जयपुर. शहर से सटे करीब 23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के झालाना डूंगरी लेपर्ड रिजर्व की चर्चा इन दिनों देश के वन्यजीव प्रेमियों की जुबान पर है. झालाना का ये जंगल दरअसल बीते दो साल में ही सुर्खियों का हिस्सा बना है, जहां 30 के करीब बघेरों का बसेरा बताया जाता है और ये कुनबा लगातार बढ़ता जा रहा है.
झालाना लेपर्ड रिजर्व की सैर ईटीवी भारत के साथ पार्ट-1 जिस दौर में आबादी वाले इलाकों में इन बघेरों की एंट्री और वन्यजीवन पर मानवीय दखल को लेकर बहस तेज हो रही थी. उस दौर में राजस्थान की राजधानी जयपुर के पूर्वी हिस्से में लुप्त प्राय हो रहे जंगलों में एक प्रयोग के तहत खतरों से जूझ रहे बघेरों का संरक्षण शुरू हुआ. इस काम ने दो साल में ही प्रसिद्धि पा ली और अब झालाना डूंगरी के इस लेपर्ड रिजर्व को देखने के लिए रोजाना बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैलानी आते हैं. ईटीवी भारत भी पहुंचा झालाना की इस लेपर्ड सफारी पर जिससे आप तक इसके अनछुए पहलुओं को पहुंचाया जा सके.
झालाना लेपर्ड रिजर्व की सैर ईटीवी भारत के साथ पार्ट-2 जयपुर शहर का झालाना लेपर्ड रिजर्व (Jhalana Leopard reserve) विश्व में सबसे कम घनत्व वाले क्षेत्र में बेघेरे की बड़ी आबादी वाला जंगल राजधानी के बीच में बसे होने के बावजूद धीरे-धीरे मानव और जंगली जीवन के बीच संयोजन की मिसाल बनता जा रहा है. वन्यजीव प्रेमी धीरज कपूर बताते हैं कि करीबन डेढ़ साल पहले झालाना का एक लेपर्ड रामबाग पोलो ग्राउंड एरिया तक पहुंचा था और इससे पहले भी कुछ घटनाएं हुई थी, लेकिन इसके बाद ऐसा नहीं हुआ. ये डेढ़ साल का वक्त ये साफ करता है कि झालाना के बघेरे अब मानव के साथ जीवन जीना सीख रहे हैं.
झालाना में 90 प्रतिशत लेपर्ड की होती है साइटिंग
धीरज कपूर के मुताबिक झालाना जंगल की धारणा को बदल रहा है. आम तौर पर लेपर्ड को शर्मिला माना जाता है, इस लिहाज से इसकी साइटिंग को बाघ से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. झालाना आने वाले सैलानियों को 90 प्रतिशत तक इसकी साइटिंग हो जाती है. अन्य जंगलों में बघेरे मानव को देखकर झाड़ियों में चले जाते हैं, पर यहां के बेघेरे अपने स्वाभाविक अंदाज से अलग लोगों के नजर के सामने लंबे समय तक रहते हैं और यहीं खासियत इस लेपर्ड सफारी की पहचान बन रही है.
झालाना में मौजूद वन्यजीव
झालाना के इलाके के आस-पास औद्योगिक क्षेत्र है, ये जंगल दो तरफ पहाड़ियों से घिरा हुआ है तो दो तरफ आबादी क्षेत्र भी आता है. ऐसे में यहां जंगलीय जीवन का पनपना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. यहां के जंगलों में 20 प्रकार के सरिसर्प, 33 प्रकार के वन्य जीव, 132 प्रकार के पक्षी और 220 से ज्यादा प्रकार की वनस्पति को दर्ज किया जा चुका है, लेकिन इस जंगल में आकर्षण का केंद्र यहां बेघेरों की बड़ी आबादी है.
झालाना लेपर्ड रिजर्व की सैर ईटीवी भारत के साथ पार्ट-3 बताया जाता है कि आमतौर पर बघेरे पूरे भारत में देखे जाते हैं और इस प्रजाति की खासियत यह है कि ये आवश्यकता के अनुसार खुद को ढाल सकते हैं. यही वजह है कि झालाना में खुद को जिंदा रखने के लिए ये लेपर्ड मोर के अंडे, आबादी क्षेत्र से आए श्वान, नील गाय और पक्षियों के साथ-साथ लंगूर का शिकार कर अपना पेट भर लेते हैं. इस वजह से इन्हें भोजन के लिए अब लंबी दूरी और आबादी वाले इलाकों का रुख नहीं करना पड़ता है.
