जयपुर. कहते हैं कि जब कलयुग में पाप की सीमा पार हो जाएगी तब दुष्टों के संहार के लिए भगवान कल्कि प्रकट होंगे. कल्कि अवतार एकमात्र ऐसे अवतार है, जिनके अवतरण से पहले जयपुर में उनकी प्रतिमा विराजमान कर मंदिर बनाया गया. करीब 300 साल पुराना ये मंदिर एक हैरिटेज प्रोपर्टी हैं, लेकिन आज विडंबना ये है कि बहुत से लोग इस मंदिर की हकीकत से अछूते हैं.
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भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा था कि जब-जब धर्म की हानि होगी और अधर्म का बोलबाला होगा, तब तब धर्म की स्थापना के लिए वो अवतार लेंगे. शास्त्रों में भगवान विष्णु के दस अवतारों का जिक्र मिलता है. इनमें से नौ अवतार हो चुके हैं और अब कलयुग में भगवान का अंतिम अवतार होना बाकी है.
भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का मंदिर हिंदू मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कल्कि अवतार होगा, लेकिन जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने जयपुर बसाने के साथ ही 1739 में ही भगवान विष्णु के इस भावी दसवें अवतार भगवान कल्कि का मंदिर बनवा दिया था.
हवामहल के सामने बने इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यता है. बताया जाता है कि भगवान कल्कि का अवतार हजारों सालों के बाद होगा, लेकिन हिंदू धर्म में उनकी परिकल्पना पहले ही कर ली गई थी. सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है, जिसमें भावी ईश्वर के अवतार को भी साकार कल्पना दे दी गई है. पुराणों में वर्णन है कि कलयुग में अधर्म की अति होने पर उसे खत्म करने के लिए भगवान विष्णु सम्भलपुर में कल्कि अवतार लेंगे. वो घोड़े पर सवार होकर शत्रुओं का नाश कर, कलयुग का अंत करते हुए दोबारा धर्म की स्थापना करेंगे.
मंदिर पुजारी कृष्ण मुरारी के अनुसार भगवान कल्कि के प्राचीन मंदिर के अहाते में एक छतरीनुमा गुमटी है. इस गुमटी में पीले संगमरमर की बनी घोड़े की मूर्ति है. इस घोड़े का एक पैर खंडित है. मान्यता है कि घोड़े के पैर के खुर का ये घाव है. ये घाव धीरे-धीरे भर रहा है और जिस दिन ये घाव पूरा भर जाएगा, उस दिन भगवान कल्कि का अवतरण होगा.
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इसी मान्यता के चलते यहां कुछ श्रद्धालु नियमित योग दर्शन के लिए ही जुटते हैं. इस मंदिर में भगवान कल्कि की प्रतिमा के अलावा लक्ष्मी जी, कृष्ण जी, शिव-पार्वती और ब्रह्मा जी की प्रतिमाओं के साथ-साथ भगवान विष्णु के सभी अवतारों को जगमोहन के दरवाजे पर उकेरा गया है.
बहरहाल, पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर जयपुर में भगवान कल्कि के मंदिर का निर्माण दक्षिणायन शिखर शैली में कराया गया था. राजस्थान सरकार देवस्थान विभाग के तहत इस ऐतिहासिक मंदिर का जीर्णोद्धार भी करा रहा है, लेकिन जानकारी के अभाव में ये मंदिर गुमनामी के अंधेरे में है...