Special : गुलाबी शहर के किनारे एक हरा जंगल...इंसानी बस्ती के बीच नखलिस्तान है झालाना लेपर्ड रिजर्व, ETV bharat के साथ चलिए सफारी पर - Jaipur Wildlife Jhalana Leopard Safari
शहरों का विस्तार जिस तेजी के साथ हो रहा है और इंसानी बस्तियां जिस तादाद में बढ़ रही हैं. उसके अनुपात में वन्य जीवन सिमटता जा रहा है. लेकिन जयपुर इस मामले में खुशकिस्मत है. यहां झालाना लेपर्ड रिजर्व विकसित किया गया. जहां वन्य जीवों और वनस्पति की विविधता ने पर्यावरण और वन्यजीव प्रेमियों का उत्साह बढ़ाया है. ईटीवी भारत के साथ चलिए झालाना लेपर्ड रिजर्व की रोमांचक सफारी पर....
इंसानी बस्ती के बीच नखलिस्तान है झालाना लेपर्ड रिजर्व
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Published : Jan 9, 2021, 7:31 PM IST
जयपुर.जयपुर शहर से सटे लगभग 23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के झालाना डूंगरी लेपर्ड रिजर्व की चर्चा इन दिनों देश के वन्यजीव प्रेमियों की जुबान पर है. झालाना का ये जंगल दरअसल बीते दो साल में ही सुर्खियों का हिस्सा बना है. जहां 30 के करीब बघेरों का बसेरा बताया जाता है और ये कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है. आपको लेकर चलते हैं झालाना रिजर्व के रोमांचक सफर पर..
झालाना लेपर्ड रिजर्व का रोमांचक सफर ( भाग 1)
जिस दौर में आबादी वाले इलाकों में इन बघेरों की एंट्री और वन्यजीवन पर मानवीय दखल को लेकर बहस तेज हो रही थी. उस दौर में राजस्थान की राजधानी जयपुर के पूर्वी हिस्से में लुप्त प्राय हो रहे जंगलों में एक प्रयोग के तहत खतरों से जूझ रहे बघेरों का संरक्षण शुरु हुआ. इस काम ने दो साल में ही प्रसिद्धी प्राप्त कर ली और अब झालाना डूंगरी के इस लेपर्ड रिजर्व को देखने के लिये रोजाना बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी आते हैं.
सबसे कम घनत्व में लेपर्ड की बड़ी आबादी
जयपुर शहर का झालाना लेपर्ड रिजर्व विश्व में सबसे कम घनत्व वाले क्षेत्र में बेघेरे की बड़ी आबादी वाला जंगल है. राजधानी के बीच में बसे होने के बावजूद झालाना रिजर्व धीरे-धीरे मानव और जंगली जीवन के बीच संयोजन की मिसाल बनता जा रहा है. वन्यजीव प्रेमी धीरज कपूर बताते है कि करीबन डेढ़ बरस पहले झालाना का एक लेपर्ड रामबाग पोलो ग्राउंड एरिया तक पहुंचा था और इससे पहले भी कुछ घटनाएं हुईं थीं. लेकिन इसके बाद ऐसा नहीं हुआ. ये डेढ़ साल का वक्त ये साफ करता है कि झालाना के बघेरे अब मानव के साथ जीवन जीना सीख रहे हैं.
झालाना का लेपर्ड शर्मीला नहीं
धीरज कपूर के मुताबिक झालाना जंगल की धारणा को बदल रहा है. आम तौर पर लेपर्ड को शर्मिला माना जाता है. इस लिहाज से इसकी साइटिंग को बाघ से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. फिर भी रोचक बात ये है कि झालाना आने वाले सैलानियों को 90 प्रतिशत तक इसकी साइटिंग हो जाती है. अन्य जंगलों में बघेरे मानव को देखकर झाड़ियों में चले जाते हैं. लेकिन यहां के बेघेरे अपने स्वाभाविक अंदाज से अलग लोगों की नजर के सामने लंबे समय तक रहते हैं. यही खासियत इस लेपर्ड सफारी की पहचान बन रही है
झालाना लेपर्ड रिजर्व का रोमांचक सफर (भाग 2)
झालाना में मौजूद वन्यजीव
झालाना के इलाके के आस-पास औद्योगिक क्षेत्र है. ये जंगल दो तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ है. दो तरफ आबादी क्षेत्र भी आता है. ऐसे में यहां वन्य जीवन का पनपना किसी आश्चर्य से कम नहीं है.
