हुए हैं. आइए समझते हैं तीनों नगर निगमों के राजनीतिक और इतिहास का गणित-

जयपुर नगर निगम:

  • स्थापना- 1994
  • बोर्ड- 5 (बीजेपी-4, कांग्रेस-1)
  • जयपुर नगर निगम को इस बार दो भागों में बांटा गया हेरिटेज नगर निगम (100 वार्ड) और जयपुर ग्रेटर नगर निगम (150 वार्ड).

पहले चुनाव में बीजेपी के मोहन लाल गुप्ता को मेयर चुना गया. गुप्ता ने 1994 से 1999 तक मेयर का 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद वर्ष 1999 में जयपुर मेयर पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित हुआ. भाजपा की निर्मला वर्मा मेयर तो बनी लेकिन बीच कार्यकाल में ही उनका निधन हो गया. इसके बाद भाजपा की ही शील धाभाई मेयर बनी.

पढ़ें-नगर निगम चुनाव: भाजपा ने बगावत करने वाले कार्यकर्ताओं पर की कार्रवाई, 6 साल के लिए किया निष्कासित

वहीं वर्ष 2004 से 2008 तक बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी जयपुर के मेयर बने. इसी दौरान विधायक बनने पर डिप्टी मेयर पंकज जोशी जयपुर के पांचवें मेयर चुने गए. इसके बाद मेयर के चुनाव की प्रक्रिया में बदलाव करते हुए डायरेक्ट इलेक्शन के नियम से चुना जाना तय हुआ. इस बार कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल मेयर चुनी गई.

वर्ष 2013 में प्रदेश में भाजपा की सरकार आई तो मेयर के सीधे चुनाव का नियम हटा दिया गया. 2014 से 2019 के 5 साल के कार्यकाल में एक नहीं, दो नहीं तीन-तीन मेयर मिले. भाजपा के निर्मल नाहटा इस दौरान जयपुर के सातवें मेयर चुने गए थे. लेकिन पार्टी की आंतरिक खींचतान के चलते नाहटा को 2 साल बाद इस पद से हटा दिया गया. नाहटा के बाद अशोक लाहोटी मेयर बने. जिनके विधायक बनने के बाद इसी बोर्ड में तीसरा मेयर चुना जाना था.

इस दौरान भाजपा की अंदरूनी कलह के चलते ये पद भाजपा के हाथ से निकल गया. पार्टी ने मनोज भारद्वाज को मेयर प्रत्याशी बनाया था. लेकिन भाजपा से ही पार्षद विष्णु लाटा ने पार्टी से बगावत करते हुए मेयर का पर्चा भी भरा और 1 वोट से वो विजयी भी हुए.

राजनीतिक गणित...

खास बात ये है कि मेयर पद के लिए यहां दोनों निगमों में ओबीसी की महिला प्रत्याशी के लिए सीट रिजर्व है. ऐसे में ये तय है कि जयपुर शहर को दो महिला मेयर मिलने जा रही हैं. जयपुर के दोनों नगर निगमों में यूं तो ओबीसी महिला के लिए 18 वार्ड ही आरक्षित हैं, लेकिन सामान्य, सामान्य महिला, और ओबीसी सामान्य के कोटे से भी ओबीसी महिला चुनाव जीतकर महापौर बन सकती हैं. इसके अलावा राज्य सरकार का हाइब्रिड फार्मूला भी इन चुनावों में लागू है. हालांकि विधानसभा सीटों के गणित के हिसाब से ग्रेटर नगर निगम बीजेपी, जबकि हेरिटेज नगर निगम कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहा है.

कोटा नगर निगम:

  • स्थापना- 1994
  • बोर्ड- 5 (बीजेपी-4, कांग्रेस-1)
  • कोटा शहर को इस बार 2 नगर निगमों में बांटा गया है. कोटा उत्तर (70 वार्ड) और कोटा दक्षिण (80 वार्ड). कोटा में अब तक पांच बोर्ड अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं.

कोटा नगर निगम 1994 में बना उस दौर में परसराम मदेरणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे. उधर, भुवनेश चतुर्वेदी हाड़ौती की राजनीति में कांग्रेस का बड़ा चेहरा थे. दोनों के बीच टिकट वितरण को लेकर रस्साकशी चली. इसके चलते कांग्रेस की सूची जारी तो हुई, लेकिन चंबल प्रत्याशियों को सिंबल नहीं मिल पाए. ऐसे में बिना पार्टी सिंबल के ही कांग्रेस प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा. नतीजा ये रहा कि भाजपा ने आसानी से अपना बोर्ड बना लिया. भाजपा ने ये चुनाव दाऊ दयाल जोशी और ललित किशोर चतुर्वेदी के नेतृत्व में लड़ा था.