वन विभाग की मेहनत से घना और आबाद हुआ जंगल
झालाना लेपर्ड रिजर्व के सफर के दौरान इसके रोचक पहलुओं को लेकर बातचीत के बीच ये पता लगा कि आसपास के इलाके में एक दशक पहले तक सक्रिय रूप से खनन का काम हो रहा था. अरावली की पहाड़ियों में खनन पर रोक के बाद इस जंगल को संजीवनी मिली और वन विभाग ने यहां काम शुरू किया. जिसके तहत वन्यजीवों के अनुकूल इस जगह को बनाने के लिये ग्रास लैंड का विकास किया गया. अलग-अलग प्रकार की वनस्पति के पौधों को लगाया गया. यहां के जंगलों में मौजूद जूली फ्लोरा यानि विलायती बबूल को हटाने का काम किया गया. यहां तक कि शहर में मौजूद विकास कार्यों की भेंट चढ़े पेड़ों को भी इन जंगलों में लाकर प्रत्यारोपित किया गया. इस प्रकार के प्रयोगों ने इस जंगल को दो साल में घना और आबाद बना दिया.
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यहां 200 से ज्यादा वनस्पतियों में चीकू, आम, अमरूद और बैर जैसे फलदार पौधे भी हैं, तो वहीं पीपल और बरगद जैसे पौधों को भी लगाया गया है. जिसके परिणामस्वरूप इस जंगल में पक्षी और वन्यजीवों का विचरण भी आसान हो गया और इसी का नतीजा है कि एक फूड चेन का विकास होने से यहां पर जंगल को सार्थक रूप मिल पाया.
झालाना में प्रत्येक बघेरे का होता है अनोखा नाम
झालाना की इस लेपर्ड सफारी में ईटीवी भारत खान क्षेत्र में एक बघेरे से रूबरू हुआ. मिसेज खान यानि की माइनिंग वाले क्षेत्र में पाई जाने वाली फिमेल लेपर्ड की संतान राणा यहां नील गाय के शिकार को खाते हुए देखा गया. झालाना को लेकर खास बात ये भी है कि यह क्षेत्र एक मात्र ऐसा इलाका है, पूरे देश में जहां प्रत्येक बघेरे को नाम दिया गया है. आम तौर पर वाइल्ड लाइफ लवर्स सिर्फ बाघों का नामकरण करते हैं, लेकिन झालाना ने इस पारंपरिक धारणा को तोड़कर बघेरों का नाम भी रखा है. ऐसे में इनकी ट्रेकिंग और मॉनिटरिंग भी वन विभाग के लिए आसान हो जाती है. झालाना क्षेत्र में मिसेज खान के अलावा फ्लोरा, शर्मिली जैसी मादाएं हैं, तो रेम्बो, बहादुर, सुल्तान और सिम्बा जैसे लेपर्ड भी सैलानियों को लुभाते हैं.
झालाना रिजर्व में 132 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं झालाना कुल मिलाकर जयपुर की शान के रूप में विकसित होता जा रहा है. जहां 30 कैमरों के जरिए वन विभाग वन्यजीवों की हरकतों पर नजर रखता है. इस क्षेत्र को नाहरगढ़ वन अभ्यारण, आमागढ़ की पहाड़ियों और जलमहल के क्षेत्र से जुड़ाव के साथ-साथ अचरोल तक के इलाके का फैलाव यहां के बघेरों के अनुकुल वातावरण तैयार करने में मददगार साबित हुआ है. झालाना के इस वन क्षेत्र में लुप्त प्राय हो चुके स्पाटेड आउल यानि धब्बे वाले उल्लू के साथ-साथ पिट्टा जैसे विदेशी पक्षी को देखने के लिए बर्ड वॉचर्स लगातार आ रहे हैं.
हर बघेरा का होता है एक अनोखा नाम यहां खासतौर पर बरसात के सीजन में विदेशी प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगता है, जो प्रजनन के लिए यहां आते हैं और इसी कारण से अब लेपर्ड सफारी के साथ-साथ झालाना का ये जंगल बर्ड वॉचर्स की पसंदीदा जगह बन चुका है.