जयपुर. सरकार और विभागों को आम जनता के धन का संरक्षक माना जाता है. ये भी माना जाता है कि सरकार पाई-पाई खर्च करने में विवेक के साथ फैसला लेती है, लेकिन राजधानी के कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं. इन प्रोजेक्ट को बनाते समय भी और बनने के बाद भी सवाल उठे. बीआरटीएस कॉरिडोर और खासा कोठी फ्लाईओवर ऐसे ही प्रोजेक्ट हैं, जिस पर खर्च किए गए करोड़ों रुपए वेस्ट ऑफ मनी माने जाते हैं. वहीं, वर्तमान सरकार द्रव्यवती नदी को भी इसी श्रेणी में मानती है.
ये प्रोजेक्ट साबित हुए Waste Of Money... राजधानी में जयपुर विकास प्राधिकरण शहर की राह को सुगम बनाने के लिए 9 नए प्रोजेक्ट लाने जा रहा है, लेकिन इन प्रोजेक्ट को लाने से पहले इंजीनियरिंग सॉल्यूशन पर तकनीकी राय मशवरा किया जा रहा है. कारण साफ है कि किसी भी प्रोजेक्ट को बनाने से पहले उसकी आवश्यकता पर विचार विमर्श किया जाता है, क्योंकि उस प्रोजेक्ट पर लाखों-करोड़ों खर्च होने होते हैं. राजधानी में कुछ प्रोजेक्ट ऐसे भी हैं, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी उनका कोई औचित्य नजर नहीं आता है.
बीआरटीएस कॉरिडोर...
शहर में बीआरटीएस कॉरिडोर की शुरुआत कांग्रेस सरकार में वर्ष 2010 में की गई थी. बसों को निर्विघ्न चलाने के लिए सीकर रोड पर एक्सप्रेस वे से अंबाबाड़ी तक 7.1 किलोमीटर लंबी कॉरिडोर बनाई गई और वर्ष 2015 में 9 किलोमीटर लंबाई में अजमेर रोड से किसान धर्म कांटा होते हुए न्यू सांगानेर रोड तक इसका निर्माण कर संचालन शुरू हुआ. इसमें 165 करोड़ रुपए खर्च हुआ, लेकिन 13 किलोमीटर का बीच का हिस्सा (अंबाबाड़ी से गवर्नमेंट हॉस्टल, अजमेर पुलिया, सोडाला होते हुए पुरानी चुंगी तक) अब तक नहीं जोड़ा गया.
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29 किलोमीटर लंबाई में एक साथ कॉरिडोर में बस चलती तो जाम से निजात मिलती, लेकिन सड़क पर कॉरिडोर के लिए कम जगह का हवाला दे काम नहीं हुआ और अब इसे हटाने की तैयारी भी की जा रही है. हालांकि इस प्रोजेक्ट का निर्माण केंद्र सरकार फंडिंग से हुआ है. ऐसे में इसे हटाने से पहले शहरी विकास मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी.
खासाकोठी फ्लाईओवर...
शहर के रेलवे स्टेशन रोड पर बने खासा कोठी फ्लाईओवर को लेकर खुद कोर्ट ने जनता के पैसे का दुरुपयोग करने की बात कही थी. दरअसल, इस फ्लाईओवर की लागत आरयूआईडीपी (राजस्थान नगरीय आधारभूत विकास परियोजना) ने 17 अगस्त 2002 को 9 करोड़ रुपए बताई थी. जबकि 29 दिसंबर 2004 तक जेडीए ने कीमत 12 करोड़ रुपए करवाई और 30 अप्रैल 2005 तक फ्लाईओवर की लागत 22 करोड़ बताई गई.
यही नहीं विशेषज्ञों ने तकनीकी मापदंड और ट्रैफिक व्यवस्था का अध्ययन कर एमआई रोड से कलेक्ट्रेट की तरफ पुल बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे कमेटी ने स्वीकार कर टेंडर भी जारी कर दिए थे. लेकिन रसूखदारों को लाभ पहुंचाने के लिए बाद में पुल की दिशा मोड़ दी गई. इसकी वजह से आज भी एमआई रोड से कलेक्ट्रट सर्किल तक जाम की स्थिति बनी रहती है, जबकि पुल पर कुछ एक वाहन ही गुजरते नजर आते हैं.
द्रव्यवती नदी...
पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट द्रव्यवती नदी का काम आज तक पूरा नहीं हो पाया है. 1800 करोड़ लागत की द्रव्यवती नदी प्रोजेक्ट का निर्माण करने वाली कंपनी टाटा प्रोजेक्ट्स को ये काम अक्टूबर 2018 तक पूरा करना था. प्रोजेक्ट की अंतरिम डेडलाइन 9 अक्टूबर 2019 थी, ये तारीख भी निकल चुकी है.
आलम ये है कि सीवरेज के पानी को ट्रिटेट करके नदी में डालने का काम तो दूर की बात अब नदी की स्थिति नाले से भी बदतर होती जा रही है. देखरेख के अभाव में फिर से द्रव्यवती नदी ने गंदे नाले का रूप लेना शुरू कर दिया है. 45 किलोमीटर लंबी द्रव्यवती नदी में कुल 5 एसटीपी प्लांट लगाए गए हैं, लेकिन आज तक एसटीपी प्लांट से नालों को जोड़ने का काम पूरा नहीं हो पाया है.
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रिवर फ्रंट पर लाइट नहीं जलती है. ट्रैक पर फुटपाथ नहीं है. ग्रीन बेल्ट एरिया से ग्रीनरी भी गायब है. यही वजह है कि वर्तमान कांग्रेस सरकार इस प्रोजेक्ट को वेस्ट ऑफ मनी मानती है और इस प्रोजेक्ट की हकीकत अब केवल कागजों में ही सिमट कर रह गई है.
बहरहाल, शहर के ये प्रोजेक्ट दूरदर्शिता के अभाव में घाटे का पर्याय बने हैं. हालांकि बीआरटीएस कॉरिडोर को लेकर विश्लेषण किया जा रहा है ताकि निर्मित संरचना के उपयोग की कोई वैकल्पिक योजना तैयार की जा सके. वहीं, जेडीए प्रशासन द्रव्यवती को साफ करने और प्रोजेक्ट को पूरा करने में जुटा है.