भोपाल.मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने के 100 दिन बाद आखिरकार आज शिवराज की नई टीम यानि मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है. लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार के लिए 100 दिन तक चली सियासी उठापटक की फिजा को अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित भी नहीं आंक पाए. मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ही लग रहा था कि सिंधिया खेमे का बोलबाला रहने वाला है और हुआ भी वैसा, मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही शिवराज का वो बयान भी हकीकत में तब्दील हो गया, जो उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार से एक दिन पहले ही दिया था.
शिवराज सिंह ने केंद्रीय नेतृत्व से मुलाकात के बाद भोपाल लौटकर कहा था कि मंथन से तो अमृत निकलता है विष तो शिव पी जाते हैं. शिवराज के इस बयान से साफ हो गया था कि इस बार उनके चहेते नेता कैबिनेट से नदारद रह सकते हैं. मंत्रिमंडल का विस्तार होते ही ये बात भी हकीकत में बदल गई. सियाली गलियारों में सिंधिया समर्थकों को मंत्री बनाए जाने की अटकलें सरकार बनने के बाद से ही जोर पकड़ती रहीं और आज जाकर उन अटकलों पर पूरी तरह विराम लग गया.
मंत्रिमंडल विस्तार के लिए 100 दिन से ज्यादा चले मंथन से निकला अमृत सिंधिया समर्थकों को मिला और विष शिवराज को ही पीना पड़ा. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आगामी समय में होने वाले असंतोष और नाराजगी का असर उपचुनाव पर तो नहीं पड़ेगा. माना ये भी जा रहा है कि कई कद्दावर चेहरों को दरकिनार करने से बीजेपी में बगावत के सुर उठ सकते हैं, क्योंकि शिवराज के करीबी विश्वास सारंग, बृजेंद्र प्रताप सिंह, भूपेंद्र सिंह के अलावा ज्यादातर चेहरे ऐसे हैं, जिन्हें बीजेपी संगठन के कारण स्थान दिया गया है.
100 दिन से ज्यादा के महामंथन के बाद बीजेपी की शिवराज सरकार का मंत्रिमंडल तो गठित हो गया है, लेकिन इसमें साफ तौर पर उपचुनाव की मजबूरी, बागियों को खुश रखने की कवायद और शिवराज सिंह की लाचारी नजर आ रही है. कांग्रेस के मजबूत स्तंभ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया के सभी समर्थकों को शिवराज की टीम में जगह दी गई है, जिसको देखकर सियासी गलियारों में यही चर्चा है कि शिवराज सरकार में सिंधिया राज दिख रहा है.
नए चेहरों को दिया गया मौका
खास बात यह है कि मंत्रिमंडल में पुराने चेहरे नदारद नजर आ रहे हैं और नए चेहरों को मौका दिया गया है. कुल मिलाकर इस विस्तार को देखा जाए तो उपचुनाव के मद्देनजर जहां सिंधिया समर्थकों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है, तो भाजपा में नए चेहरों को मौका दिया गया है. पहली नजर में देखा जाए तो भले ही शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है, लेकिन इसमें ना तो मुख्यमंत्री का संवैधानिक और विवेकाधिकार नजर आ रहा है और ना ही उनके समर्थक इस मंत्रिमंडल में जगह बना पाए हैं.
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