जयपुर. किसान नेता हिम्मत सिंह ने कहा कि कोरोना काल के दौरान जिस प्रकार केंद्र सरकार की ओर से पहले अध्यादेश के माध्यम से फिर बिना किसी संसदीय प्रक्रियाओं का पालन किए, तीनों कृषि कानून, किसानों के साथ ही देश की जनता पर जबरदस्ती थोपे गए, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय है.
सिंह ने कहा कि सरकार ने कानून बनाने से पहले देश के किसी भी किसान संगठन और किसानों की प्रतिनिधि संस्था से बातचीत नहीं की. इससे साफ जाहिर होता है की यह कृषि कानून सिर्फ नाम के हैं, वास्तविकता में यह कॉर्पोरेट कानून हैं. इन किसान विरोधी कृषि कानूनों के विरोध में देश के 500 से अधिक किसान संगठनों के नेतृत्व में लाखों किसान पिछले 1 साल से भी अधिक समय से लगातार आंदोलनरत हैं और पिछले 9 महीने से दिल्ली के चारों ओर बॉर्डरों पर सर्दी, गर्मी और बारिश के साथ ही तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लगातार शांतिपूर्ण आन्दोलन जारी रखे हुए हैं.
हिम्मत सिंह ने कहा कि किसानों का यह आंदोलन विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मर्यादाओं को आगे बढ़ाने और परिपक्व करने में एक मील का पत्थर साबित हुआ है. दूसरी ओर केंद्र सरकार की किसानों के प्रति बर्बरता और असंवेदनशीलता ने भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार किया है. वर्तमान मानसून सत्र के दौरान एक बार फिर केंद्र सरकार ने आंदोलनरत किसानों और विपक्ष की आवाज को पूरी तरह दबाकर अनसुना किया है. बिना बातचीत और बहस के केंद्र सरकार ने एक बार फिर अलोकतांत्रिक तरीकों से कई विधेयकों को पास करवाया हैं. ऐसी स्थिति में संसद की प्रासंगिकता लोकतंत्र में बंधक जैसी हो गई है. जिस संसद को लोगों की आवाज बनना चाहिए था, वह संसद आज केवल शोर-शराबे का स्थान बन कर रह गई है.
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प्रस्तावित 'किसान संसद' में 543 लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हुए एक विशेष प्रक्रिया से चयनित किसान हिस्सा लेकर, तीनों कृषि कानूनों के विरोध में अपनी स्वतंत्र, सारगर्भित, वास्तविक और तथ्यात्मक रिपोर्ट के साथ एमएसपी गारंटी कानून देश के किसान और आम आदमी के लिए क्यों जरूरी है, इस पर अपने विचार देश के लोगों के सामने रखेंगे. जिससे देश की जनता तीनों काले कृषि कानूनों की भयानकता को समझकर 'सविधान बचाओ-लोकतंत्र बचाओ-देश बचाओ' अभियान में किसान आंदोलन के साथ खड़ी हो सके. इस किसान संसद में सभी वर्गों को उनकी वास्तविक जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व के साथ ही, महिलाओं की 51 फीसदी, किसानों की 80 फीसदी और युवाओं की उचित भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास रहेगा.