झालाना जंगल में 20 प्रकार के सरिसर्प
झालाना में वन्यजीव
इस जंगल में आकर्षण का केन्द्र यहां बेघेरों की बड़ी आबादी है. आमतौर पर बेघेरे पूरे भारत में देखे जाते हैं और इस प्रजाति की खासियत यह है कि ये आवश्यकता के अनुसार खुद को ढाल सकते हैं. यही वजह है कि झालाना में खुद को जिंदा रखने के लिये ये लेपर्ड मोर के अंडे, आबादी क्षेत्र से आये श्वान, नील गाय और पक्षियों के साथ-साथ लंगूर का शिकार कर अपना पेट भर लेते हैं. इस वजह से इन्हें भोजन के लिये अब लंबी दूरी और आबादी वाले इलाकों का रुख नहीं करना पड़ता.
वन्यजीव गणना 2019 के आधार पर
वन्य जीव
वर्ष
वन्यजीव संख्या
वर्ष
वन्यजीव संख्या
मौजूदा संख्या
बघेरा
2018
21
2019
28
30
सियार
2018
26
2019
35
जरख
2018
11
2019
07
जंगली बिल्ली
2018
09
2019
21
मरू लोमड़ी
2018
19
2019
31
बिज्जू छोटा
2018
02
2019
06
चीतल
2018
14
2019
16
सांभर
2018
03
2019
05
नीलगाय
2018
365
2019
390
सही
2018
16
2019
45
लंगूर
2018
00
2019
94
गिद्ध
2018
00
2019
00
शिकारी पक्षी
2018
00
2019
03
मोर
2018
1298
2019
1758
नेवला
2018
00
2019
27
(2020 में वन्यजीव गणना नहीं हो सकी)
पूर्व महारानी गायत्री देवी ने किया था बाघ का शिकार...
रोचक तथ्य : बाघ का आखिरी शिकार
इस सफर में एक रोचक तथ्य यह भी उजागर हुआ कि झालाना के जंगलों में किसी वक्त बाघ भी पाए जाते थे. यहां बाघ का आखिरी बार शिकार किया था जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी ने. गायत्री देवी जयपुर के राजघराने की महारानी थीं. बाघ के उस शिकार के बाद फिर यहां किसी भी बाघ का शिकार नहीं किया जा सका. क्योंकि बाद में इस इलाके को शिकार प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था.
खनन के कारण मादा लेपर्ड का नाम मिसेज खान
झालाना लेपर्ड रिजर्व के सफर के दौरान इसके रोचक पहलुओं को लेकर बातचीत के बीच ये पता लगा कि आसपास के इलाके में एक दशक पहले तक सक्रिय रूप से खनन का काम हो रहा था. अरावली की पहाड़ियों में खनन पर रोक के बाद इस जंगल को संजीवनी मिली और वन विभाग ने यहां काम शुरु किया. जिसके तहत वन्यजीवों के अनुकुल इस जगह को बनाने के लिये ग्रास लैंड का विकास किया गया. अलग-अलग प्रकार की वनस्पति के पौधों को लगाया गया.
