जयपुर. लोगों का समर्थन खो चुके खालिस्तानी आंदोलन को पश्चिमी देशों से समर्थन जारी है. उधर, पाकिस्तान ने इस आन्दोलन को समर्थन देकर भारत में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश जारी रखने का अपना एजेंडा पूरा किया है. कनाडा में भले ही इस आंदोलन के समर्थकों को राजनेताओं ने भी पाला पोसा है मगर वहां मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए अब आतंकी गतिविधियों के साथ खड़े होने की जरूरत नहीं रही है. ये बात वैश्विक थिंक टैंक ’ग्लोबल स्ट्रेट व्यू’ की चर्चा में निकल कर आई.
कनाडा की क्विलेट मैगजीन से जुड़े पत्रकार जानेथन ने इस वर्चुअल चर्चा को मॉडरेट किया. जिसमें वरिष्ठ पत्रकार और मैकडोनॉल्ड लॉरियर इन्स्ट्टीट्यूट की तैयार की कई रिपोर्ट-खालिस्तानः अ प्रोजेक्ट ऑफ पाकिस्तान के लेखक टैरी मिलविस्की, जर्मनी के राजनेता गुरदीप रंधावा और भारत की वरिष्ठ पत्रकार डॉ. क्षिप्रा माथुर ने अपनी बात रखी.
वहीं कनाडाई पत्रकार टैरी मिलविस्की ने कहा कि पश्चिमी राजनेताओं ने खालिस्तानियों के हौसलों को बुलंद किया है, जबकि इससे उन्हें कोई राजनीतिक फायदा नहीं होता. सरकार के मंचों पर उन्हें हमेशा एकीकृत भारत का पक्ष ही लेना होता है. वो इसी विरोधाभास में जीते हैं. खालिस्तान के समर्थन में खड़े स्थानीय राजनेताओं को ये गलतफहमी है कि वे पूरे सिख समुदाय की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं. जबकि ये हकीकत नहीं है. फिर भी कनाडा ब्रिटेन और कुछ हद तक जर्मनी में भी खालिस्तानियों को राजनीतिक समर्थन जारी है. वजह सिर्फ इतनी सी है कि राजनेताओं को न तो जमीनी हकीकत की जानकारी है. ना ही ये समझ कि उनका ये रवैया उनके खुद ही के खिलाफ जाता है.
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खालिस्तान समर्थक सिख राजनेताओं को ये समझाने में कामयाब रहते हैं कि वहीं सिखों के असल प्रतिनिधि हैं. इसका नतीजा ये भी है कि नस्लीय भेदभाव भी पनप रहा है और गोरे राजनेता ये समझते हैं कि सभी सिख अलगाववादी हैं. जर्मनी में एंगेला मार्केल की सत्ताधारी पार्टी सीडीयू के सदस्य और वक्सबुक काउंटी के काउंसिलर गुरदीप रंधावा ने चर्चा में शामिल होते हुए कहा कि बातचीत से ही ये मसला सुलझेगा. पश्चिमी दुनिया खालिस्तानी आंदोलन की हकीकत से वाकिफ नहीं हैं. ये मसला भारत का है और भारत अपने स्तर पर ही इससे निपटेगा. बाहरी ताकतें सिर्फ ये सुझा सकती हैं कि इसका हल कैसे निकल सकता है. सिख हमेशा देश के वफादार रहेंगे मगर नेताओं को भी अपने वादे निभाने होंगे. आज भले ही दुनिया में खालिस्तानियों को समर्थन मिल रहा हो लेकिन जहां दुनिया के 75 फीसदी सिख समुदाय बसे हैं. उस पंजाब राज्य में उन्हें कोई समर्थन नहीं है.
कनाडाई पत्रकार जानेथन ने कहा कि खासतौर से ब्रिटिश कोलंबिया में रहने वाले कनाडाई राजनेता आपराधिक गतिविधियों में शामिल सिखों के कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं. साल 1985 में दिल्ली से मान्ट्रियल आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट 182 पर हुए बम विस्फोट के मास्टरमाइण्ड तलविन्दर सिंह के आयोजन में भी राजनेता शामिल होते रहे हैं. जानेथन ने कहा कि ये मामले मीडिया में भी नदारद रहते हैं. जबकि अगर यही काम ओसामा बिन लादेन ने किया होता तो प्रतिक्रिया अलग होती. यहां गोरे राजनेताओं और पत्रकारों को लगता है कि आप जितने ज्यादा आक्रोशित हैं, आतंकी हैं उतने ही ज्यादा सांस्कृतिक और राजनीतिक तौर पर आप स्वीकार्य हैं.
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वहीं पैनल ने कनाडा की वामपंथी पार्टी एनडीपी के नेता जगमीत सिंह का जिक्र भी किया, जो एयर इंडिया पर हुए बम हमले के सवाल पर कभी जवाब नहीं देते. टैरी मिलविस्की ने कहा कि उनके मन में ऐसे राजनेताओं के लिए कोई सम्मान नहीं है. वे अपने आपको बचाते हुए चलते हैं और इस भ्रम में जी रहे हैं कि उन्हें आतंकियों या खालिस्तानियों को खुश रखना हैं. जबकि असलियत ये है कि कनाडा में मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए खालिस्तानियों को गले लगाना कतई जरूरी नहीं है.