जयपुर. कारगिल विजय दिवस (Kargil victory day) के मौके पर पूरा देश युद्ध में अपने देश सेवा में अपने वीर सपूतों को याद कर रहा है. इसी युद्ध में 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था. इस युद्ध में भारत के करीब पांच सौ जवान शहीद हुए थे. इस वॉर में सीकर जिले के नीमकाथाना में दयाल का नांगल गांव निवासी और रिटायर्ड फौजी दिगेंद्र सिंह (story of Sikar soldier Digendra Singh) का नाम हमेशा याद रखा जाएगा. दीगेन्द्र सिंह ऐसे जवान थे जिन्होंने 5 गोली लगने के बावजूद अपने लक्ष्य के मुताबिक कारगिल फतेह के लिए मिशन में पहली जीत की नींव रखी.
तोलोलिंग की पहाड़ी पहला मिशन
जम्मू कश्मीर के द्रास सेक्टर में तोलोलिंग की पहाड़ी पर मई 1999 को पाक सैनिकों ने घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था. श्रीनगर-लेह मार्ग के बीच तोलोलिंग ऊंचाई पर स्थित एक जगह है. कारगिल में जीत के लिए इस चोटी पर भारतीय सेना का कब्जा होना जरूरी था. इस जीत की रणनीति के लिए लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहिंदर पुरी को बुलाया गया था क्योंकि इसके पहले तोलोगिंग को घुसपैठियों से मुक्त करवाने में भारतीय सेना की 3 यूनिट पूरी तरह से असफल हो चुकी थी. एक यूनिट के 18, दूसरी के 22 और तीसरी यूनिट के 28 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. तोलोलिंग फिर से प्राप्त करना इंडियन आर्मी के लिए चुनौती बन गई थी. इसके बाद इंडियन आर्मी की राजपूत रायफल बटालियन को तोलोलिंग को मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
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बटालियन के द्रास पहुंचने पर आर्मी चीफ ने कमांडर कर्नल रविन्द्र नाथ से पूछा था कि ‘क्या उसकी बटालियन में कोई ऐसा फौजी है, जो तोलोलिंग की पहाड़ी पर तिरंगा फहराने का हौसला रखता हो’ यह सुनकर किसी भी फौजी की आवाज नहीं आई, लेकिन जवानों की पंक्ति सबसे पीछे मौजूद दिगेंद्र सिंह ने हाथ खड़ा किया और बोले- जय हिंद सर, कमांडो दिगेंद्र सिंह उर्फ कोबरा सेना मेडल सर. करगिल मिशन से पहले से कमांडो दिगेन्द्र सिंह ने ही हजरतवन में एक मिशन के दौरान बड़ी संख्या में उग्रवादियों का सरेंडर करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.