झालाना लेपर्ड रिजर्व का रोमांचक सफर (भाग 3)
झालाना ऐसे बना घना और आबाद
यहां के जंगलों में मौजूद जूलीफ्लोरा यानि विलायती बबूल को हटाने का काम किया गया. यहां तक कि शहर में मौजूद विकासकार्यों की भेंट चढ़े पेड़ों को भी इन जंगलों में लाकर प्रत्यारोपित किया गया. इस प्रकार के प्रयोगों ने इस जंगल को दो साल में घना और आबाद बना दिया. यहां 200 से ज्यादा वनस्पतियों में चीकू, आम, अमरूद और बेर जैसे फलदार पौधे भी हैं. तो वहीं पीपल और बरगद जैसे पौधों को भी लगाया गया है. जिसके परिणामस्वरूप इस जंगल में पक्षी और वन्यजीवों का विचरण भी आसान हो गया और इसी का नतीजा है कि एक फूड चेन का विकास होने से यहां पर जंगल को सार्थक रूप मिल पाया.
लेपर्ड राणा ने किया नीलगाय का शिकार...
नीलगाय का शिकार करते स्पॉट हुआ राणा
झालाना की इस लेपर्ड सफारी में ईटीवी भारत खान क्षेत्र में एक बघेरे से रूबरू हुआ. मिसेज खान यानि की माइनिंग वाले क्षेत्र में पाई जाने वाली फीमेल लेपर्ड की संतान राणा यहां नील गाय के शिकार को खाते हुए देखा गया. झालाना को लेकर खास बात ये भी है कि यह क्षेत्र एक मात्र ऐसा इलाका है पूरे देश में, जहां प्रत्येक बघेरे को नाम दिया गया है. आम तौर पर वाइल्ड लाइफ लवर्स सिर्फ बाघों का नामकरण करते हैं. परंतु झालाना ने इस पारंपरिक धारणा को तोड़कर बघेरों का नाम भी रखा है. ऐसे में इनकी ट्रेकिंग और मॉनिटरिंग भी वन विभाग के लिये आसान हो जाती है. झालाना क्षेत्र में मिसेज खान के अलावा फ्लोरा, शर्मिली जैसी मादाएं हैं. तो रेम्बो, बहादुर, सुल्तान और सिम्बा जैसे लेपर्ड भी सैलानियों को लुभाते हैं.
30 कैमरों से वन्यजीवों पर निगरानी
कुल मिलाकर झालाना लेपर्ड रिजर्व जयपुर की शान के रूप में विकसित होता जा रहा है. जहां 30 कैमरों के जरिये वन विभाग वन्यजीवों की हरकतों पर नजर रखता है. इस क्षेत्र को नाहरगढ़ वन अभ्यारण, आमागढ़ की पहाड़ियों और जलमहल के क्षेत्रों से जुड़ाव के साथ-साथ अचरोल तक के इलाके का फैलाव यहां के बघेरों के अनुकुल वातावरण तैयार करने में मददगार साबित हुआ है.
झालाना फोटो गैलरी में दुर्लभ स्पॉटेड आउल की तस्वीर..
स्पॉटेड आउल जैसे दुर्लभ पक्षी भी आए नजर
झालाना के इस वन क्षेत्र में लुप्त प्राय हो चुके स्पाटेड आउल यानि धब्बे वाले उल्लू के साथ-साथ पिट्टा जैसे विदेशी पक्षी को देखने के लिये बर्ड वॉचर्स लगातार आ रहे हैं. यहां खासतौर पर बरसात के सीजन में विदेशी प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगता है. जो प्रजनन के लिये यहां आते हैं और इसी कारण से अब लेपर्ड सफारी के साथ-साथ झालाना का ये जंगल बर्ड वॉचर्स की पसंदीदा जगह बन चुका है.
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि जंगल इंसान की जरूरत है. ईको सिस्टम के लिए कहें, हवा में घुला जहर पीने के लिए कहें, या फिर कुदरत की शुद्धता के लिए. इस जरूरत का खयाल रखना अब इंसान ने शुरू कर दिया है. जयपुर के किनारे इंसानी बस्ती से घिरे इस जंगल की सैर यकीनन आपको रोमांचक लगी होगी. बघेरों का कुनबा यहां लगातार बढ़ रहा है. मिसेज खान नन्हे शावक के साथ नजर आई है. झालाना ने वन और वन्यजीव प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया है. तेजी से यह रिजर्व वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का मॉडल बनता जा रहा है.