जयपुर. प्रदेश की गहलोत सरकार इस बार कृषि बजट अलग से पेश करेगी. कृषि से जुड़े करीब 8 से ज्यादा विभागों को इसमें शामिल किया गया है. पहली बार पेश होने वाले कृषि बजट से किसान को खासा उम्मीदें है . खास कर किसान संगठनों को इस पृथक कृषि बजट से काफी उम्मीदें लगी हैं. पहली बार पेश होने वाले कृषि बजट से क्या उम्मीदें हैं, इस संबंध में ईटीवी भारत ने किसान नेता रामपाल जाट से खास बातचीत की (Rampal Jat on Agriculture Budget).
कोरोना के बाद गहलोत सरकार के दूसरे बजट में जहां जनप्रतिनिधियों की मांग और आम जनता की भावनाओं का ख्याल रखना होगा (Gehlot GOV. Budget). वहीं कोरोना से चरमराई अर्थव्यवस्था का ढांचा मजबूत करने का प्रयास इस बजट में देखने को मिलेगा. केंद्र के तीन कृषि कानून को लेकर खुलकर किसान समर्थन में उतरी कांग्रेस शासित राज्यों से किसानों को खासा उम्मीदें हैं. खास कर राजस्थान की गहलोत सरकार से, जो इस बार से अलग से कृषि बजट लेकर आ रहे हैं. किसान नेताओं की माने तो इस बजट में किसानों की संख्या के अनुपात में बजट की राशि का आवंटन हो. साथ ही कृषि में स्वावलंबन और गांव में स्वायत्तता की दिशा होनी चाहिए. तब इस पृथक कृषि बजट की सार्थकता होगी.
किसान नेता रामपाल जाट Exclusive किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि यह एक अच्छा फैसला है. कोई सरकार किसानों के लिए पृथक से कृषि बजट लेकर आ रहे हैं. संभवतः राजस्थान पहला ऐसा राज्य होगा, जहां कृषि बजट अलग से पेश किया जाएगा. हालांकि बीजेपी तात्कालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी पृथक से कृषि बजट लाने की बात की थी लेकिन केंद्र में बीजेपी सरकार बनने के बाद भी अलग से कृषि बजट नहीं ला सके.
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किसानों की संख्या के अनुपात में हो बजट आवंटन
यह अच्छी बात है कि राजस्थान में कृषि बजट अलग से आ रहा है. जाट ने कहा कि प्रदेश में 72 फीसदी जनता गांव में निवास करती है. ऐसे में किसानों की संख्या के अनुपात में बजट आवंटन किया जाए. प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर अनाज के गोदाम का निर्माण हो. जिसमें किसान भंडारण कर सके इसके साथ ही उस अनाज पर लोन की सुविधा भी सरकार को उपलब्ध करानी चाहिए. वर्तमान में किसानों के पास अनाज भंडारण की सुविधा नहीं है.
टैक्स रहित डीजल दिया जाए
रामपाल जाट ने कहा कि किसानों की खेती की लागत को कम किया जाए. जिसमें डीजल के दाम में किसानों के लिए अलग से रियायत दी जाए. टैक्स रहित डीजल किसानों को मिले यह सरकार को सुनिश्चित करना होगा. उन्होंने कहा कि किसानों को जो घोषित एमएसपी है, उतना ही दाम मिले यह सुनिश्चित करना होगा. एमएसपी से कम दामों पर किसी तरह का कोई क्रय-विक्रय नहीं हो. यह सरकार को सुनिश्चित करना होगा. साथ ही किसानों के लिए हर खेत को पानी मिले इस तरह की योजनाओं पर काम करना होगा. जिससे राजस्थान में नदियों में उपलब्ध जल का उपयोग सिंचाई में किया जा सके.
कृषि बजट से यह है उम्मीद
- कृषि उपकरणों की खरीद में कर और अन्य छूट की मांगें काफी समय से जारी हैं. ऐसे में कृषि उपकरणों की खरीद में छूट की मांग की जा रही है.
- कृषि कमोडिटी को एक्सपोर्ट करने पर रियायत दी जाए.
- केन्द्र के कृषि कानूनों को लेकर हो रहे विरोध के बीच राज्य के बजट में मंडी व्यवस्था को मजबूत बनाने पर ध्यान दिया जाए.
- मंडियों की ओर जाने वाली सड़कों के विकास के लिए भी सरकार ध्यान दे.
- कृषि बजट में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों की गतिविधियों और किसान कल्याण से जुड़े खर्च को संकलित करके प्रदर्शित किया जाए.
- संबंधित विभागों में कृषि, कृषि विपणन, उद्यानिकी, पशुपालन, जल संसाधन, गोपालन, डेयरी, मत्स्य और सहकारिता विभाग शामिल हैं . इन सभी विभागों के सारे खर्चे को कृषि बजट में शामिल किया जाए.
- सोलर पैनल, स्प्रिंकलर जैसी सुविधाओं में कृषि अनुदान बढ़ा कर प्रोत्साहित किया जाए.