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कोटा नगर निगम बनने के बाद शहर की पहली मेयर बनी सुमन श्रृंग. इसके बाद के 2 बोर्ड में भी बीजेपी का ही कब्जा रहा. 1999 में ईश्वर लाल साहू महापौर बने, तो 2004 में मोहनलाल महावर. दोनों ही चुनावों में बीजेपी बहुमत में रही. वर्ष 2009 में प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता थी, इस दौरान हुए निगम चुनाव बीजेपी की अंतर्कलह की भेंट चढ़ गए. प्रत्याशियों ने गलत टिकट बांटने का आरोप लगाते हुए बगावत कर दी.

बीजेपी के बागी मैदान में कूद पड़े. जिसका फायदा कांग्रेस को मिला. कांग्रेस और निर्दलीयों ने 60 में से 42 सीटें बटोरी. मेयर के सीधे चुनाव में कांग्रेस की रत्ना जैन मेयर चुनी गई और भाजपा के खाते में महज 9 सीटें आई. हालांकि वर्ष 2014 में हुए परिसीमन में 5 वार्ड बढ़ा दिए गए. मोदी लहर के चलते 2014 में हुए नगर निगम चुनाव में बीजेपी ने 65 में से 53 वार्ड पर कब्जा जमाया. कांग्रेस और निर्दलीयों को छह-छह सीटों पर ही संतोष करना पड़ा.

राजनीतिक गणित...

नगर निगम चुनाव में कोटा में अब तक पांच बोर्ड अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. हाड़ौती में जिस तरह से जनसंघ का दबदबा था, उसको बीजेपी ने भी बनाए रखा. भारतीय जनता पार्टी ने 5 में से चार बार कोटा नगर निगम के बोर्ड पर अपना कब्जा जमाए रखा. कांग्रेस ने कई बार भाजपा को टक्कर तो दी लेकिन हर बार पिछड़ती रही.

नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस केवल एक बार ही अपना मेयर बना सकी. 2009 में सीधे मेयर के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा पर बढ़त हासिल की थी, लेकिन फिर 2014 के चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली और उनके केवल 65 में से 6 ही प्रत्याशी जीतकर नगर निगम पहुंच पाए.

जोधपुर नगर निगम:

  • स्थापना- 1994
  • बोर्ड- 5 (बीजेपी-2, कांग्रेस-3)
  • जोधपुर नगर निगम को भी इस बार दो हिस्सों में बांटा गया है जोधपुर उत्तर (80 वार्ड) और जोधपुर दक्षिण (80 वार्ड).

जोधपुर नगर निगम के गठन से अभी तक कांग्रेस का ही पलड़ा भारी रहा है. 1994 में गठन से अब तक पांच बोर्ड बने हैं. जिसमें कांग्रेस हावी रही. कांग्रेस ने तीन बार महापौर का पद हासिल किया. जबकि भाजपा के खाते में दो बार यह पद आया. निगम के 1994 में बने पहले बोर्ड के 20 साल बाद 2014 में भाजपा को दूसरी बार सफलता मिली थी.

1994 से 1999 की बोर्ड में डॉक्टर खेतल खानी और इसी दौरान कुछ समय संगीता सोलंकी कार्यवाहक महापौर रही. वहीं 1999 से 2004 में कांग्रेस के शिवलाल टांक, 2004 से 2009 में कांग्रेस की ओम कुमारी गहलोत. इसके बाद 2009 से 2014 के सीधे निर्वाचन में रामेश्वर दाधीच और अंतिम बोर्ड में बीजेपी के घनश्याम ओझा महापौर रहे.

राजनीतिक गणित...

जोधपुर नगर निगम को भी इस बार दो हिस्सों में बांटा गया है- जोधपुर उत्तर और जोधपुर दक्षिण. भाजपा ने नगर निगम उत्तर और दक्षिण दोनों के लिए 80-80 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. उधर, कांग्रेस सूची जारी करने को लेकर पशोपेश में नजर आई थी. ऐसे में कांग्रेस के सामने बीजेपी के साथ-साथ बागियों की भी बड़ी चुनौती होगी. प्रदेश सरकार ने जोधपुर नगर निगम के 65 वार्डों को 160 वार्ड में परिवर्तित करते हुए दो नगर निगम बनाए हैं.

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जोधपुर की 3 विधानसभा सीटों में जोधपुर शहर और सरदारपुरा पर कांग्रेस का कब्जा है. इन दोनों विधानसभा का अधिकतर क्षेत्र नगर निगम उत्तर में आता है. ऐसे में यहां कांग्रेस का पलड़ा भारी माना जा रहा है. भाजपा के कब्जे में सूरसागर विधानसभा है, जिसका बड़ा हिस्सा नगर निगम दक्षिण में आता है. ऐसे में भाजपा को यहां बढ़त मिल सकती है.

कुल मिलाकर इस बार जयपुर, कोटा और जोधपुर का नगर निगम चुनाव दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती है. विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, तो वहीं लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने जीत का परचम फहराया था. देखा जाए तो अभी तक मुकाबला 1-1 से बराबरी पर चल रहा है. अब देखना होगा कि नगर निगम चुनावों में जनता किस दल पर अपना भरोसा जताती है.

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