यह दिए सुझाव
कृषि में स्वावलंबन की दिशा में बजट हो, जिसमें कृषि में उपयोग होने वाले खाद, बीज, कीटनाशकों का उत्पादन और उत्पादन से संबंधित प्रक्रिया संबंधी प्रशिक्षण गांव स्तर पर किया जाए. जिससे किसान क्रय करने की निर्भरता नहीं रहें और खेती की लागत में कमी आ सकें.
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कृषि उत्पादों को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए छनाई, छंटाई, श्रेणीकरण, तेलमापने जैसे उपकरण/यंत्रों की व्यवस्था ग्राम स्तर पर निशुल्क की जाए. इसके संबंध में कृषि उपज मंडी अधिनियम, 1961 और नियम 1963 में प्रावधान है. इससे किसान अपने उत्पादों का अपेक्षाकृत अधिक दाम प्राप्त कर सकेंगे.
प्रत्येक ग्राम पंचायत में गोदामों का निर्माण मनरेगा और ग्राम पंचायतों को केंद्र और राज्य से प्राप्त होने वाली स्थाई राशि से एक वर्ष में ही कराया जा सकता है. आंकलन के अनुसार 5 लाख टन क्षमता के वातानुकूलित गोदाम का निर्माण 50 लाख रुपये की राशि से कराया जा सकता है. इसी प्रकार प्रत्येक पंचायत समिति में शीत गोदामों का निर्माण हो. इन गोदामों में किसान अपनी उपज को रख कर किसान सहकार योजना के अंतर्गत ऋण राशि प्राप्त कर सकता है. जिससे किसानों को अपनी उपजों को विवशता में बेचने से मुक्ति मिलेगी.
कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत ग्राम सेवा सहकारी समितियों को स्थायी खरीद केंद्र बनाने की सहमति को निश्चित समयावधि में पूर्ण किया जाए. यह समयावधि आगामी बजट तक रखी जाए.
बिजली वितरण में कृषि क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा जाए. मांगते ही कृषि कनेक्शन देने के लिए अब तक के लंबित आवेदनों का निपटारा समयबद्ध कार्यक्रम बनाकर किया जाए. इसी दिशा में कृषि की लागत कम करने के लिए कृषि क्षेत्र के लिए बिजली को निःशुल्क रखी जाए.
कृषि कार्य के लिए किसानों को बिना लाभ-हानि के आधार पर डीजल दिया जाए. इसमें राज्य की ओर से लगाए गए कर/प्रभारों को राज्य कम करें और केंद्र की ओर से लगाए गए कर/प्रभारों को कम कराने के लिए किसानो की पैरवी करें.
हर खेत को पानी उपलब्ध करवाने के लिए नदियों और बरसात के पानी के उपयोग के लिए योजनायें क्रियान्वित की जाएं . नदी से नदी जोड़ों, डिग्गी निर्माण,बूंद-बूंद एवं फव्वारा सिंचाई योजना शामिल है. प्रदेश की भागीदारी का जल अन्य राज्यों से प्राप्त करने केलिए समयबद्ध कार्यक्रम घोषित किए जाएं. विद्यमान बांधो के पानी को अंतिम छोर तक पहुंचाने को प्राथमिकता देकर समुचित योजनाएं तैयार की जाए. स्थानीय स्तर पर विद्यमान छोटे- छोटे बांध और तालाबों के पानी का उपयोग के साथ इसी प्रकार के नए बांध और तालाबों को प्रोत्साहन दिया जाए. नहर प्रणाली को न्यायोचित बनाया जाए. जिससे नहरी पानी को प्राप्त करने के लिए किसानो को जूझने के लिए अपनी उर्जा खर्च नहीं करनी पड़े.
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उपनिवेशवादी व्यवस्था की समाप्ति के लिए गांव की आवश्यकता की सामग्री और दैनिक उपयोग का सामान गांव में उत्पादन की नीति की ओर चलने की योजना बनाई जाए. गांव के मोची और लुहार की ओर से निर्मित वस्तुओं के लिए किसी दूसरे को अधिकृत कर प्रोत्साहित नहीं किया जाए. बल्कि मोची और लुहार को उनसे प्रतियोगिता करने में सक्षम बनाया जाए.
गांव का धन गांव से बाहर जाने से रुके. इस दिशा में प्रत्येक गांव को औद्योगिक क्षेत्र घोषित किया जाकर सरकार की ओर से औद्योगिक क्षेत्रों जैसी सुविधाएं प्रदान की जाए. जिससे गांव में कुटीर और लघु उद्योगों की स्थिति श्रेष्ठतर हो सकें. इस नीति से एक गांव में औसत 10 उद्योग तक पनप सकते हैं. जिससे बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं पर अंकुश लग सकें. गांव में सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, लोहा, लकड़ी, मिटटी, धातु और कपास जुट से बनने वाली सामाग्री तैयार हो. जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के व्यापार में गांव की भूमिका बन सके.